विजयादशमी पर शोक मनाएंगे रावण के वंशज: लंका से भारत आए, दहन के बाद बदलते हैं जनेऊ, बोले उनके गुणों की करते पूजा
पूरे देश में विजयादशमी का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में धूमधाम से मनाया जा रहा है, जहां रावण के पुतले दहन की रौनक है। लेकिन राजस्थान के जोधपुर में एक अनोखी सांस्कृतिक परंपरा देखने को मिल रही है। यहां के श्रमाली गोधा ब्राह्मण समुदाय, जो खुद को लंका नरेश रावण के वंशज मानते हैं, इस दिन शोक सभा आयोजित कर रहे हैं। वे रावण को महान विद्वान, शिव भक्त और ब्राह्मण राजा के रूप में पूजते हैं। मंदोदरी के विवाह के लिए लंका से भारत आए इन वंशजों की यह प्रथा मंडोर को रावण का ससुराल मानकर सदियों से चली आ रही है।
अमरनाथ महादेव मंदिर में पूजा-अर्चना और श्राद्ध रस्में: दहन के धुएं को देख स्नान कर जनेऊ बदलना
जोधपुर के किला रोड स्थित अमरनाथ महादेव मंदिर परिसर में रावण मंदिर में आज विशेष पूजा का आयोजन हुआ। दशहरे के दिन रावण, मंदोदरी और मेघनाद की मूर्तियों की स्थापना कर अभिषेक किया गया। जब शहर में रावण का पुतला दहन होता है, तो समुदाय के सदस्य धुएं को देखकर स्नान करते हैं और पुरुष जनेऊ बदल लेते हैं, जैसे अपने पूर्वज की विदाई कर रहे हों। इसके बाद श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान की रस्में निभाई जाती हैं। मंदिर के पुजारी कमलेश दवे ने बताया, "रावण वेदों के ज्ञाता और शिव के परम भक्त थे। हम उनके गुणों की पूजा करते हैं, न कि उनके पतन का उत्सव। मंदोदरी से उनका विवाह मंडोर में ही हुआ था, इसलिए यह शोक का दिन है जहां हम उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।" यह परंपरा मंडोर के रावण की छावरी से जुड़ी है, जिसे पुरातत्व विभाग ने प्राचीन स्मारक घोषित किया है
मंदोदरी विवाह से जुड़ी ऐतिहासिक मान्यता: लंका से बसे वंशज, अब भी जीवित रखते हैं शोक सभा
मान्यता के अनुसार, मंदोदरी के विवाह के लिए लंका से गोढ़ा गोत्र के ब्राह्मण मंडोर पहुंचे और यहीं बस गए। विवाह के बाद रावण लंका लौटे, लेकिन ये परिवार राजस्थान में ही रह गए। जोधपुर, फलोदी और गुजरात के कुछ क्षेत्रों में बसे ये वंशज दशहरे पर उत्सव के बजाय शोक सभा करते हैं। मंडोर को रावण का ससुराल माना जाता है, जहां उन्होंने सात फेरे लिए थे। समुदाय के बुजुर्गों का कहना है कि रावण की बुद्धिमत्ता और भक्ति आज भी प्रासंगिक है, इसलिए वे उनके सम्मान में मंदिर बनाते हैं। इस वर्ष भी सैकड़ों परिवार इस परंपरा का पालन कर रहे हैं, जो भारतीय संस्कृति की विविधता को उजागर करती है।
अन्य स्थानों पर भी रावण पूजा की परंपराएं: बिसरख, मंदसौर और विदिशा में अलग-अलग रीति-रिवाज
यह अनोखी परंपरा जोधपुर तक सीमित नहीं। उत्तर प्रदेश के बिसरख गांव में रावण के वंशज दशहरे पर प्रार्थना करते हैं, न कि पुतला दहन। मध्य प्रदेश के मंदसौर में रावण को दामाद मानकर पूजा होती है, क्योंकि यहां मंदोदरी का पैतृक घर माना जाता है। वहीं, विदिशा में रावण को बाबा के रूप में पूजा जाता है, जबकि इंदौर में राम के साथ ही उनकी आराधना की जाती है। विजयादशमी पर ये विविधताएं दर्शाती हैं कि एक ही पर्व को भारत के अलग-अलग हिस्सों में भिन्न तरीके से निभाया जाता है।