सूरत के छात्रों ने बनाई AI से चलने वाली अनोखी बाइक ‘गरुड़’.
सूरत के भगवान महावीर यूनिवर्सिटी के तीन इंजीनियरिंग छात्रों—शिवम, गुरप्रीत और गणेश—ने बनाई है भविष्य की बाइक ‘गरुड़’। यह AI-पावर्ड ड्राइवरलेस इलेक्ट्रिक बाइक अपने हबलेस पहियों और साइंस-फिक्शन जैसे डिज़ाइन से सबको हैरान कर रही है। चार कैमरों और स्मार्ट सेंसर्स से लैस यह बाइक मैनुअल, रिमोट और ऑटोनॉमस मोड में चल सकती है। स्क्रैप मार्केट से लिए गए पुर्जों और वर्कशॉप में बने हिस्सों से तैयार इस बाइक को बनाने में एक साल और 1.80 लाख रुपये लगे। फास्ट चार्जिंग से 2 घंटे में तैयार होने वाली यह बाइक सेफ्टी और पर्यावरण के प्रति जागरूकता का शानदार नमूना है।

सूरत की सड़कों पर एक ऐसी बाइक दौड़ रही है, जो न सिर्फ देखने में भविष्य की तरह लगती है, बल्कि अपनी तकनीक से सबको हैरान कर रही है। इसका नाम है ‘गरुड़’—एक AI-पावर्ड ड्राइवरलेस इलेक्ट्रिक बाइक, जिसे सूरत के भगवान महावीर यूनिवर्सिटी के तीन मैकेनिकल इंजीनियरिंग छात्रों, शिवम मौर्या, गुरप्रीत अरोड़ा और गणेश पाटिल ने बनाया है। इस बाइक का फ्यूचरिस्टिक डिज़ाइन, बिना हब वाले बड़े पहिए और बिना आवाज़ के सड़क पर फर्राटा भरने की खासियत इसे हॉलीवुड की साइंस-फिक्शन फिल्मों की गाड़ियों जैसा बनाती है। जहां से यह गुजरती है, लोग रुककर इसे निहारते हैं और तस्वीरें खींचने लगते हैं।
बाइक बनाने की कहानी
शिवम मौर्या, जो तीसरे साल के मैकेनिकल इंजीनियरिंग छात्र हैं, बताते हैं कि बाइक्स और ऑटोमोबाइल्स के प्रति उनका जुनून उन्हें हमेशा कुछ नया करने के लिए प्रेरित करता है। उनका सपना था ऐसी बाइक बनाना, जो अगले 10-15 सालों तक लोगों की ज़रूरतों को पूरा कर सके। इस सपने को हकीकत में बदलने के लिए उन्होंने अपने दोस्तों, गुरप्रीत और गणेश के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। गुरप्रीत ने बाइक के डिज़ाइन की जिम्मेदारी संभाली, जबकि गणेश ने एडिटिंग और तकनीकी पहलुओं का ध्यान रखा। इस अनोखी बाइक को बनाने में उन्हें लगभग एक साल का समय लगा
क्या है खास इस बाइक में?
‘गरुड़’ कोई साधारण बाइक नहीं है। यह एक प्रोटोटाइप मॉडल है, जो न केवल इलेक्ट्रिक है, बल्कि AI की मदद से बिना ड्राइवर के भी चल सकती है। इसे तीन मोड में चलाया जा सकता है:
मैनुअल मोड: सामान्य बाइक की तरह राइडर इसे चला सकता है।
रिमोट मोड: रिमोट कंट्रोल के ज़रिए इसे दूर से ऑपरेट किया जा सकता है।
ऑटोनॉमस मोड: बिना ड्राइवर और रिमोट के यह खुद-ब-खुद चल सकती है।
बाइक में चार कैमरे और कई स्मार्ट सेंसर लगे हैं, जो इसके आसपास की स्थिति पर नज़र रखते हैं। ये सेंसर 12 फीट के दायरे में किसी भी वाहन या बाधा को पहचानकर बाइक की स्पीड को अपने आप कम कर देते हैं। इसे रासबेरी पाई मिनी कंप्यूटर से ऑपरेट किया जाता है, जो तुरंत कमांड्स का जवाब देता है। बाइक में आगे और पीछे लगे कैमरे राइडर को ट्रैफिक की लाइव स्थिति दिखाते हैं, जिससे राइडिंग और सुरक्षित हो जाती है।
स्क्रैप से बनी है आधी बाइक
इस बाइक की एक और खास बात यह है कि इसे बनाने में 50% पुर्जे सूरत के स्क्रैप मार्केट से लिए गए हैं। शिवम बताते हैं कि उन्होंने हार्ले-डेविडसन का पुराना टायर और हायाबुसा बाइक का टायर इस्तेमाल किया है। बाकी 50% पुर्जे उन्होंने अपनी वर्कशॉप में खुद तैयार किए। इस प्रोजेक्ट की कुल लागत करीब 1.80 लाख रुपये आई, जो इसे पर्यावरण के प्रति जागरूक और रिसाइक्लिंग का बेहतरीन उदाहरण बनाता है।
बैटरी और चार्जिंग‘
गरुड़’ की बैटरी को घरेलू सॉकेट से आसानी से चार्ज किया जा सकता है। इसमें दो चार्जिंग विकल्प हैं:
फास्ट चार्जिंग: सिर्फ 2 घंटे में बैटरी फुल चार्ज।
रेगुलर चार्जिंग: 4-5 घंटे में बैटरी पूरी तरह चार्ज।
बाइक में दो राइडिंग मोड—इको और स्पोर्ट—भी दिए गए हैं, जो इसे अलग-अलग ज़रूरतों के लिए उपयुक्त बनाते हैं।
सेफ्टी का पूरा ध्यान
ड्राइवरलेस तकनीक के साथ सेफ्टी सबसे बड़ा सवाल होता है। शिवम का कहना है कि उन्होंने एडवांस ऑटोनॉमस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए सेफ्टी का पूरा ख्याल रखा है। बाइक के सेंसर और कैमरे हर समय सड़क की स्थिति पर नज़र रखते हैं, जिससे यह सुरक्षित और भरोसेमंद बनी रहती है।
भविष्य की योजना
फिलहाल यह बाइक एक प्रोटोटाइप है, लेकिन शिवम और उनकी टीम इसे पूरी तरह ड्राइवरलेस बनाने पर काम कर रही है। उनका मानना है कि भविष्य में ऐसी बाइक्स भारतीय सड़कों पर आम हो सकती हैं। यह प्रोजेक्ट न केवल तकनीकी नवाचार का प्रतीक है, बल्कि भारतीय युवाओं की प्रतिभा और जुनून को भी दर्शाता है।‘गरुड़’ बाइक सूरत के इन युवा इंजीनियर्स की मेहनत और रचनात्मकता का शानदार नमूना है, जो न सिर्फ तकनीक की दुनिया में भारत का नाम रोशन कर रही है, बल्कि पर्यावरण के प्रति जागरूकता और रिसाइक्लिंग की ताकत को भी सामने ला रही है।