सैन समाज की शिक्षा के क्षेत्र में अनूठी पहल...मृत्युभोज, नशा और लैण प्रथा को कहो अलविदा – दूधू गांव से उठी बदलाव की ऐतिहासिक मशाल..
सैन समाज ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जब समाज का नेतृत्व अपने ही घर से बदलाव की शुरुआत करता है, तो सामाजिक कुरीतियों की जड़ें हिल जाती हैं।

धोरीमन्ना/दूधू।
सैन समाज ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जब समाज का नेतृत्व अपने ही घर से बदलाव की शुरुआत करता है, तो सामाजिक कुरीतियों की जड़ें हिल जाती हैं।
स्व. श्री टीकमारामजी सैन (दूधू) के गंगा प्रसादी अवसर पर उनके पुत्र ताराचंद सैन (अध्यक्ष, सैन समाज), प्रकाशचंद (अध्यापक), चेतनलाल (फार्मासिस्ट), जगदीश, और धर्मपत्नी सुआदेवी ने मिलकर समाज में व्याप्त मृत्युभोज, नशावृत्ति और लैण प्रथा जैसी कुप्रथाओं को पूर्णतः बंद करने का साहसिक निर्णय लिया।
गंगा प्रसादी पर समाज के लिए शिक्षा की ऐतिहासिक सौगात...
सैन समाज छात्रावास, धोरीमन्ना में ₹5 लाख की लागत से प्रोल निर्माण
सैन समाज की विभिन्न लाइब्रेरियों में 1000 प्रतियोगिता परीक्षा पुस्तकें
समाज के विभिन्न मंदिरों में ₹5100/- की सहयोग राशि – कुल ₹25,500/- का धार्मिक सहयोग
यह पहल न केवल सामाजिक जागरूकता का प्रतीक बनी, बल्कि शिक्षा को प्राथमिकता देते हुए सैन समाज के भविष्य को एक सशक्त दिशा देने का कार्य किया गया।
कार्यक्रम में उपस्थित रहे समाज के दिग्गज
गंगा प्रसादी आयोजन में सैन समाज की 9 पट्टियों से जुड़े गणमान्य नागरिकों ने भाग लिया।
प्रमुख रूप से उपस्थित रहे
कृष्णानंद गिरी बापजी (आलम गौशाला, धोरीमन्ना)
भंवरलाल सैन (सरपंच, खिंधासर)
रूघाराम सैन (तहसीलदार, नागौर)
सुरेन्द्र भाटी (एडवोकेट, हाईकोर्ट)
मूलाराम बनभेरू (समाज संरक्षक)
सवाई सैन (व्याख्याता), गोगाराम (अध्यापक), उमेश टाक, हनुमान रनोदर, मोहनलाल जी कुल राव, और महेंद्र निंबाज सहित सैकड़ों गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
सामाजिक सुधार का संदेश – अपने घर से करें शुरुआत
जब समाज का मुखिया खुद अपने घर में कुरीतियों पर रोक लगाता है, तो वह समाज में एक रोल मॉडल बन जाता है। ताराचंद सैन ने अमल-मनुहार, बीड़ी-जर्दा की थाली, डोडा-अफीम जैसी नशा सामग्री और मृत्युभोज व लैण प्रथा को पूरी तरह से नकारते हुए गंगा प्रसादी और डांगड़ी रात का आयोजन कर यह सिद्ध किया कि समाज में बदलाव की शुरुआत दूसरे के नहीं, अपने घर से ही होनी चाहिए।
समाज के ठेकेदारों को आईना – यह है असली समाजसेवा
आज जब बहुत से लोग सिर्फ समाजसेवी कहलाने की होड़ में लगे हैं, वहीं ताराचंद जी जैसे लोग असल में समाज को दिशा देने का काम कर रहे हैं। यह कदम उन लोगों के लिए सीख है जो बदलाव की बात तो करते हैं लेकिन शुरुआत अपने घर से नहीं करते।