संसद में संविधान संशोधन बिल: जेल से सरकार पर पाबंदी, बहुमत की जंग

केंद्र सरकार का संविधान संशोधन बिल, जो 30 दिन से अधिक की न्यायिक हिरासत में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों की स्वतः बर्खास्तगी का प्रावधान करता है, संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया है। विपक्ष इसका कड़ा विरोध कर रहा है, इसे असंवैधानिक और संघीय ढांचे पर हमला बता रहा है। संसद में विशेष बहुमत और आधे राज्यों की सहमति जरूरी है, लेकिन एनडीए के पास पर्याप्त संख्या नहीं है। बिना विपक्षी समर्थन के बिल पारित करना मुश्किल है। विश्लेषक इसे विपक्ष को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरने की रणनीति मान रहे हैं।

Aug 21, 2025 - 17:55
संसद में संविधान संशोधन बिल: जेल से सरकार पर पाबंदी, बहुमत की जंग

केंद्र सरकार द्वारा पेश किया गया एक संविधान संशोधन बिल, जिसके तहत तीस दिन से अधिक की न्यायिक हिरासत में रहने वाले प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों की स्वतः बर्खास्तगी का प्रावधान है, अब संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा जा रहा है। इस बिल को शीतकालीन सत्र के पहले दिन अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी, जिसके बाद इसे संसद में पारित करने की प्रक्रिया शुरू होगी। लेकिन क्या यह बिल सरकार के लिए आसानी से पारित हो पाएगा? संसद के मौजूदा आंकड़े और विपक्ष का रुख देखकर यह बेहद मुश्किल नजर आता है।

बिल के पीछे का मकसद और विपक्ष का तीखा विरोध

यह बिल सरकार की ओर से भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा कदम माना जा रहा है, लेकिन विपक्ष इसे संघीय ढांचे पर हमला और पूरी तरह असंवैधानिक करार दे रहा है। विपक्ष का तर्क है कि भारतीय न्याय व्यवस्था में किसी व्यक्ति को तब तक दोषी नहीं माना जा सकता, जब तक उसका अपराध सिद्ध न हो। कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि केंद्र सरकार इस बिल के जरिए जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर विपक्षी शासित राज्यों की सरकारों को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है। पिछले 11 वर्षों में जांच एजेंसियों के कथित दुरुपयोग का हवाला देते हुए विपक्ष का आरोप है कि यह बिल राजनीतिक प्रतिशोध का हथियार है।

संसद में विशेष बहुमत की चुनौती

संविधान संशोधन के लिए अनुच्छेद 368 के तहत दोनों सदनों—लोकसभा और राज्यसभा—में विशेष बहुमत की जरूरत होती है। इसके लिए दो स्तरों पर समर्थन चाहिए: पहला, सदन की कुल सदस्य संख्या का 50% से अधिक (लोकसभा में 542 में से कम से कम 272 और राज्यसभा में 239 में से कम से कम 120 सांसदों का समर्थन), और दूसरा, उपस्थित और मतदान करने वाले सांसदों का दो-तिहाई बहुमत। उदाहरण के लिए, अगर लोकसभा में सभी 542 सांसद उपस्थित हों, तो कम से कम 361 सांसदों का समर्थन चाहिए। इसी तरह, अगर राज्यसभा में सभी 239 सांसद मौजूद हों, तो 160 सांसदों का समर्थन जरूरी होगा।

वर्तमान में एनडीए के पास लोकसभा में 293 और राज्यसभा में 132 सांसद हैं। यह संख्या संविधान संशोधन के लिए आवश्यक बहुमत से काफी कम है। बिना कांग्रेस जैसी प्रमुख विपक्षी पार्टियों के समर्थन के इस बिल को पारित करना सरकार के लिए लगभग असंभव होगा।

राज्यों की सहमति भी जरूरी

यह बिल संघीय ढांचे को प्रभावित करता है, इसलिए इसे संसद से पारित होने के बाद कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं से सरल बहुमत के साथ अनुमोदन की जरूरत होगी। चूंकि अधिकांश राज्यों में एनडीए की सरकारें हैं, इसलिए इस चरण में सरकार को ज्यादा परेशानी नहीं होगी। लेकिन संसद में विशेष बहुमत की कमी इस बिल की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है।

विपक्ष को घेरने की रणनीति?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार इस बिल के जरिए विपक्ष को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरना चाहती है। अगर विपक्ष इस बिल का विरोध करता है, तो सरकार इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई में बाधा और राजनीति में नैतिकता की कमी के रूप में पेश कर सकती है। वहीं, विपक्षी सांसदों के पास संयुक्त संसदीय समिति में शामिल होकर महत्वपूर्ण संशोधन सुझाने का मौका होगा। उदाहरण के लिए, वे यह सुझाव दे सकते हैं कि बर्खास्तगी का नियम न्यायिक हिरासत के बजाय सजा होने पर लागू हो। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, दो साल या उससे अधिक की सजा होने पर सांसदों की सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है। विपक्ष इस समयसीमा को कम करने की मांग भी उठा सकता है।

Yashaswani Journalist at The Khatak .