SCO बैठक में भारत की आतंकवाद के खिलाफ हुई बड़ी जीत....
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा और शी जिनपिंग के साथ मुलाकात ने भारत-चीन रिश्तों में गर्मजोशी के संकेत दिए हैं। 2020 की गलवान झड़प के बाद पहली बार दोनों देशों ने सीमा शांति, व्यापार और सहयोग पर बात की। लेकिन, सीमा विवाद और ब्रह्मपुत्र जैसे मुद्दे अब भी कांटों की तरह चुभ रहे हैं। एससीओ समिट में भारत ने आतंकवाद के खिलाफ मजबूत रुख दिखाया, खासकर पहलगाम हमले की निंदा को घोषणापत्र में शामिल करवाकर। जिनपिंग ने सहयोग के चार सूत्र दिए, तो मोदी ने सुरक्षा, कनेक्टिविटी और अवसर पर जोर दिया। वैश्विक दबाव, खासकर ट्रम्प के टैरिफ, ने दोनों देशों को करीब लाने में भूमिका निभाई, पर भरोसा बनाने का रास्ता अभी लंबा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया चीन यात्रा और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी मुलाकात ने भारत-चीन संबंधों में सकारात्मक बदलाव के संकेत दिए हैं। 2020 की गलवान घाटी झड़प के बाद पहली बार दोनों देशों ने सीमा शांति, व्यापार संतुलन और आपसी सहयोग जैसे मुद्दों पर सकारात्मक चर्चा की। हालांकि, सीमा विवाद और जल संसाधनों जैसे जटिल मुद्दे अब भी अनसुलझे हैं, और पूर्ण विश्वास बहाली के लिए लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
मुलाकात के प्रमुख बिंदु
विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बताया कि तियानजिन में एससीओ समिट के दौरान हुई यह मुलाकात पिछले एक साल में मोदी और जिनपिंग की दूसरी बैठक थी। इससे पहले अक्टूबर 2024 में रूस के कजान में दोनों नेताओं ने मुलाकात की थी। इस बार की बातचीत में दोनों देशों ने एक-दूसरे को प्रतिद्वंद्वी के बजाय साझेदार के रूप में देखने पर जोर दिया। दोनों नेताओं ने माना कि स्थिर और मैत्रीपूर्ण संबंध 2.8 अरब लोगों के हित में होंगे।
सीमा पर शांति और सहमति
मोदी ने सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता को द्विपक्षीय संबंधों की प्रगति का आधार बताया। दोनों नेताओं ने पिछले साल के समझौतों की सराहना की, जिनके जरिए सीमा पर तनाव कम हुआ है। मौजूदा तंत्र के माध्यम से शांति बनाए रखने पर सहमति बनी। इसके अलावा, कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली, पर्यटक वीजा और सीधी उड़ानों की शुरुआत जैसे कदमों से लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने पर जोर दिया गया।
जिनपिंग के चार सुझाव
शी जिनपिंग ने संबंधों को मजबूत करने के लिए चार सुझाव दिए:
कूटनीतिक संवाद बढ़ाना: दोनों देशों के बीच नियमित और पारदर्शी संवाद को प्राथमिकता देना।
आपसी विश्वास मजबूत करना: मतभेदों को विवाद में बदलने से रोकना और विश्वास बहाली पर काम करना।
सहयोग और आदान-प्रदान बढ़ाना: व्यापार, निवेश और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहन देना।
साझा हितों की रक्षा: वैश्विक मंचों पर एक-दूसरे की चिंताओं का ध्यान रखना और बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देना।
आतंकवाद पर भारत का जोर
मोदी ने बैठक में सीमा पार आतंकवाद का मुद्दा उठाया, खासकर हाल के पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र करते हुए। एससीओ समिट के घोषणापत्र में इस हमले की निंदा की गई, जो भारत के लिए एक कूटनीतिक जीत मानी जा रही है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की मौजूदगी में इस मुद्दे का शामिल होना और भी महत्वपूर्ण है। मोदी ने कहा कि आतंकवाद न केवल एक देश, बल्कि पूरी मानवता के लिए खतरा है, और कुछ देशों द्वारा आतंकवाद को समर्थन देने की नीति अस्वीकार्य है।
वैश्विक संदर्भ और ट्रम्प का टैरिफ
यह दौरा ऐसे समय में हुआ है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत (50%), चीन (30%), और अन्य एससीओ देशों पर भारी टैरिफ लगाए हैं। इस पृष्ठभूमि में भारत और चीन का सहयोग वैश्विक व्यापार और बहुपक्षीय व्यवस्था को स्थिर करने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। जिनपिंग ने इसे अमेरिका के नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था के विकल्प के रूप में पेश करने की कोशिश की, जिसमें भारत, रूस और अन्य देशों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देना शामिल है।
पुराने विवाद बरकरार
हालांकि बातचीत सकारात्मक रही, लेकिन सीमा विवाद का स्थायी समाधान अब भी दूर है। अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर स्पष्ट सहमति का अभाव है। इसके अलावा, ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन के बांध निर्माण जैसे जल संसाधन मुद्दे भारत के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं। विदेश मंत्रालय ने इन मुद्दों पर पारदर्शिता की जरूरत पर जोर दिया।
SCO का महत्व
एससीओ समिट में चीन ने सदस्य देशों को 2 बिलियन युआन (लगभग 281 मिलियन अमेरिकी डॉलर) की आर्थिक सहायता की घोषणा की। जिनपिंग ने आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के खिलाफ संगठन की प्रतिबद्धता दोहराई, जबकि मोदी ने एससीओ को सुरक्षा, कनेक्टिविटी और अवसर के तीन स्तंभों पर आधारित बताया। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसे वैश्विक स्थिरता और सुरक्षा का नया मॉडल करार दिया।
मोदी का यह दौरा भारत-चीन संबंधों में नरमी का संकेत देता है, लेकिन गलवान जैसे अतीत के घाव और अनसुलझे विवाद विश्वास बहाली में बड़ी चुनौती हैं। वैश्विक आर्थिक दबाव और भू-राजनीतिक उथल-पुथल ने दोनों देशों को संवाद की मेज पर ला दिया है, लेकिन स्थायी शांति और सहयोग के लिए ठोस कदम और पारस्परिक विश्वास जरूरी है।