सुप्रीम कोर्ट का आवारा कुत्तों पर बड़ा फैसला: नसबंदी-टीकाकरण के बाद सामान्य कुत्तों को छोड़ने का आदेश.

सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों पर बड़ा फैसला सुनाया। सामान्य कुत्तों को नसबंदी और टीकाकरण के बाद छोड़ने का आदेश, जबकि रेबीज ग्रस्त या आक्रामक कुत्तों को शेल्टर होम में रखा जाएगा। सार्वजनिक स्थानों पर खाना देने पर रोक और राष्ट्रीय नीति की दिशा में कदम। यह फैसला मानव सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच संतुलन बनाता है।

Aug 22, 2025 - 14:18
सुप्रीम कोर्ट का आवारा कुत्तों पर बड़ा फैसला: नसबंदी-टीकाकरण के बाद सामान्य कुत्तों को छोड़ने का आदेश.

नई दिल्ली, 22 अगस्त 2025: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की समस्या को लेकर शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण और संतुलित फैसला सुनाया, जो मानव सुरक्षा और पशु कल्याण दोनों को ध्यान में रखता है। कोर्ट ने अपने पहले के 11 अगस्त 2025 के आदेश को संशोधित करते हुए नए दिशा-निर्देश जारी किए, जिनमें सामान्य कुत्तों को नसबंदी और टीकाकरण के बाद छोड़ने की अनुमति दी गई है, जबकि रेबीज से संक्रमित या आक्रामक व्यवहार वाले कुत्तों को स्थायी रूप से शेल्टर होम में रखने का निर्देश दिया गया है। इसके साथ ही, कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों पर कुत्तों को खाना देने पर भी रोक लगा दी है, ताकि उनकी आबादी को नियंत्रित किया जा सके और मानव-पशु संघर्ष को कम किया जा सके।

फैसले की प्रमुख बातें:

नसबंदी और टीकाकरण अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सभी पकड़े गए आवारा कुत्तों को पहले डीवॉर्मिंग, नसबंदी और रेबीज-रोधी टीकाकरण से गुजरना होगा। केवल स्वस्थ और गैर-आक्रामक कुत्तों को ही वापस उनके मूल स्थान पर छोड़ा जाएगा। यह कदम पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियमावली 2023 के अनुरूप है, जो "पकड़ो, बधिया करो, टीका लगाओ, छोड़ो" सिद्धांत पर आधारित है। 

खूंखार और रेबीज ग्रस्त कुत्तों पर सख्ती: जिन कुत्तों का व्यवहार आक्रामक है या जो रेबीज से संक्रमित हैं, उन्हें सड़कों पर वापस नहीं छोड़ा जाएगा। ऐसे कुत्तों को स्थायी रूप से शेल्टर होम में रखा जाएगा। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि शेल्टर होम में कुत्तों के साथ क्रूरता, भूख, या लापरवाही न हो।

सार्वजनिक फीडिंग पर रोक: कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों पर कुत्तों को खाना देने की प्रथा पर रोक लगा दी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में तर्क दिया कि मांसाहारी भोजन देने से कुत्तों का व्यवहार हिंसक हो रहा है, जिससे हमले की घटनाएं बढ़ रही हैं। इस रोक से कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने और मानव-पशु टकराव को कम करने में मदद मिलेगी।

पशु प्रेमियों के लिए नियम: कोर्ट ने पशु प्रेमियों और एनजीओ को कुत्तों को गोद लेने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित किया। जो लोग कुत्तों की देखभाल करना चाहते हैं, उन्हें नगर निगम (MCD) के सामने 25,000 रुपये की जमा राशि के साथ आवेदन करना होगा। इसके अलावा, कुत्तों को पकड़ने की प्रक्रिया में बाधा डालने वालों पर जुर्माना और अदालत की अवमानना का मुकदमा चल सकता है।

राष्ट्रीय नीति की दिशा में कदम: सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर लेते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मामले में पक्षकार बनाया है। कोर्ट ने देश भर के हाई कोर्ट्स में लंबित आवारा कुत्तों से संबंधित मामलों को अपने पास स्थानांतरित कर लिया है, ताकि एक समान राष्ट्रीय नीति बनाई जा सके। 

फैसले का पृष्ठभूमि और विरोध:

सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई 2025 को दिल्ली में कुत्तों के काटने और रेबीज के बढ़ते मामलों पर स्वत: संज्ञान लिया था। एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि 2024 में देश भर में 37 लाख से अधिक कुत्तों के काटने के मामले दर्ज हुए, जिनमें 5.19 लाख से अधिक पीड़ित 15 साल से कम उम्र के बच्चे थे। दिल्ली में ही रेबीज से 54 संदिग्ध मौतें दर्ज की गईं। 

11 अगस्त 2025 को कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्तों को 8 सप्ताह के भीतर शेल्टर होम में भेजने का सख्त आदेश दिया था, जिसके बाद पशु प्रेमियों और एनजीओ ने इसका विरोध किया। जंतर-मंतर पर प्रदर्शन हुए और राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मेनका गांधी जैसे नेताओं ने इस आदेश को "कठोर" और "अव्यावहारिक" बताया। पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने तर्क दिया कि शेल्टर होम में पर्याप्त जगह और संसाधनों की कमी है, और बड़े पैमाने पर कुत्तों को हटाने से "वैक्यूम इफेक्ट" हो सकता है, जहां नए कुत्ते खाली जगहों पर आ जाते हैं।

कोर्ट की टिप्पणी और तर्क:

सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ (जस्टिस विक्रम नाथ, संदीप मेहता, और एनवी अंजारिया) ने 14 अगस्त को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता को समस्या का प्रमुख कारण माना, जिसने पशु जन्म नियंत्रण नियमों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया। कोर्ट ने कहा, "समाधान निकालें, विवाद न करें।" सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बच्चों की सुरक्षा और रेबीज से होने वाली मौतों पर जोर देते हुए कहा कि कोई भी जानवरों से नफरत नहीं करता, लेकिन बच्चों और आम लोगों की सुरक्षा सर्वोपरि है। 

दिल्ली में आवारा कुत्तों की स्थिति:

आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर में करीब 10 लाख आवारा कुत्ते हैं, जिनमें से आधे से भी कम की नसबंदी हुई है। 2024 में दिल्ली में 35,198 कुत्तों के काटने की घटनाएं और 49 मौतें दर्ज की गईं। पूरे भारत में हर साल लगभग 20,000 लोग रेबीज से मरते हैं, जो वैश्विक रेबीज मृत्यु का 36% है। 

सुप्रीम कोर्ट का यह संशोधित फैसला मानव सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच संतुलन बनाने की कोशिश है। यह आदेश न केवल दिल्ली-एनसीआर बल्कि पूरे देश में आवारा कुत्तों की समस्या से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय नीति की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। पशु प्रेमियों और प्रशासन को अब इस आदेश का पालन करते हुए एक मानवीय और व्यवहारिक समाधान निकालना होगा।