"100 करोड़ का ड्रग्स साम्राज्य ढहा: कॉर्पोरेट स्टाइल में चलता था मास्टरमाइंड कमलेश का काला कारोबार"
ड्रग्स साम्राज्य का कॉर्पोरेट साम्राट: 100 करोड़ का काला कारोबार संभालने वाला मास्टरमाइंड अब हवालात में
बाड़मेर, 6 अक्टूबर 2025: बाड़मेर में नशीले पदार्थों के अवैध कारोबार को एक सुनियोजित व्यावसायिक मॉडल की तरह चलाने वाले एक प्रमुख आरोपी कमलेश उर्फ कार्तिक को पुलिस ने दबोच लिया है। यह गिरफ्तारी न केवल एक अपराधी के पतन की कहानी है, बल्कि एक ऐसी साजिश का खुलासा करती है जहां ड्रग्स का धंधा किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी की तरह संचालित हो रहा था—पूर्ण संगठनात्मक ढांचे, पदानुक्रम और बाजार रणनीतियों के साथ। अनुमानित 100 करोड़ रुपये के टर्नओवर वाले इस नेटवर्क का केंद्रबिंदु एक ऐसा व्यक्ति था, जो खुद को 'सीईओ' की तरह देखता था और बिक्री व प्रचार अभियानों की कमान स्वयं संभालता था।
कारोबार का कॉर्पोरेट मॉडल:पुलिस जांच के अनुसार, कमलेश उर्फ कार्तिक ड्रग्स के उत्पादन और वितरण को पूरी तरह से कॉर्पोरेट संरचना में ढाल चुका था। उसके पास एक समर्पित 'उत्पादन इकाई' थी, जो किसी औद्योगिक प्लांट की तर्ज पर काम करती थी। यहां नशीले रसायनों का मिश्रण और पैकेजिंग बड़े पैमाने पर होती थी, जिसमें आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता था ताकि उत्पाद की गुणवत्ता बनी रहे और बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना हो सके।संगठन में स्पष्ट भूमिकाओं का बंटवारा था: एक टीम वितरण नेटवर्क को संभालती, जो राज्य के विभिन्न शहरों से लेकर पड़ोसी राज्यों तक फैला हुआ था। एक अन्य इकाई ग्राहक संबंधों पर फोकस करती, जबकि सुरक्षा प्रोटोकॉल के तहत 'आंतरिक ऑडिट' जैसी प्रक्रियाएं चलाई जातीं ताकि किसी भी लीकेज या धोखाधड़ी को रोका जा सके। लेकिन सबसे रोचक तथ्य यह था कि मास्टरमाइंड ने खुद बिक्री और मार्केटिंग विभाग की जिम्मेदारी उठाई हुई थी। वह डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का सहारा लेता, कोडवर्ड्स से भरी गुप्त संदेश प्रणाली चलाता और यहां तक कि 'प्रमोशनल ऑफर' की योजना बनाता, जैसे कि छूट या नए ग्राहकों के लिए प्रोत्साहन। यह सब एक काले साम्राज्य को वैध व्यापार की चमक देने का प्रयास था, जहां मुनाफे का अनुमानित आंकड़ा 100 करोड़ रुपये से अधिक था—जो मुख्य रूप से सिन्थेटिक ड्रग्स जैसे एमडी और अन्य पार्टी ड्रग्स से अर्जित हो रहा था।
गिरफ्तारी का ऑपरेशन: सूझबूझ और साहस का मेल बाड़मेर पुलिस की विशेष नशीली दवाओं के खिलाफ इकाई (एटीएम टिम) ने कई महीनों की गहन निगरानी के बाद इस कार्रवाई को अंजाम दिया। मुखबिरों की टिप्स और तकनीकी साक्ष्यों के आधार पर, अधिकारियों ने आरोपी के ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की। गिरफ्तारी के दौरान उसके पास से नकदी, डिजिटल रिकॉर्ड्स और उत्पादन से जुड़े दस्तावेज बरामद हुए, जो पूरे नेटवर्क की जटिलता को उजागर करते हैं। सह-आरोपियों में से कुछ पहले ही हिरासत में थे, लेकिन यह मास्टरमाइंड का पकड़ा जाना नेटवर्क के पतन का निर्णायक मोड़ साबित हुआ एटीएम के IG विकास कुमार ने बताया कि यह कार्रवाई न केवल स्थानीय स्तर पर सीमित थी, बल्कि अंतरराज्यीय सहयोग से संभव हुई। "यह व्यक्ति अपराध को एक पेशे की तरह चला रहा था, जहां हर कदम गणना पर आधारित था। हमारी टीम ने उसके 'बिजनेस प्लान' को ही उसके खिलाफ इस्तेमाल किया," उन्होंने कहा। जांच एजेंसियां अब उसके वित्तीय लेन-देन की गहराई में उतर रही हैं, जिसमें संदिग्ध बैंक खाते और संपत्तियां शामिल हैं।
व्यापक प्रभाव: युवा पीढ़ी पर खतरा और सबक यह मामला बाड़मेर में नशीले पदार्थों के बाजार की भयावहता को रेखांकित करता है, जहां कॉलेज कैंपस से लेकर नाइटलाइफ हॉटस्पॉट्स तक ड्रग्स का जाल फैला हुआ है। ऐसे संगठित अपराधी न केवल अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि सामाजिक संरचना को भी खोखला करते हैं। गिरफ्तारी के बाद, स्थानीय प्रशासन ने जागरूकता अभियान तेज करने की घोषणा की है, जिसमें स्कूलों और युवा संगठनों को लक्षित किया जाएगा।अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि नेटवर्क के अन्य सिरे कितने मजबूत हैं, लेकिन पुलिस का दावा है कि यह सफलता एक श्रृंखला की शुरुआत है। आरोपी को रिमांड पर लिया गया है, और आगे की पूछताछ से और कई खुलासे होने की संभावना है। यह घटना एक कड़वी याद दिलाती है कि अपराध की दुनिया में भी 'कॉर्पोरेट कल्चर' घुस चुका है—और इसे तोड़ने के लिए उतनी ही सख्ती की जरूरत है।
कमलेश उर्फ कार्तिक पहले मध्य प्रदेश से अवैध हथियार राजस्थान में सप्लाई करता था। इस दौरान पहले यह मध्य प्रदेश में भी पकड़ा जा चुका है।
महाराष्ट्र के पुणे इलाके में मादक पदार्थ के साथ पकड़ा जा चुका है। पुणे जेल में उसका संपर्क बिरजू शुक्ला से हुआ था।
राजस्थान में ड्रग्स एवं एमडी की सप्लाई में रमेश और मांगीलाल को भी पकड़ लिया है। कमलेश ने महाराष्ट्र में सभी गैंग सदस्यों को बैठक एक बड़ी प्लानिंग की सो बनाई। राजू मांडा, रमेश और मांगीलाल साला बहनोई है। जबकि कमलेश और सुरेश सगे भाई है।
गैंग में सभी की अलग-अलग भूमिका थी। रमेश को फाइनेंस और ऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी थी तथा मांगीलाल को फैक्ट्री हेड और बिरजू को टेक्निकल और रिसर्च हेड बनाया था। शिव को ऑपरेशन चीफ राजू को रॉ मटेरियल और प्लांट हेड तथा गणपत को सिक्योरिटी की जिम्मेदारी दी थी। लेकिन कमलेश खुद सेल्स और मार्केटिंग हेड था। उनकी प्लानिंग के अनुसार राजस्थान में अधिकतम 20 करोड़ की एमडी सप्लाई करने का उद्देश्य था।