राजस्थान के सरकारी स्कूलों में संकट: शिक्षकों की कमी और ढहती इमारतें, बच्चों का भविष्य खतरे में
राजस्थान के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी और जर्जर भवनों के कारण शिक्षा संकट गहरा रहा है, जैसा कि झालावाड़ हादसे में चार बच्चों की मौत से उजागर हुआ। तत्काल भर्ती और सुविधाओं में सुधार की जरूरत है।

राजस्थान के सरकारी स्कूलों की स्थिति दिन-ब-दिन चिंताजनक होती जा रही है। शिक्षकों की भारी कमी, जर्जर भवनों का खतरा और बुनियादी सुविधाओं का अभाव शिक्षा व्यवस्था को कमजोर कर रहे हैं। हाल ही में झालावाड़ जिले के पीपलोदी गांव में एक सरकारी स्कूल की छत ढहने से सात बच्चों की मौत और 30 से अधिक के घायल होने की घटना ने इस संकट को और उजागर किया है। यह लेख राजस्थान के सरकारी स्कूलों की वर्तमान स्थिति, शिक्षक कमी और स्कूल भवनों की दुर्दशा पर शोध आधारित जानकारी प्रस्तुत करता है।
शिक्षकों की कमी: एक दीर्घकालिक समस्या
राजस्थान के शिक्षा विभाग में शिक्षकों के रिक्त पदों की संख्या चौंका देने वाली है। 2024 के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार:
-
स्कूल व्याख्याता (ग्रेड I): 21,121 पद रिक्त
-
वरिष्ठ अध्यापक (ग्रेड II): 33,104 पद रिक्त
-
तृतीय श्रेणी शिक्षक (ग्रेड III): 29,272 पद रिक्त
इसके अलावा, कंप्यूटर अनुदेशकों और विशेष विषयों के शिक्षकों के भी हजारों पद खाली हैं। 2019 में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान में 12,000 से अधिक सरकारी स्कूल केवल एक शिक्षक के भरोसे चल रहे थे। यह स्थिति 2025 तक भी पूरी तरह नहीं सुधरी है। ग्रामीण क्षेत्रों में कई स्कूलों में कोई शिक्षक ही नहीं है, जिसके कारण बच्चों को बिना मार्गदर्शन के पढ़ाई करनी पड़ती है।
शिक्षक-छात्र अनुपात भी आदर्श से काफी दूर है। राइट टू एजुकेशन (RTE) एक्ट के अनुसार, प्राथमिक स्कूलों में यह अनुपात 30:1 और माध्यमिक स्कूलों में 50:1 होना चाहिए, लेकिन राजस्थान के कई स्कूलों में यह अनुपात 100:1 तक पहुंच जाता है। इससे शिक्षकों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है, और बच्चों को व्यक्तिगत ध्यान नहीं मिल पाता।
जर्जर स्कूल भवन: मृत्यु का जाल
झालावाड़ के पीपलोदी गांव में 25 जुलाई 2025 को सरकारी उच्च प्राथमिक स्कूल की छत ढहने से सात बच्चों की जान चली गई और 30 से अधिक घायल हो गए। यह घटना सुबह 7:45 बजे उस समय हुई, जब बच्चे प्रार्थना सभा के लिए इकट्ठा हो रहे थे। स्थानीय लोगों के अनुसार, स्कूल भवन 20 साल पुराना था और इसकी स्थिति लंबे समय से जर्जर थी। भारी बारिश ने इस कमजोर संरचना को और कमजोर कर दिया।
यह कोई अकेली घटना नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में राजस्थान में स्कूल भवनों के ढहने की कई घटनाएं सामने आई हैं:
-
2015: राजसमंद, बूंदी, कोटा, दौसा, बारां और टोंक जिलों में शिक्षकों की कमी और जर्जर भवनों के कारण 113 स्कूलों को तीन महीने में बंद करना पड़ा।
-
2025: जनवरी में जयपुर, अजमेर, पाली, बीकानेर, हनुमानगढ़, उदयपुर और जोधपुर जैसे जिलों में लगभग 450 स्कूल शिक्षकों की कमी और खराब बुनियादी ढांचे के कारण बंद रहे।
-
पिछले दशक: बाड़मेर, राजसमंद और टोंक में स्कूल बंद होने और अभिभावकों के विरोध प्रदर्शनों की खबरें सामने आई हैं।
आश्चर्यजनक रूप से, झालावाड़ घटना से मात्र 10 दिन पहले शिक्षा विभाग ने सभी स्कूलों में भौतिक सुरक्षा जांच को अनिवार्य किया था। फिर भी, स्थानीय ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ने इस स्कूल को "सुरक्षित" घोषित कर दिया था, जो प्रशासनिक लापरवाही को दर्शाता है।
बुनियादी सुविधाओं का अभाव
राजस्थान के सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी एक गंभीर समस्या है। 2011 की जनगणना के अनुसार, केवल 50% स्कूल ही RTE के मानकों को पूरा करते थे। वर्तमान में भी कई स्कूलों में:
-
पर्याप्त कक्षाएं, शौचालय और पीने का पानी नहीं है।
-
ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की अनुपलब्धता आम है।
-
स्कूल भवनों की मरम्मत के लिए बजट की कमी बनी रहती है।
ग्रामीण स्कूलों में ड्रॉपआउट दर भी चिंताजनक है। 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार, प्राथमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर 8% और माध्यमिक स्तर पर 15% तक है। इसका एक प्रमुख कारण शिक्षकों की कमी और खराब सुविधाएं हैं, जो बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर करती हैं।
