राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव को लेकर चल रहा विवाद अब राजस्थान हाई कोर्ट तक पहुंच गया है। राज्य सरकार ने 2025-26 सत्र के लिए छात्रसंघ चुनाव कराने से साफ इनकार कर दिया है और इस संबंध में हाई कोर्ट में जवाब पेश किया है। सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के कार्यान्वयन और लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का हवाला देते हुए चुनाव स्थगित करने का फैसला लिया है। इस निर्णय ने छात्रों और राजनीतिक संगठनों में आक्रोश पैदा कर दिया है, जो इसे कैंपस लोकतंत्र पर हमला बता रहे हैं।
हाई कोर्ट में सरकार का जवाब
30 जुलाई 2025 को राजस्थान हाई कोर्ट की जस्टिस अनूप ढंढ की एकल पीठ ने राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र जय राव की याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन को नोटिस जारी किया था। याचिका में दावा किया गया कि 2023 से छात्रसंघ चुनाव नहीं कराए जा रहे हैं, जो छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। सरकार ने 13 अगस्त 2025 को कोर्ट में जवाब दाखिल करते हुए कहा कि लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के अनुसार, शैक्षणिक सत्र शुरू होने के 6-8 सप्ताह के भीतर चुनाव कराना संभव नहीं है। इसके अलावा, NEP 2020 के तहत सेमेस्टर सिस्टम लागू करने में संसाधनों की कमी और प्रशासनिक चुनौतियों का हवाला दिया गया। कई विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने भी इस साल चुनाव कराने के खिलाफ राय दी है।
लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें
लिंगदोह कमेटी, जिसे 2006 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित किया गया था, ने छात्रसंघ चुनावों में धन और बाहुबल के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश दिए थे। इनमें शामिल हैं:
- शैक्षणिक सत्र शुरू होने के 6-8 सप्ताह के भीतर वार्षिक चुनाव।
- उम्मीदवारों की आयु सीमा 17-28 वर्ष और 75% उपस्थिति अनिवार्य।
- प्रचार खर्च की सीमा 5,000 रुपये और राजनीतिक दलों से फंडिंग पर रोक।
- मुद्रित पोस्टर, वाहन रैलियों, और आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों पर प्रतिबंध।
सरकार ने तर्क दिया कि इन सिफारिशों का पालन करना वर्तमान में मुश्किल है, क्योंकि कई विश्वविद्यालयों में NEP 2020 के तहत पाठ्यक्रम और प्रशासनिक ढांचे में बदलाव चल रहे हैं।
छात्रों और विपक्ष का आक्रोश
छात्र संगठनों, खासकर नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), ने सरकार के इस फैसले की कड़ी आलोचना की है। NSUI के प्रदेश अध्यक्ष अभिषेक चौधरी ने इसे “लोकतंत्र का गला घोंटने” वाला कदम बताया, जबकि ABVP के हुश्यार मीणा ने इसे “कैंपस लोकतंत्र पर हमला” करार दिया। 5 अगस्त 2025 को NSUI ने जयपुर में प्रदर्शन किया, जिसमें पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट भी शामिल हुए। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर वाटर कैनन का इस्तेमाल किया, जिसके बाद यह मुद्दा और गरमा गया।
छात्र नेता शुभम रेवाड़ ने कहा, “छात्रसंघ चुनाव युवाओं को नेतृत्व और लोकतांत्रिक मूल्यों की समझ देते हैं। सरकार का यह रवैया हमें हमारे अधिकारों से वंचित कर रहा है।” उन्होंने यह भी बताया कि विश्वविद्यालय प्रवेश के समय 50-100 रुपये का चुनाव शुल्क वसूल रहे हैं, लेकिन 2023 से कोई चुनाव नहीं हुआ, जिससे छात्रों में असंतोष बढ़ रहा है।
2023 में शुरू हुआ विवाद
2023 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अशोक गहलोत के नेतृत्व में छात्रसंघ चुनाव रद्द किए थे। गहलोत ने लिंगदोह कमेटी के उल्लंघन, जैसे अत्यधिक खर्च और बाहुबल, के साथ-साथ NEP 2020 के कार्यान्वयन में संसाधनों की कमी को कारण बताया था। हालांकि, अब गहलोत ने बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि छात्रसंघ चुनाव “लोकतंत्र का आधार” हैं और इन्हें जल्द शुरू करना चाहिए। इस दोहरे रवैये ने दोनों पार्टियों पर सवाल उठाए हैं, क्योंकि 2019 के बाद से केवल 2022 में ही चुनाव हुए थे, जो NSUI के लिए निराशाजनक रहे।
हाई कोर्ट की कार्रवाई
जय राव की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अनूप ढंढ ने सरकार से पूछा कि आखिर क्यों तीन साल से चुनाव नहीं कराए जा रहे हैं। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि छात्रसंघ चुनाव छात्रों का मौलिक अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) और 21 के तहत संरक्षित है। 2023 में एक अन्य याचिका को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था, जब याचिकाकर्ता शांतनु पारीक ने इसे वापस ले लिया। कोर्ट ने तब टिप्पणी की थी कि यह याचिका “पब्लिक इंटरेस्ट” से ज्यादा “पब्लिसिटी इंटरेस्ट” लगती है। इस बार, कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 1 अगस्त के लिए निर्धारित की थी, लेकिन अब तक कोई अंतिम फैसला नहीं आया है।