लद्दाख में चीन सीमा से सटा न्योमा एयरबेस शुरू: वायुसेना प्रमुख ने खुद उतारा C-130J हरक्यूलिस, 13,710 फीट की ऊंचाई पर दुनिया के सबसे ऊंचे एयरबेसों में शुमार
लद्दाख के न्योमा में 13,710 फीट ऊंचाई पर बना दुनिया का सबसे ऊंचा एयरबेस ऑपरेशनल; वायुसेना प्रमुख ने C-130J उतारकर उद्घाटन किया, चीन की LAC से मात्र 25 किमी दूर, ₹218 करोड़ की लागत।
लद्दाख के पूर्वी क्षेत्र में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण न्योमा एयरबेस बुधवार से पूर्ण रूप से ऑपरेशनल हो गया है। भारतीय वायुसेना (IAF) के प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने मंगलवार को इसका उद्घाटन किया और स्वयं नोएडा के हिंडन एयरबेस से C-130J सुपर हरक्यूलिस ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उड़ाकर न्योमा में सफल लैंडिंग की। यह एयरबेस चीन की वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो भारत की सीमा सुरक्षा को मजबूत बनाने में निर्णायक भूमिका निभाएगा।
उद्घाटन समारोह और पहली लैंडिंग; उद्घाटनकर्ता: एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने खुद पायलट की भूमिका निभाई। उनके साथ पश्चिमी वायु कमान के प्रमुख एयर मार्शल जितेंद्र मिश्रा भी विमान में सवार थे।
उड़ान विवरण: हिंडन एयरबेस (नोएडा) से उड़ान भरकर न्योमा पहुंचे। यह पहली आधिकारिक लैंडिंग थी, जो एयरबेस की क्षमता का प्रदर्शन करती है।
समारोह: उद्घाटन के दौरान वायुसेना के वरिष्ठ अधिकारी, स्थानीय प्रशासन और सीमा सैनिक मौजूद रहे। यह आयोजन भारत की रक्षा तैयारियों का प्रतीक माना जा रहा है।
एयरबेस की तकनीकी विशेषताएंऊंचाई: 13,710 फीट (लगभग 4,179 मीटर) – दुनिया के सबसे ऊंचे ऑपरेशनल एयरबेसों में से एक। इससे ऊपर केवल कुछ चुनिंदा एयरस्ट्रिप्स (जैसे दौलत बेग ओल्डी) हैं।
रनवे: 2.7 किलोमीटर लंबा, जो लड़ाकू विमानों (फाइटर जेट्स), ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर्स के लिए उपयुक्त है।
क्षमता: तेजी से सैनिकों की तैनाती।,हथियारों, गोला-बारूद और रसद की आपूर्ति।,आपातकालीन निकासी और चिकित्सा सहायता।
निर्माण लागत: करीब ₹218 करोड़। भारतीय सीमा सड़क संगठन (BRO) और वायुसेना की संयुक्त टीम ने कठिन मौसम व भू-आकृति में इसे पूरा किया।
नामकरण: 'मधु न्योमा' – एयरबेस के निकट स्थित मधु गांव के नाम पर। न्योमा क्षेत्र लद्दाख का एक दूरस्थ हिस्सा है, जहां तापमान शून्य से नीचे रहता है।
रणनीतिक महत्व; भौगोलिक स्थिति: LAC से 25 किमी दूर, चुशुल और डेमचोक सेक्टर के निकट। 2020 के गलवान संघर्ष के बाद यह क्षेत्र संवेदनशील हो गया है।
सैन्य लाभ:चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की गतिविधियों पर नजर।,लेह से आगे की त्वरित पहुंच, जहां पहले दौलत बेग ओल्डी (DBO) मुख्य आधार था।
हवाई श्रेष्ठता: फाइटर जेट्स जैसे सुखोई-30 MKI या राफेल की तैनाती संभव।,लॉजिस्टिक्स क्रांति: सड़क मार्ग से 2-3 दिन लगने वाला कार्य अब घंटों में।
पृष्ठभूमि: 1962 भारत-चीन युद्ध के बाद से क्षेत्र में आधारभूत संरचना विकसित की जा रही है। न्योमा को 2010 से एडवांस लैंडिंग ग्राउंड (ALG) के रूप में अपग्रेड किया गया, अब पूर्ण एयरबेस।
निर्माण की चुनौतियां और उपलब्धियां; कठिनाइयां: उच्च ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी, कड़ाके की ठंड (-40°C तक), भूस्खलन और सीमित निर्माण सामग्री।
समयसीमा: योजना 2018 में शुरू, COVID-19 और LAC तनाव के बावजूद समय पर पूरा।
तकनीक: विशेष रनवे सामग्री जो ठंड में नहीं फटती; नाइट लैंडिंग सुविधाएं।
भविष्य की योजनाएं; चरणबद्ध विस्तार: हैंगर, रडार सिस्टम और मिसाइल डिफेंस यूनिट्स।,अन्य ALG: लेह, थोइसे, फुकचे आदि को मजबूत करना।,
समग्र रक्षा: थलसेना और ITBP के साथ समन्वय, ड्रोन ऑपरेशंस के लिए आदर्श।