शिक्षा संकट के कारण
-
धीमी भर्ती प्रक्रिया: राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) और शिक्षा विभाग की भर्ती प्रक्रियाएं अक्सर देरी और जटिलताओं का शिकार होती हैं। 2024-25 में 3,225 स्कूल लेक्चरर, 6,500 वरिष्ठ अध्यापक और 10,000 तृतीय श्रेणी शिक्षक पदों की भर्ती शुरू की गई, लेकिन यह रिक्तियों की तुलना में नाकافی है।
-
ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों की अनिच्छा: ग्रामीण स्कूलों में सुविधाओं की कमी और प्रोत्साहन के अभाव में शिक्षक वहां जाने से कतराते हैं।
-
प्रशासनिक लापरवाही: झालावाड़ जैसे हादसों से पता चलता है कि स्कूल भवनों की स्थिति की नियमित जांच नहीं हो रही। हाल के एक आदेश में सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को स्कूल भवनों का निरीक्षण करने को कहा गया था, लेकिन इसका पालन नहीं हुआ।
-
सीमित बजट: सरकारी स्कूलों के लिए शिक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा शहरी क्षेत्रों में खर्च हो रहा है, जबकि ग्रामीण स्कूल उपेक्षित हैं।
सरकारी प्रयास और उनकी सीमाएं
राजस्थान सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं, लेकिन ये अपर्याप्त साबित हो रहे हैं:
-
भर्ती प्रयास: 2024-25 में शुरू की गई भर्तियां रिक्तियों का केवल एक हिस्सा ही भर पा रही हैं।
-
बजट आवंटन: झालावाड़ हादसे के बाद शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने जर्जर स्कूल भवनों की मरम्मत के लिए 200 करोड़ रुपये के बजट की घोषणा की। हालांकि, यह राशि हजारों स्कूलों की मरम्मत के लिए पर्याप्त नहीं है।
-
डिजिटल पहल: RTE पोर्टल और शाला दर्पण जैसे प्लेटफॉर्म शिक्षा प्रणाली को पारदर्शी बनाने के लिए शुरू किए गए हैं, लेकिन इनका प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों तक सीमित है।
-
सुरक्षा जांच: हाल के आदेशों में स्कूल भवनों की सुरक्षा जांच अनिवार्य की गई, लेकिन इसका कार्यान्वयन कमजोर रहा है।
प्रभाव और सामाजिक चिंता
शिक्षकों की कमी और जर्जर भवनों का असर बच्चों की शिक्षा पर गहरा पड़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चे अंग्रेजी, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में पिछड़ रहे हैं, क्योंकि इनके लिए विशेष शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा, शिक्षकों को गैर-शैक्षिक कार्यों जैसे मिड-डे मील और रिकॉर्ड रखरखाव में उलझाया जाता है, जिससे उनका पढ़ाने का समय कम हो जाता है।
झालावाड़ हादसे ने सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर बहस छेड़ दी है। विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने राज्यव्यापी स्कूल भवन ऑडिट और न्यायिक जांच की मांग की है। सोशल मीडिया पर लोगों ने सरकार की जवाबदेही पर सवाल उठाए हैं, और ग्रामीण स्कूलों की उपेक्षा को "शिक्षा के साथ आपराधिक लापरवाही" करार दिया है।
इस संकट से निपटने के लिए निम्नलिखित कदम जरूरी हैं:
-
तेज और पारदर्शी भर्ती: शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को सरल और समयबद्ध करना होगा ताकि रिक्त पद जल्द भरे जाएं।
-
ग्रामीण प्रोत्साहन: ग्रामीण स्कूलों में शिक्षकों को प्रोत्साहन के रूप में अतिरिक्त भत्ते, आवास और सुविधाएं दी जाएं।
-
स्कूल भवनों का ऑडिट: सभी सरकारी स्कूल भवनों की तत्काल और नियमित जांच हो, और जर्जर भवनों की मरम्मत या पुनर्निर्माण के लिए पर्याप्त बजट आवंटित हो।
-
शिक्षा बजट में वृद्धि: ग्रामीण स्कूलों के लिए शिक्षा बजट का हिस्सा बढ़ाया जाए ताकि बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित हो सकें।
-
जवाबदेही सुनिश्चित करना: प्रशासनिक लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई हो ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।
राजस्थान के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी और जर्जर भवनों का संकट बच्चों के भविष्य को खतरे में डाल रहा है। झालावाड़ की त्रासदी ने इस गंभीर समस्या को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया है। यह समय केवल घोषणाओं और जांचों का नहीं, बल्कि ठोस और त्वरित कार्रवाई का है। अगर सरकार और प्रशासन तुरंत कदम नहीं उठाते, तो आने वाली पीढ़ियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।