राजस्थान SI भर्ती 2021 पेपर लीक मामला: हाईकोर्ट की सख्त रुख के बाद भी सरकार की टालमटोल, 1 जुलाई तक आखिरी मोहलत
राजस्थान SI भर्ती परीक्षा 2021 के पेपर लीक मामले में हाईकोर्ट की सख्ती के बावजूद राज्य सरकार कोई ठोस फैसला नहीं ले पाई है। सरकार ने बार-बार समय मांगा, और अब 1 जुलाई 2025 तक की अंतिम मोहलत मिली है। कैबिनेट सब-कमेटी की बैठकें मुख्यमंत्री की व्यस्तता और अन्य कारणों से बाधित हुईं। याचिकाकर्ताओं ने सरकार पर जानबूझकर देरी करने का आरोप लगाया। हाईकोर्ट ने चेतावनी दी है कि फैसला न होने पर जिम्मेदारों को परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। लाखों अभ्यर्थी इस मामले में निर्णय का इंतजार कर रहे हैं, जो भर्ती रद्द करने या जारी रखने पर निर्भर करता है।

जयपुर: राजस्थान की बहुचर्चित सब-इंस्पेक्टर (SI) भर्ती परीक्षा 2021 के पेपर लीक मामले में एक बार फिर सरकार खाली हाथ रही। राजस्थान हाईकोर्ट के बार-बार सख्त रुख और चेतावनियों के बावजूद, भजनलाल शर्मा सरकार इस मामले में ठोस फैसला लेने में नाकाम रही है। सोमवार, 26 मई 2025 को हुई सुनवाई में सरकार ने फिर से समय मांगा और अब कोर्ट ने 1 जुलाई तक की अंतिम मोहलत दे दी है। इस मामले में लाखों अभ्यर्थियों का भविष्य अधर में लटका हुआ है, और सरकार की देरी से नाराजगी बढ़ती जा रही है।
2021 में राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) द्वारा आयोजित SI भर्ती परीक्षा में बड़े पैमाने पर पेपर लीक और डमी अभ्यर्थियों के जरिए धांधली के आरोप लगे। विशेष कार्य बल (SOG) की जांच में 103 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें 53 ट्रेनी सब-इंस्पेक्टर शामिल हैं। RPSC के निलंबित सदस्य बाबूलाल कटारा और पूर्व सदस्य रामूराम राईका सहित कई बड़े नाम इस घोटाले में फंसे। जांच में खुलासा हुआ कि पेपर परीक्षा से एक महीने पहले ही लीक हो गया था, जिसके बाद कई अभ्यर्थियों ने पेपर खरीदकर या डमी कैंडिडेट्स के जरिए चयन हासिल किया।
इस घोटाले के बाद अभ्यर्थियों, SOG, पुलिस मुख्यालय, और कैबिनेट सब-कमेटी ने भर्ती रद्द करने की सिफारिश की। हालांकि, सरकार अब तक कोई अंतिम निर्णय नहीं ले पाई, जिससे अभ्यर्थियों में आक्रोश बढ़ रहा है।
हाईकोर्ट की सख्ती और सरकार की ढिलाई
हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और सरकार को कई बार अंतिम मौके दिए। जस्टिस समीर जैन ने 15 मई 2025 को चेतावनी दी थी कि अगर 26 मई तक फैसला नहीं हुआ, तो जिम्मेदार अधिकारियों को परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं, जिसमें जुर्माना भी शामिल हो सकता है।
26 मई की सुनवाई में अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) विज्ञान शाह ने कोर्ट में प्रार्थना पत्र पेश कर कहा कि 21 मई को कैबिनेट सब-कमेटी की बैठक हुई, लेकिन मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा 24-25 मई को नीति आयोग की बैठक के लिए दिल्ली में व्यस्त थे। इस वजह से सब-कमेटी की रिपोर्ट पर अंतिम फैसला नहीं हो सका।
