तानु से जेएनयू तक: अग्निवीर से छात्र नेता बने अजयपाल का प्रेरक सफर जान कर रह जाओगे हेरान
रेत भरे बाड़मेर के छोटे से गांव तानु में जन्मा एक साधारण किसान का बेटा, जिसने भारतीय वायुसेना में अग्निवीर के रूप में देश की सेवा की, आज जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्रसंघ चुनाव में काउंसलर पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहा है। अजयपाल की कहानी केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव, शिक्षा के अधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एक प्रेरणादायक संघर्ष की मिसाल है।

रेत भरे बाड़मेर के छोटे से गांव तानु में जन्मा एक साधारण किसान का बेटा, जिसने भारतीय वायुसेना में अग्निवीर के रूप में देश की सेवा की, आज जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्रसंघ चुनाव में काउंसलर पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहा है। अजयपाल की कहानी केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव, शिक्षा के अधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एक प्रेरणादायक संघर्ष की मिसाल है। उनकी यह यात्रा गांव की मिट्टी से दिल्ली की सियासत तक एक ऐसी दास्तान है, जो हर युवा को सपने देखने और उन्हें हकीकत में बदलने की प्रेरणा देती है।
खबर का सार:
राजस्थान के बाड़मेर जिले के तानु गांव से निकलकर अजयपाल ने पहले भारतीय वायुसेना में अग्निवीर के रूप में देश सेवा की। लेकिन उनका मन केवल वर्दी तक सीमित नहीं रहा। शिक्षा और सामाजिक न्याय के प्रति उनकी जिज्ञासा उन्हें जेएनयू ले आई, जहां उन्होंने स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के बैनर तले छात्र राजनीति में कदम रखा। मंगलवार को उन्होंने जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में काउंसलर पद के लिए नामांकन दाखिल किया, जिसके साथ ही उनका प्रेरक सफर सुर्खियों में छा गया।
लोकतंत्र और शिक्षा के लिए जंग:
नामांकन के बाद अजयपाल ने अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट कीं। उन्होंने कहा, “वायुसेना में मैंने देश की सेवा की, और अब जेएनयू में छात्रों की आवाज बनकर उनके हक और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए लड़ रहा हूँ।” उन्होंने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर जेएनयू की शैक्षणिक गुणवत्ता को नष्ट करने का गंभीर आरोप लगाया। उनके मुताबिक, “भाजपा सरकार में पीएचडी दाखिलों और प्रोफेसरों की भर्ती में एक खास विचारधारा को थोपा जा रहा है। यूजीसी पूरी तरह नाकाम हो चुकी है, और आरएसएस जेएनयू के लोकतांत्रिक ढांचे को खत्म करने की कोशिश में है।”
अजयपाल ने प्रशासन पर छात्र कार्यकर्ताओं को दबाने का भी इल्जाम लगाया। जुर्माना, प्रॉक्टोरियल जांच और मुकदमों के डर से छात्रों की आवाज को कुचलने की साजिश का उन्होंने खुलकर विरोध किया। उनकी नजर में जेएनयू की सस्ती शिक्षा व्यवस्था, जहां एक सेमेस्टर की फीस मात्र 268 रुपये है, गरीब परिवारों के बच्चों के लिए वरदान है। लेकिन सरकार इसे खत्म करने पर आमादा है।
चुनावी अभियान में जोश:
अजयपाल का चुनावी अभियान अब पूरे जोर-शोर से चल रहा है। जेएनयू में 25 अप्रैल को मतदान होगा और 28 अप्रैल को नतीजे आएंगे। उनके समर्थन में पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष आईसी घोष, छात्रसंघ उम्मीदवार गोपिका बाबू, सागर सिंघल, अंजली, कमल सिंह दुधोड़ा और छगनलाल रामसर जैसे नाम शामिल हैं। कैंपस में उनकी मौजूदगी और विचारों ने छात्रों में नई ऊर्जा भरी है।
सामाजिक मुद्दों पर मुखर आवाज:
अजयपाल ने केवल जेएनयू तक ही खुद को सीमित नहीं रखा। उन्होंने राजस्थान में ओरण भूमि के लिए चल रहे आंदोलन और हीटवेव से होने वाली मौतों पर सरकार की चुप्पी की भी कड़ी आलोचना की। उनके लिए शिक्षा का अधिकार और सामाजिक न्याय एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
निष्कर्ष:
अजयपाल की कहानी एक साधारण गांव से शुरू होकर जेएनयू जैसे बौद्धिक केंद्र तक पहुंची है। उनका यह सफर न केवल उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रतीक है, बल्कि उन तमाम युवाओं के लिए एक मिसाल है, जो अपने सपनों को हकीकत में बदलना चाहते हैं। जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में उनकी मौजूदगी न सिर्फ कैंपस की सियासत को गर्माएगी, बल्कि शिक्षा और लोकतंत्र के लिए उनकी लड़ाई को भी नई दिशा देगी। तानु का यह लाल अब दिल्ली में एक नई क्रांति की नींव रख रहा है।