चाय से शुरू हुआ सफर, देश की बागडोर तक: 75वें जन्मदिन पर जानिए हीराबा के लाल नरेंद्र मोदी की अनकही कहानी
वडनगर में चाय की रेहड़ी से शुरू होकर भारत के प्रधानमंत्री तक का सफर, जो गरीबी, संघर्ष और समर्पण से वैश्विक मंच पर चमका।

75 साल पहले, गुजरात के छोटे से कस्बे वडनगर में एक साधारण घर में एक बच्चे का जन्म हुआ था। वह घर जहां बारिश की बूंदें छत से टपकतीं, और परिवार की मां बर्तनों से पानी रोकने की जद्दोजहद करती। वह बच्चा आज दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नेतृत्व कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीवन यात्रा किसी परीकथा से कम नहीं – गरीबी की मिट्टी से निकलकर वैश्विक मंच पर चमकने वाली एक कहानी। आइए, इस जन्मदिन पर उनकी जिंदगी को एक कहानी की तरह बुनते हैं, जहां हर अध्याय संघर्ष, समर्पण और सफलता की नई इबारत लिखता है।
गरीबी की गोद में पला बचपन: वडनगर की तंग गलियां और चाय की महक
कल्पना कीजिए, 1950 का गुजरात। वडनगर का काला वासुदेव चौक, जहां खपरैल की छत वाला एक छोटा-सा घर खड़ा था। यहां दामोदरदास और हीराबा का परिवार बसता था – पांच बेटे, एक बेटी और कुल आठ सदस्य एक ही कमरे में। दामोदरदास रेलवे स्टेशन पर चाय की रेहड़ी चलाते, जबकि हीराबा पड़ोस के घरों में बर्तन मांजकर परिवार का पेट पालतीं। 17 सितंबर को जन्मे नरेंद्र, परिवार के तीसरे बेटे, बचपन से ही मेहनत की मिसाल बने। सुबह उठकर पिता की दुकान पर चाय परोसना, यात्रियों से बातें करना – ये सब उनके जीवन का पहला सबक थे।
बारिश के मौसम में छत टपकती, तो छोटा नरेंद्र अपनी मां की मदद के लिए दौड़ पड़ता। किताबों और थिएटर का शौक उसे अलग बनाता। स्कूल में औसत छात्र, लेकिन बहस और नाटकों में चमकदार। कुमारशाला-1 में पढ़ाई के दौरान ही, महज आठ साल की उम्र में, वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शाखाओं में जाने लगा। 1958 की दीवाली पर 'वकील साहब' यानी लक्ष्मणराव इनामदार ने बाल स्वयंसेवकों को शपथ दिलाई, और नरेंद्र के मन में राष्ट्रवाद के बीज बो दिए गए। घर की चारदीवारी से बाहर निकलने की चाहत ने उसे 'अनिकेत' नाम दिया – जिसका कोई घर नहीं।
परंपराओं से विद्रोह: शादी, वैराग्य और यात्रा की शुरुआत
घांची समाज की परंपरा में शादी तीन चरणों में होती – सगाई, विवाह और गौना। 13 साल की उम्र में नरेंद्र की शादी ब्राह्मणवाड़ा की जशोदाबेन से हो गई, लेकिन गौना बाकी था। मन में वैराग्य की लहर उठी। एक दिन मां से कहा, "मैं दुनिया देखना चाहता हूं, स्वामी विवेकानंद की राह पर चलना है।" पिता परेशान, लेकिन हीराबा ने जन्मपत्री ज्योतिषी को दिखाई। ज्योतिषी बोले, "इसकी राह अलग है, ईश्वर ने जहां तय किया, वही जाएगा।"
इस तरह नरेंद्र घर छोड़कर निकल पड़े। पहले रामकृष्ण मिशन के बेलूर मठ, फिर दिल्ली, राजस्थान, पूर्वोत्तर और हिमालय। गरुड़चट्टी में सबसे ज्यादा समय बिताया। करीब दो साल की यात्रा के बाद वडनगर लौटे, लेकिन सिर्फ 17 दिन रुके। फिर आरएसएस के प्रचारक वकील साहब ने अहमदाबाद के डॉ. हेडगेवार भवन में ठिकाना दिया। यहां से वह स्वयंसेवक से प्रचारक बने, 15 साल तक संगठन विस्तार में जुटे।
राजनीति की आग में तपना: संघ से सत्ता तक का सफर
