तिरंगा: भारत की आन, बान और शान की कहानी
तिरंगा भारत की आजादी, एकता और बलिदान का प्रतीक है, जिसे पिंगली वेंकय्या ने डिजाइन किया और 1947 में इसे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया। इसके रंग—भगवा, सफेद और हरा—साहस, शांति और समृद्धि को दर्शाते हैं।

भारत का राष्ट्रीय ध्वज, जिसे हम प्यार से तिरंगा कहते हैं, सिर्फ तीन रंगों का एक कपड़ा नहीं है। यह आजादी की लड़ाई की यादें, बलिदान और एकता की भावना को समेटे हुए है। हर साल 15 अगस्त को जब हम इसे लहराते हैं, तो मन में एक अलग ही जोश भर जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह ध्वज कैसे बना? किसने इसे डिजाइन किया? और इसमें छिपे रंगों का क्या मतलब है? आइए, आज हम तिरंगे के इतिहास की परतें खोलते हैं, जैसे कोई पुरानी किताब पढ़ रहे हों।
शुरुआती चिंगारियां: स्वतंत्रता आंदोलन के पहले ध्वज (1906-1917)
भारत की आजादी की लड़ाई में ध्वज का विचार सबसे पहले 20वीं सदी की शुरुआत में आया। 7 अगस्त 1906 को कोलकाता के पारसी बागान स्क्वायर (अब ग्रीन पार्क) में पहला राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया। यह ध्वज लाल, पीले और हरे रंग की तीन पट्टियों वाला था। ऊपर की लाल पट्टी पर आठ सफेद कमल के फूल, बीच की पीली पट्टी पर 'वंदे मातरम' लिखा हुआ और नीचे की हरी पट्टी पर सूर्य और चंद्रमा के चिन्ह थे। यह ध्वज ब्रिटिश शासन के खिलाफ उठती आवाज का प्रतीक था।
इसके बाद, 1907 में मैडम भीकाजी कामा ने पेरिस में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में एक और ध्वज फहराया। यह ध्वज भी तीन रंगों वाला था, लेकिन इसमें सप्तऋषि के सितारे और 'वंदे मातरम' का नारा शामिल था। यह ध्वज विदेशी धरती पर भारत की आजादी की मांग को गूंजाने वाला पहला था। फिर 1917 में एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने होम रूल मूवमेंट के दौरान एक नया ध्वज पेश किया, जिसमें लाल और हरी पट्टियां थीं, साथ में यूनियन जैक का चिन्ह, जो ब्रिटिश प्रभाव को दर्शाता था। इन शुरुआती ध्वजों ने राष्ट्रवाद की आग को और भड़काया।
गांधीजी का प्रभाव और स्वराज ध्वज (1921)
आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी का नाम जुड़ते ही चीजें बदलने लगीं। 1921 में, आंध्र प्रदेश के बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में कांग्रेस के सत्र के दौरान पिंगली वेंकय्या ने एक ध्वज का डिजाइन गांधीजी को सौंपा। यह ध्वज सफेद, हरा और लाल रंगों वाला था, जिसमें बीच में चरखा था – जो स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का प्रतीक था। गांधीजी ने इसे अपनाया और इसे स्वराज ध्वज नाम दिया। लेकिन गांधीजी ने सुझाव दिया कि रंगों को बदलकर हिंदू-मुस्लिम एकता को दर्शाया जाए, इसलिए लाल को भगवा में बदला गया।
यह ध्वज पूरे देश में फैल गया और सविनय अवज्ञा आंदोलन का हिस्सा बना। कल्पना कीजिए, उस समय के लोग चरखे से कपड़ा कातते हुए इस ध्वज को देखकर कितना प्रेरित होते होंगे!
परिवर्तन और आजादी की दहलीज पर (1931-1947)
1931 में कांग्रेस ने ध्वज में कुछ बदलाव किए। अब यह भगवा, सफेद और हरे रंग की तीन बराबर पट्टियों वाला था, जिसमें सफेद पट्टी पर नीले रंग का चरखा था। यह ध्वज भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) का युद्ध ध्वज भी बना। लेकिन आजादी के करीब आते ही, 1947 में संविधान सभा ने 22 जुलाई को नए ध्वज को अपनाया। चरखे की जगह अशोक चक्र ने ली, जो धर्म और प्रगति का प्रतीक है। यह बदलाव इसलिए किया गया क्योंकि चरखा सिर्फ कांग्रेस का प्रतीक लगता था, जबकि नया ध्वज पूरे राष्ट्र का होना चाहिए।
15 अगस्त 1947 को जब पंडित नेहरू ने लाल किले पर इसे फहराया, तो वह पल इतिहास बन गया। 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र बनने के बाद भी यही ध्वज जारी रहा।
रंगों का गहरा मतलब: क्यों चुने गए ये रंग?
तिरंगे के रंग सिर्फ सजावट नहीं हैं। भगवा रंग साहस और त्याग का प्रतीक है, सफेद शांति और सत्य का, जबकि हरा विश्वास और समृद्धि का। बीच में 24 तीलियों वाला अशोक चक्र जीवन की गति और धर्मचक्र को दर्शाता है। पिंगली वेंकय्या ने इन रंगों को चुनते समय भारत की विविधता को ध्यान में रखा था – हिंदू, मुस्लिम और अन्य समुदायों की एकता को।
कभी सोचा है कि अगर ये रंग न होते, तो तिरंगा कैसा लगता? ये रंग हमें याद दिलाते हैं कि आजादी कितनी मेहनत से मिली है।
डिजाइनर की कहानी: पिंगली वेंकय्या, अनसुना नायक
तिरंगे को डिजाइन करने वाले पिंगली वेंकय्या एक साधारण किसान के बेटे थे, जो आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में पैदा हुए। वे एक बहुमुखी प्रतिभा थे – भाषाविद्, भूविज्ञानी और किसान। 30 देशों के ध्वजों का अध्ययन करने के बाद उन्होंने 1921 में यह डिजाइन बनाया। गांधीजी से मिलने के बाद उन्होंने इसे परफेक्ट किया। लेकिन लंबे समय तक उनका नाम गुमनाम रहा। 2014 में भारत सरकार ने उन्हें सम्मान दिया। वेंकय्या जैसे लोग हमें सिखाते हैं कि बड़ा काम छोटे लोग भी कर सकते हैं।
तिरंगा आज भी प्रासंगिक क्यों?
तिरंगा सिर्फ एक ध्वज नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। आज जब हम इसे देखते हैं, तो वह हमें एकजुट होने की याद दिलाता है। हर स्वतंत्रता दिवस पर इसे फहराते हुए हम सोचते हैं – कितने बलिदानों से यह मिला है। उम्मीद है, यह कहानी आपको तिरंगे से और करीब लाएगी। अगली बार जब आप इसे लहराएं, तो इसके पीछे की कहानी याद रखिएगा। जय हिंद!