इससे पहले, 13 मई की बैठक में भी 'ऑपरेशन सिंदूर' और एक मंत्री की अस्वस्थता के कारण फैसला टल गया था। सरकार की बार-बार समय मांगने की रणनीति पर याचिकाकर्ताओं के वकील हरेन्द्र नील ने कड़ा ऐतराज जताया। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार जानबूझकर देरी कर रही है और अभ्यर्थियों को भ्रम में रख रही है।
कैबिनेट सब-कमेटी और राजनीतिक दबाव
इस मामले को सुलझाने के लिए 1 अक्टूबर 2024 को छह मंत्रियों की कैबिनेट सब-कमेटी बनाई गई थी, जिसके संयोजक विधि मंत्री जोगाराम पटेल हैं। इस कमेटी ने कई बैठकें कीं और अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी, जिसमें भर्ती रद्द करने और दोबारा परीक्षा कराने की सिफारिश की गई।
हालांकि, कुछ राजनीतिक दबावों के कारण फैसला अटका हुआ है। RLP नेता हनुमान बेनीवाल ने सरकार पर दबाव बढ़ाया है और भर्ती रद्द करने की मांग को लेकर धरने और प्रदर्शन किए। उन्होंने दावा किया कि कुछ मंत्री भर्ती रद्द न करने के लिए दबाव डाल रहे हैं। कैबिनेट मंत्री किरोड़ीलाल मीणा भी भर्ती रद्द करने की वकालत कर चुके हैं।
अभ्यर्थियों की दुविधा
इस भर्ती में 859 पदों के लिए 7.97 लाख आवेदन आए थे, लेकिन केवल 3.83 लाख अभ्यर्थी परीक्षा में शामिल हुए। चयनित 800 से अधिक ट्रेनी SI में से 86 को बर्खास्त किया जा चुका है। कुछ अभ्यर्थी और उनके परिजन भर्ती को यथावत रखने की मांग कर रहे हैं, उनका कहना है कि दोषियों को सजा दी जाए, लेकिन ईमानदार अभ्यर्थियों का भविष्य बर्बाद न किया जाए। दूसरी ओर, असफल अभ्यर्थी और अन्य याचिकाकर्ता पूरी भर्ती रद्द करने की मांग कर रहे हैं, ताकि ईमानदार युवाओं को न्याय मिले।
1 जुलाई: आखिरी मौका
हाईकोर्ट ने अब 1 जुलाई 2025 तक का समय दिया है, जिसे अंतिम मौका बताया जा रहा है। अगर इस बार भी सरकार फैसला नहीं ले पाई, तो कोर्ट स्वयं निर्णय ले सकता है। अभ्यर्थियों की नजरें अब इस तारीख पर टिकी हैं। सवाल यह है कि क्या सरकार इस बार ठोस कदम उठाएगी, या फिर मुख्यमंत्री की व्यस्तता और प्रशासनिक बहाने एक बार फिर आड़े आएंगे?
क्यों है देरी?
- राजनीतिक दबाव: कुछ मंत्रियों और नेताओं के बीच भर्ती रद्द करने या बचाने को लेकर मतभेद
- कानूनी जटिलताएं: सरकार कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है ताकि फैसला कोर्ट में चुनौती न दे सके।
- मुख्यमंत्री की व्यस्तता: नीति आयोग की बैठक और अन्य कार्यक्रमों के कारण फैसले में देरी।
- SOG की जांच: 103 गिरफ्तारियों के बावजूद कई आरोपी, जैसे सुरेश ढाका और यूनिक भांभू, फरार हैं, जिससे जांच अधूरी है।
1 जुलाई की सुनवाई इस मामले में निर्णायक साबित हो सकती है। अगर सरकार फिर से समय मांगती है, तो कोर्ट जुर्माना लगा सकता है या भर्ती को रद्द करने का आदेश दे सकता है। दूसरी ओर, अगर भर्ती रद्द होती है, तो यह 800 से अधिक चयनित अभ्यर्थियों के लिए बड़ा झटका होगा। वहीं, अगर भर्ती बचती है, तो पेपर लीक के दोषियों को सजा दिलाने की प्रक्रिया और जटिल हो सकती है।
लाखों अभ्यर्थी और उनके परिवार इस फैसले का इंतजार कर रहे हैं। यह मामला न केवल भर्ती की पारदर्शिता, बल्कि सरकार की जवाबदेही और हाईकोर्ट की सख्ती का भी इम्तिहान है।