एक छात्र को पढ़ाने के लिए छह शिक्षक तैनात...जानिए क्या है पूरा मामला
राजस्थान के सरकारी स्कूलों में नीतिगत खामियों और लापरवाही से छात्र संख्या तेजी से घटी है। कहीं एक-दो छात्र हैं, तो कहीं छात्रों से ज्यादा शिक्षक, जैसे झुंझुनूं में एक स्कूल में एक छात्र पर 80 लाख रुपये खर्च। रिक्त पद और गैर-शैक्षणिक कार्यों से निगरानी कमजोर हुई है। सरकार से तुरंत सुधार की मांग।

राजस्थान के सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था की बदहाली और मनमर्जी का आलम इस कदर है कि कई स्कूलों में छात्रों की संख्या न के बराबर रह गई है। तबादलों के लिए स्पष्ट नीति न होने के कारण कहीं शिक्षकों की कमी है, तो कहीं छात्रों से ज्यादा शिक्षक तैनात हैं। हालात इतने चिंताजनक हैं कि झुंझुनूं जिले के एक स्कूल में केवल एक छात्र पढ़ता है, जबकि वहां छह शिक्षक कार्यरत हैं।
एक छात्र पर अस्सी लाख का खर्च
शिक्षा निदेशक को 6 मई को भेजी गई रिपोर्ट के अनुसार, झुंझुनूं के राजकीय उच्च प्राथमिक स्कूल, बुधराम की ढाणी में केवल एक छात्र दर्ज है, और छह शिक्षक तैनात हैं। इन शिक्षकों के वेतन सहित सरकार इस एक छात्र पर सालाना करीब 80 लाख रुपये खर्च कर रही है। इतनी राशि में यह छात्र विश्व के किसी शीर्ष स्कूल में पढ़ सकता है।
श्रीगंगानगर और नागौर में भी स्थिति बदतर
श्रीगंगानगर के श्रीकरणपुर ब्लॉक के गांव 14 एफ के राजकीय प्राथमिक स्कूल में दो छात्रों का नामांकन है, और दो शिक्षक तैनात हैं। सरकार इन दो छात्रों पर सालाना 10-15 लाख रुपये खर्च कर रही है। वहीं, नागौर जिले में 10 स्कूल ऐसे हैं, जहां नामांकन एक या शून्य है। इन स्कूलों में कुल 19 शिक्षक कार्यरत हैं, जिनका मासिक वेतन 12-13 लाख रुपये है। एक स्कूल में तो नामांकन शून्य है, फिर भी एक शिक्षक तैनात है।
झुंझुनूं में 19 स्कूलों की हालत खस्ता
झुंझुनूं जिले में 19 सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या 10 से भी कम है। हैरानी की बात यह है कि इनके आसपास के निजी स्कूलों में अच्छा नामांकन है। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का वेतन 50 हजार से 1 लाख रुपये तक है, जबकि निजी स्कूलों में शिक्षकों को 5-10 हजार रुपये मासिक वेतन मिलता है। फिर भी अभिभावक निजी स्कूलों को तरजीह दे रहे हैं।
प्रशासनिक लापरवाही और गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ
प्रदेश में शिक्षा अधिकारियों के आधे से अधिक पद रिक्त हैं, जिससे स्कूलों की प्रभावी निगरानी नहीं हो पा रही। शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों में उलझाया जा रहा है, और कई जगह समाज से उनका जुड़ाव कम होने के कारण स्कूलों का माहौल प्रतिकूल हो रहा है।
सरकार से मांग, तुरंत हो सुधार
राजस्थान शिक्षक संघ (शेखावत) के प्रदेश महामंत्री उपेंद्र शर्मा ने कहा, "सरकार को इस स्थिति पर गंभीरता से विचार करना होगा। स्पष्ट तबादला नीति, रिक्त पदों पर भर्ती, और शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्त करना जरूरी है। सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने से समाज और शिक्षा व्यवस्था को दीर्घकालिक लाभ होगा।" यदि सरकार ने त्वरित कदम नहीं उठाए, तो सरकारी स्कूलों की यह दुर्दशा शिक्षा के अधिकार को और कमजोर कर सकती है।