किसान की बेटी ने तोड़ी रूढ़ियां, ताइवान में 13 सितंबर से शुरू होने वाले टूर्नामेंट में दिखाएगी दम

बाड़मेर की सुशीला खोथ, जो बकरियां चराते हुए रग्बी की प्रैक्टिस करती थीं, अब 13 सितंबर 2025 से ताइवान में एशिया रग्बी कप में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी। परिवार और समाज की रूढ़ियों को तोड़कर, उन्होंने कठिनाइयों पर विजय पाई और सपनों को पंख दिए।

Sep 10, 2025 - 13:57
किसान की बेटी ने तोड़ी रूढ़ियां, ताइवान में 13 सितंबर से शुरू होने वाले टूर्नामेंट में दिखाएगी दम

बाड़मेर के छोटे से गांव भूरटिया में, जहां लड़कियों को घर के काम तक सीमित रखने की परंपरा रही है, सुशीला खोथ ने अपने जुनून और जिद से नया इतिहास रच दिया है। अंडर-18 भारतीय लड़कियों की रग्बी टीम में चुनी गई सुशीला 13 सितंबर, 2025 से ताइवान में होने वाले एशिया रग्बी कप में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी। बकरियां चराने से लेकर रग्बी के मैदान तक का उनका सफर हौसले, परिवार के समर्थन और अटूट इच्छाशक्ति की मिसाल है।

भूरटिया में रूढ़ियों को चुनौती

राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, भूरटिया की छात्रा सुशीला एक साधारण किसान परिवार से आती हैं। उनके माता-पिता, गणेश कुमार खोथ और बाली देवी, खेती और पशुपालन से घर चलाते हैं। उस गांव में, जहां लड़कियों का घर से बाहर निकलकर खेलना असामान्य है, सुशीला का रग्बी के प्रति जुनून शुरू में परिवार और समाज के लिए हैरानी का सबब था।

उनकी दादी किस्तूरी बताती हैं, “हमने उसे बकरियां चराने भेजा, लेकिन वो कपड़ों में गेंद छिपाकर प्रैक्टिस करती थी। हमारे पास फुटबॉल खरीदने के पैसे नहीं थे, तो उसने कपड़े की गेंद बनाकर खेला। हम खूब मना करते थे कि ये लड़कों का खेल है, लेकिन वो अपनी जिद पर अड़ी रही। आज उसने हमें अमर कर दिया।”

आर्थिक और सामाजिक बाधाओं को पार करना

सुशीला का राष्ट्रीय टीम में चयन होने पर सबसे बड़ी चुनौती थी आर्थिक तंगी। उनके दादाजी ने शुरू में मना कर दिया था, क्योंकि महंगी रग्बी किट और यात्रा का खर्च उठाना मुश्किल था। लेकिन सुशीला की जिद और वादा—“मैं जीतकर लौटूंगी”—ने उनका दिल पिघला दिया। गणेश बताते हैं, “हमने बकरियां बेचकर उसकी किट, प्रशिक्षण और यात्रा का इंतजाम किया।”

सामाजिक दबाव भी कम नहीं था। पड़ोसियों ने ताने मारे, “तुम्हारी बेटी छोटे कपड़ों में दौड़ रही है, कुछ कहते क्यों नहीं?” गणेश ने जवाब दिया, “हमने सुशीला का हौसला देखा और उसे खेलने दिया। उसने साबित किया कि बेटियां भी वो कर सकती हैं, जो परिवार लड़कों से उम्मीद करता है।”

रग्बी में उभरता सितारा

सुशीला ने अप्रैल 2022 में कोच कौशलाराम विराट के मार्गदर्शन में रग्बी शुरू की। शुरुआत में स्कूल में दो घंटे प्रैक्टिस करती थीं, फिर नेशनल स्तर पर जाने के बाद सुबह-शाम चार घंटे। रोजाना भूरटिया गांव और घर के बीच डेढ़ किलोमीटर के चार चक्कर दौड़कर उन्होंने अपनी सहनशक्ति बढ़ाई।

उनकी उपलब्धियां प्रभावशाली हैं:

  • पांच बार राष्ट्रीय स्तर पर चयन: राजस्थान का प्रतिनिधित्व।
  • एसजीएफआई नेशनल गेम्स (2023-24, 2024-25): राज्य स्तर पर स्वर्ण पदक और राष्ट्रीय स्तर पर भागीदारी।
  • खेलो इंडिया वीमेंस टूर्नामेंट 2024: कांस्य पदक और टूर्नामेंट की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी।
  • राष्ट्रीय ओपन रग्बी (अंडर-15, अंडर-17): राजस्थान का प्रतिनिधित्व।
  • थाईलैंड मैत्री मैच: भारत के लिए खेलीं।
  • कोलकाता में इंडिया कैंप: एशिया कप की ट्रेनिंग।

प्रिंसिपल महेश कुमार कहते हैं, “सुशीला का पांच बार राष्ट्रीय स्तर पर चयन और खेलो इंडिया में कांस्य पदक उन्हें असाधारण बनाता है। वह हमारे लिए प्रेरणा हैं।”

बड़े सपनों की उड़ान

सुशीला का सपना एशिया और विश्व स्तर पर भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतना है। वह चाहती हैं कि भूरटिया में राष्ट्रीय स्तर का रग्बी स्टेडियम बने, ताकि और खिलाड़ी तैयार हो सकें। “जब बकरी मेमने को जन्म देती थी, तो परिवार तय करता था कि उसे बेचकर मेरी ट्रेनिंग और किट का इंतजाम करेंगे,” सुशीला बताती हैं। उनका यह सफर दर्शाता है कि आर्थिक, सामाजिक या सांस्कृतिक बाधाएं हौसले के सामने टिक नहीं सकतीं।

बदलाव की मशाल

सुशीला की कहानी केवल व्यक्तिगत जीत नहीं, बल्कि भूरटिया और पूरे समाज के लिए बदलाव की मशाल है। उनके पिता कहते हैं, “लोग कहते हैं कि बेटियां बोझ होती हैं, लेकिन सुशीला ने दिखाया कि बेटियां देश का नाम रोशन कर सकती हैं। देश के सबसे बड़े पद पर भी एक महिला हैं, फिर हम अपनी बेटियों को क्यों रोकें?”

12 अन्य खिलाड़ियों के साथ, जिनमें राजस्थान की दो और बेटियां शामिल हैं, सुशीला ताइवान में मैदान पर उतरेंगी। बकरियां चराते हुए गुपचुप प्रैक्टिस से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच तक, सुशीला खोथ ने साबित कर दिया है कि जुनून और मेहनत से हर परंपरा को तोड़ा जा सकता है।

Yashaswani Journalist at The Khatak .