देश ने खोया बाघों का सबसे बड़ा संरक्षक: वाल्मीकि थापर का 73 साल की उम्र में निधन
रणथंभौर से सरिस्का तक, पांच दशक तक बाघों की रक्षा में जुटे रहे; कैंसर से थे पीड़ित..

भारत के प्रसिद्ध वन्यजीव संरक्षणवादी, लेखक और बाघों के अथक संरक्षक वाल्मीकि थापर का शनिवार सुबह निधन हो गया। वे 73 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से कैंसर से पीड़ित थे। उन्होंने दिल्ली स्थित अपने घर में अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार शनिवार दोपहर 3:30 बजे दिल्ली के लोधी श्मशान घाट पर किया जाएगा।
वाल्मीकि थापर ने अपने जीवन के पांच दशकों से ज्यादा समय भारतीय जंगलों, खासकर बाघों की रक्षा में बिताया। उनका सबसे बड़ा योगदान राजस्थान के रणथंभौर नेशनल पार्क में रहा, जहां उन्होंने बाघों के संरक्षण के लिए कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम किया।
150 से अधिक सरकारी समितियों का हिस्सा रहे
बाघों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इस बात से समझी जा सकती है कि वे अब तक 150 से ज्यादा सरकारी समितियों और टास्क फोर्स के सदस्य रह चुके थे। इनमें नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ शामिल है, जिसकी अध्यक्षता देश के प्रधानमंत्री करते हैं। साल 2005 में यूपीए सरकार द्वारा गठित टाइगर टास्क फोर्स में भी वे शामिल किए गए थे। इस टास्क फोर्स का गठन उस समय हुआ था जब सरिस्का टाइगर रिजर्व से बाघ रहस्यमय तरीके से गायब हो गए थे।
परिवार और शिक्षा से लेकर जंगल तक का सफर
वाल्मीकि थापर का जन्म एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। वे जाने-माने पत्रकार रोमेश थापर के बेटे और प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर के भाई थे। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस कॉलेज से समाजशास्त्र में गोल्ड मेडल के साथ स्नातक की पढ़ाई की थी। उनकी पत्नी थीं थिएटर कलाकार संजना कपूर, जो प्रसिद्ध अभिनेता शशि कपूर की बेटी हैं।
वन्यजीवों से उनका जुड़ाव यूं ही नहीं था। उन्हें इस क्षेत्र में फतेह सिंह राठौर जैसे वरिष्ठ संरक्षणवादी का मार्गदर्शन मिला, जो प्रोजेक्ट टाइगर के मुख्य सदस्यों में से एक थे। फतेह सिंह ने ही उन्हें रणथंभौर के जंगलों से परिचित करवाया और बाघों की ज़िंदगी को नज़दीक से समझने की प्रेरणा दी।
बाघों की आवाज़ अब एक सच्चे साथी को याद करेगी
वाल्मीकि थापर ने अवैध शिकार के खिलाफ न सिर्फ अभियान चलाए, बल्कि बाघों के प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा और पुनर्निर्माण के लिए सख्त कानूनों की वकालत की। उनकी दर्जनों किताबें, डॉक्यूमेंट्री और शोध आज भी वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में मार्गदर्शक मानी जाती हैं।
उनके निधन से देश ने पर्यावरण संरक्षण की दुनिया में एक अमूल्य विरासत को खो दिया है। लेकिन उनकी सोच, उनका समर्पण और उनका संघर्ष आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा।