झालावाड़ हादसा: CM का दुख, शिक्षा मंत्री का जांच का वादा, पूर्व CM ने पूछा- मासूमों की जान का जिम्मेदार कौन?
झालावाड़ के मनोहरथाना में पीपलोदी सरकारी स्कूल की इमारत ढहने से 5 बच्चों की मौत और 30 से अधिक घायल, सरकार ने जांच और मुफ्त इलाज का वादा किया।

शुक्रवार सुबह झालावाड़ के मनोहरथाना ब्लॉक में पीपलोदी सरकारी स्कूल की इमारत ढहने से हुए दिल दहलाने वाले हादसे में 5 बच्चों की मौत हो गई और 30 से अधिक बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए। मृतक बच्चों की पहचान पायल (14) पुत्री लक्ष्मण, प्रियंका (14) पुत्री मांगीलाल, कार्तिक (8) पुत्र हरकचंद, हरीश (8) पुत्र बाबूलाल और एक अन्य बच्चे के रूप में हुई है। यह हादसा सुबह करीब 8 बजे हुआ, जब सातवीं कक्षा के बच्चे कक्षा में पढ़ रहे थे। ग्रामीणों और शिक्षकों ने तुरंत बचाव कार्य शुरू किया, जिसके बाद प्रशासन और आपदा राहत दल भी मौके पर पहुंचे।
मनोहरथाना अस्पताल के डॉ. कौशल लोढ़ा ने बताया कि 35 घायल बच्चों को अस्पताल लाया गया, जिनमें से 11 की हालत गंभीर होने के कारण उन्हें जिला अस्पताल रेफर किया गया। घायल बच्चों के परिजन अस्पताल में अपने बच्चों का हाल जानने के लिए जमा हो गए, जिससे वहां भावुक दृश्य देखने को मिले।
सरकार का रुख: जांच के आदेश
राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने हादसे पर गहरा दुख जताया और कहा, “सभी घायल बच्चों का इलाज सरकारी खर्चे पर किया जाएगा। इस हादसे की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दे दिए गए हैं। सभी वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुंच चुके हैं।” उन्होंने जिला कलेक्टर और शिक्षा अधिकारियों से घटना की विस्तृत जानकारी मांगी है।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने भी इस त्रासदी पर शोक व्यक्त किया और जांच के निर्देश दिए। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “झालावाड़ के पीपलोदी स्कूल हादसे में मासूम बच्चों की मौत से मन व्यथित है। घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूं। प्रशासन को त्वरित राहत और बचाव कार्य के निर्देश दिए गए हैं।”
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी हादसे पर दुख जताते हुए बच्चों के जल्द स्वस्थ होने की कामना की। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि जर्जर स्कूल भवनों की अनदेखी का परिणाम है। सरकार को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।”
जर्जर भवन और लापरवाही का सवाल
ग्रामीणों ने बताया कि स्कूल की इमारत कई सालों से जर्जर हालत में थी। हाल की बारिश ने इसकी स्थिति को और खराब कर दिया था। कई बार स्थानीय लोगों ने प्रशासन से इसकी मरम्मत की मांग की थी, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। प्रारंभिक जांच में सामने आया कि इमारत की छत और दीवारें कमजोर हो चुकी थीं, जिसके कारण यह हादसा हुआ।