अस्पतालों में मरीजों की डाइट में लापरवाही, सरकार की व्यवस्था पर सवाल
जयपुर के SMS हॉस्पिटल में मरीजों की डाइट में भारी लापरवाही, थाली से नाश्ता गायब और दूध वार्ड बॉय पी रहे हैं। मुफ्त खाने की व्यवस्था के बावजूद कई मरीज बाहर से खाना लाने को मजबूर, प्रशासन का दावा खोखला।

जयपुर के सवाई मान सिंह (SMS) हॉस्पिटल में मरीजों के लिए मुफ्त भोजन व्यवस्था के बावजूद गंभीर लापरवाही का मामला सामने आया है। राज्य सरकार द्वारा मरीजों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने का दावा किया जाता है, लेकिन वास्तविकता में मरीजों को न तो तय मात्रा में भोजन मिल रहा है और न ही पोषणयुक्त डाइट। कॉर्नफ्लेक्स, दलिया, उपमा, फल और पोहा जैसे पौष्टिक नाश्ते मरीजों तक पहुंच ही नहीं रहे। कई मरीजों को तो इस मुफ्त भोजन सुविधा की जानकारी तक नहीं है, जिसके चलते वे बाहर से खाना मंगवाने को मजबूर हैं।
अस्पताल में डाइट वितरण व्यवस्था लचर
हॉस्पिटल की साउथ विंग के वार्डों में डाइट सप्लाई की जांच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। कैंटीन स्टाफ केवल दूध बांट रहा था, जबकि नियमानुसार प्रत्येक मरीज को 200 मिलीलीटर दूध और 100 ग्राम नाश्ता (जैसे उपमा) मिलना चाहिए। जांच के दौरान पाया गया कि कई मरीजों को 70-80 मिलीलीटर से भी कम दूध दिया गया, और कुछ को दूध तक नहीं मिला। बुधवार को मरीजों को दूध के साथ उपमा देने का प्रावधान था, लेकिन उपमा किसी भी मरीज को नहीं दी गई। बांगड़ वार्ड में भी स्थिति दयनीय थी, जहां कुछ मरीजों को सिर्फ दूध मिला और नाश्ता पूरी तरह गायब था।
प्रशासन का दावा और हकीकत में अंतर
हॉस्पिटल प्रशासन का दावा है कि रोजाना करीब एक हजार मरीजों को डाइट दी जाती है। हालांकि, यह जांचने का कोई ठोस सिस्टम नहीं है कि कितने मरीजों को वास्तव में भोजन मिल रहा है। डाइट तैयार करने का काम कॉन्ट्रैक्ट पर दिया गया है, और नर्सिंग स्टाफ मरीजों की जरूरत के हिसाब से कैंटीन में डाइट लिखवाता है। प्रशासन के मुताबिक, एक मरीज की एक दिन की डाइट पर 78 रुपये खर्च होते हैं, यानी रोजाना 78,000 रुपये का बजट। इसके बावजूद, मरीजों को आधा-अधूरा और अपर्याप्त भोजन मिल रहा है।
मरीजों को अतिरिक्त खर्च की मार
डायटीशियन की सलाह पर बीमारी के हिसाब से डाइट देने का दावा किया जाता है, लेकिन हकीकत में मरीज पोषण से वंचित हैं। अपर्याप्त और अनियमित डाइट वितरण के कारण कई मरीजों को बाहर से खाना मंगवाना पड़ रहा है, जिससे उन्हें अतिरिक्त आर्थिक बोझ उठाना पड़ रहा है।