1971 में भारतीय जनसंघ के सत्याग्रह से राजनीतिक शुरुआत। 1975-77 के आपातकाल में भूमिगत होकर काम किया, पर्चे छापे, विरोध आयोजित किए। उनकी किताब 'संघर्ष में गुजरात' उस दौर की गवाह है। 1985 में भाजपा में शामिल हुए। 1987 के अहमदाबाद नगर निगम चुनाव में जीत का श्रेय मिला। 1989 लोकसभा चुनाव में गुजरात की 14 में से 11 सीटें जीतकर माइक्रो-मैनेजमेंट की धाक जमाई।
1990 में लालकृष्ण आडवाणी की राम रथयात्रा का समन्वय, 1992 में मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा में दूसरे नंबर के नेता। फगवाड़ा में हमला, गोलियां चलीं, लेकिन मोदी अडिग रहे। जम्मू में भाषण चर्चित हुआ। लाल चौक पर तिरंगा फहराने के बाद पहला फोन मां को – "मैं ठीक हूं।" अहमदाबाद लौटकर सम्मान समारोह में मां पहली बार सार्वजनिक मंच पर आईं।
1995 में गुजरात भाजपा के खेमों – शंकर सिंह वाघेला और केशुभाई पटेल – में खींचतान। मोदी को दिल्ली बुलाया गया, राष्ट्रीय सचिव बने। शिक्षा जारी रही – 1978 में दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में बीए, 1983 में गुजरात विश्वविद्यालय से एमए, दोनों दूरस्थ शिक्षा से।
मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री: चुनौतियां और चमत्कार
1 अक्टूबर 2001, एक टीवी पत्रकार के अंतिम संस्कार में मोदी थे, तभी पीएम अटल बिहारी वाजपेयी का बुलावा आया। "तुम मोटे हो गए हो, गुजरात लौट जाओ।" अगले दिन अहमदाबाद पहुंचे, मां से मिले। 7 अक्टूबर को गुजरात के मुख्यमंत्री बने। मां फिर मंच पर आशीर्वाद देने आईं।
सालभर बाद 2002 दंगे हुए। आरोप लगे, लेकिन मजिस्ट्रेट कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिली। मोदी बोले, "क्रिया-प्रतिक्रिया की चेन है, हम चाहते हैं न क्रिया हो न प्रतिक्रिया।" गुजरात मॉडल से आर्थिक तरक्की – वाइब्रेंट गुजरात समिट, ज्योतिग्राम योजना, सरदार सरोवर बांध। 2002, 2007, 2012 चुनावों में जीत।
2014 में भाजपा के पीएम उम्मीदवार। सोशल मीडिया, होलोग्राम रैलियां, 'अच्छे दिन' नारा। 282 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत, 26 मई को 14वें पीएम बने। संसद की सीढ़ियां माथे से लगाईं। 2019 में 303 सीटें, बालाकोट एयरस्ट्राइक, अनुच्छेद 370 हटाना, सीएए। 2024 में 240 सीटें, एनडीए के साथ तीसरा कार्यकाल। योजनाएं – मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत, आत्मनिर्भर भारत। नोटबंदी, कोविड प्रबंधन, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन। 'मन की बात' से करोड़ों जुड़े, किताबें जैसे 'एग्जाम वॉरियर्स' लिखीं। रूस, भूटान समेत कई देशों से सम्मान।
पारिवारिक जड़ें और सन्यासी जीवन: मां की यादें और समर्पण
मोदी का पारिवारिक जीवन सादगी भरा। जशोदाबेन से अलग रहे, कोई संतान नहीं। मां हीराबा का 30 दिसंबर 2022 को 99 साल की उम्र में निधन। पीएम बनने पर वह आवास आईं – बर्तन धोने वाली मां का बेटा दुनिया का नेता। भाई-बहनों से दूरी, लेकिन जड़ें याद। योग, ध्यान, राष्ट्र सेवा – सन्यासी जैसी जिंदगी।
विरासत की चमक: विकसित भारत का सपना
75वें जन्मदिन पर मोदी न सिर्फ नेता, बल्कि प्रेरणा हैं। चाय बेचने वाले लड़के से वैश्विक ब्रांड तक। नेहरू के बाद सबसे लंबे समय तक पीएम। 'विकसित भारत 2047' का विजन जारी। जनवरी 2025 के पॉडकास्ट में मां की यादें साझा कीं। 2015 के अमेरिकी दौरे पर फेसबुक टाउनहॉल में भावुक हुए। ब्लॉग में अनुभव लिखे।