पटना में CWC की बैठक से बढ़ी हलचल: विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने भरी सियासी हुंकार
पटना में 24 सितंबर 2025 को होने वाली कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सियासी रणनीति और सीट बंटवारे पर केंद्रित है। तेजस्वी यादव को CM चेहरा न घोषित करने और प्रियंका गांधी की रैली से महागठबंधन में तनाव के संकेत मिल रहे हैं।

बिहार की राजधानी पटना में 24 सितंबर 2025 को कांग्रेस कार्य समिति (CWC) की विस्तारित बैठक होने जा रही है। इस बैठक में पार्टी के शीर्ष नेता मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ-साथ कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल होंगे। इस तरह की बैठकें पहले भी विभिन्न राज्यों में हो चुकी हैं, लेकिन बिहार में इसका आयोजन विधानसभा चुनाव से ठीक पहले होने के कारण सियासी हलकों में चर्चा का विषय बन गया है।
तेलंगाना की सफलता को दोहराने की कोशिश
कांग्रेस ने इससे पहले 16 सितंबर 2023 को तेलंगाना के हैदराबाद में कार्य समिति की बैठक की थी। उस समय तेलंगाना सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने थे। पार्टी का मानना है कि हैदराबाद की बैठक और उसके बाद हुई विशाल रैली ने तेलंगाना में कांग्रेस की जीत की नींव रखी। वहां पार्टी ने 45 अतिरिक्त सीटें हासिल कीं, और उसकी सीटें 19 से बढ़कर 64 हो गईं। साथ ही, वोट प्रतिशत में भी 10.5% की बढ़ोतरी हुई। बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति) 88 सीटों से सिमटकर 39 पर आ गई। कांग्रेस अब बिहार में भी इसी तरह की रणनीति अपनाने की तैयारी में है।
बिहार में बैठक का सियासी संदेश और रणनीति
पटना में होने वाली इस बैठक का उद्देश्य केवल संगठनात्मक चर्चा तक सीमित नहीं है। कांग्रेस बिहार के प्रमुख मुद्दों जैसे बेरोजगारी, पलायन, वोट चोरी और संविधान के संरक्षण जैसे विषयों पर प्रस्ताव पारित करेगी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस इस बैठक के जरिए क्या संदेश देना चाहती है? क्या यह महागठबंधन के भीतर अपनी स्थिति मजबूत करने और सीट बंटवारे में अधिक हिस्सेदारी की रणनीति है?
सीट बंटवारे पर अनिश्चितता
महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर अभी तक कोई स्पष्ट तस्वीर सामने नहीं आई है। कुछ सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ना चाहती है, जबकि कुछ का दावा है कि पार्टी 90 सीटों की तैयारी कर रही है। पिछली बार कांग्रेस को 70 सीटें दी गई थीं, जिनमें से 20 ऐसी थीं जहां जीत की संभावना कम थी। पार्टी इस बार ऐसी सीटों पर समझौता नहीं करना चाहती और मानती है कि इन सीटों पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) भी जीत हासिल नहीं कर सकता।
तेजस्वी यादव को CM चेहरा क्यों नहीं?
सबसे अहम सवाल यह है कि कांग्रेस ने अभी तक तेजस्वी यादव को महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में घोषित क्यों नहीं किया? क्या यह सीट बंटवारे की बातचीत पूरी होने का इंतजार है? कुछ विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस दबाव की रणनीति अपना रही है। राहुल गांधी ने हाल ही में बिहार में 15 दिन बिताए और 1300 किलोमीटर की यात्रा कर 174 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया। फिर भी, तेजस्वी को औपचारिक रूप से CM चेहरा घोषित नहीं किया गया। क्या यह कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा है, जिससे वह RJD पर दबाव बनाकर अधिक सीटें हासिल कर सके?
प्रियंका गांधी की रैली और सियासी समीकरण
कार्य समिति की बैठक के बाद 26 सितंबर को प्रियंका गांधी मोतिहारी में एक बड़ी रैली को संबोधित करेंगी। खास बात यह है कि इस रैली में महागठबंधन के अन्य नेताओं की भागीदारी नहीं होगी। यह संकेत देता है कि गठबंधन के भीतर सीट बंटवारे और नेतृत्व को लेकर कुछ तनाव अभी भी बरकरार है।
बिहार में कांग्रेस की स्थिति
1990 के बाद से बिहार में कांग्रेस का कोई मुख्यमंत्री नहीं रहा, और पार्टी राज्य में चौथे नंबर की ताकत मानी जाती है। फिर भी, राहुल गांधी की सक्रियता और कार्य समिति की बैठक जैसे बड़े आयोजन यह दर्शाते हैं कि कांग्रेस बिहार में अपनी सियासी जमीन मजबूत करने की कोशिश में है। पार्टी का मानना है कि तेलंगाना की तरह बिहार में भी कार्य समिति की बैठक और उसके बाद होने वाली रैलियां जनता के बीच उत्साह पैदा करेंगी।