राजस्थान पंचायत चुनाव सस्पेंस खत्म! 11 नवंबर को हाईकोर्ट की खंडपीठ साफ करेगी तस्वीर, क्या चुनावों को हरी झंडी मिलेगी?

राजस्थान पंचायत चुनाव पर हाईकोर्ट की खंडपीठ सोमवार (11 नवंबर 2025) को राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई करेगी। एकलपीठ के चुनाव कराने के आदेश पर पहले ही रोक लगी है, जिससे प्रक्रिया रुकी हुई है। फैसले से तय होगा कि चुनाव होंगे या और देरी होगी। शहरी निकाय चुनावों पर रोक नहीं।

Nov 10, 2025 - 11:38
राजस्थान पंचायत चुनाव सस्पेंस खत्म! 11 नवंबर को हाईकोर्ट की खंडपीठ साफ करेगी तस्वीर, क्या चुनावों को हरी झंडी मिलेगी?

जयपुर, 10 नवंबर 2025: राजस्थान में पंचायती राज व्यवस्था की नींव हिलाने वाले पंचायत चुनावों पर लंबे समय से छाया सस्पेंस अब मंगलवार को खत्म होने की कगार पर है। राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ में होने वाली महत्वपूर्ण सुनवाई से तय होगा कि प्रदेश की हजारों ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों और जिला परिषदों में चुनाव कब और कैसे होंगे। यह सुनवाई राज्य सरकार की अपील पर केंद्रित होगी, जो एकलपीठ के पंचायत चुनाव तत्काल कराने के आदेश के खिलाफ दायर की गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से न केवल लोकतंत्र की जड़ों को मजबूती मिलेगी, बल्कि राजनीतिक हलचल भी तेज हो जाएगी। 

पृष्ठभूमि: क्यों उलझा है पंचायत चुनाव का पेच?

राजस्थान में पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल जनवरी 2025 में समाप्त हो चुका था, लेकिन चुनावों में देरी के कारण राज्य सरकार ने 16 जनवरी 2025 को अधिसूचना जारी कर 6,759 ग्राम पंचायतों के चुनाव स्थगित कर दिए। इसके बजाय, निवर्तमान सरपंचों और पंचों को ही प्रशासक नियुक्त कर दिया गया। यह कदम मध्य प्रदेश मॉडल पर आधारित था, जिसका उद्देश्य 'वन स्टेट, वन इलेक्शन' की दिशा में कदम बढ़ाना बताया गया। लेकिन यह फैसला विवादों में घिर गया।याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह कदम संविधान के अनुच्छेद 243ई और 243के का उल्लंघन है, साथ ही राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 की धारा 17 के विरुद्ध भी। गिरिराज सिंह देवंदा जैसे याचिकाकर्ताओं ने जनहित याचिका (पीआईएल) दायर कर हाईकोर्ट से तत्काल चुनाव कराने की मांग की। हाईकोर्ट ने शुरू में सरकार को फटकार लगाई और अप्रैल 2025 में जस्टिस इंद्रजीत सिंह की खंडपीठ ने राज्य सरकार व राज्य निर्वाचन आयोग से स्पष्ट चुनाव शेड्यूल पेश करने का निर्देश दिया। अगली सुनवाई 7 अप्रैल, फिर 30 मई को तय हुई, जहां सरकार ने पुनर्गठन व परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद चुनाव कराने का हवाला दिया।मई 2025 तक सरकार ने जून से पहले चुनाव न कराने की बात कही, जिससे देरी बढ़ती गई। आयोग ने भी पंचायतों और शहरी निकायों के पुनर्गठन के लिए मार्च तक नोटिफिकेशन जारी किया, लेकिन प्रक्रिया में जटिलताएं बनी रहीं।

एकलपीठ का आदेश: चुनावों को हरी झंडी, लेकिन...

18 अगस्त 2025 को हाईकोर्ट की एकलपीठ ने बड़ा कदम उठाया। जस्टिस ने राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिए कि वह शीघ्र पंचायत चुनाव कराए। इस आदेश के बाद आयोग ने प्रक्रिया शुरू कर दी—मतदाता सूचियां तैयार करना, नामांकन की तैयारी और अन्य औपचारिकताएं। लेकिन राज्य सरकार ने इसे चुनौती दी। सरकार का तर्क था कि ओबीसी आरक्षण, पुनर्गठन और परिसीमन जैसी प्रक्रियाएं अधर में हैं, इसलिए तत्काल चुनाव संभव नहीं। 

खंडपीठ की रोक: सस्पेंस बढ़ा, प्रक्रिया रुकी

एकलपीठ के आदेश के तुरंत बाद, जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस सुदेश बंसल की खंडपीठ ने 25 अगस्त 2025 को इसकी क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। यह फैसला सरकार को बड़ी राहत साबित हुआ। परिणामस्वरूप, राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनावों की पूरी प्रक्रिया रोक दी। हालांकि, शहरी निकाय चुनावों पर यह रोक लागू नहीं हुई, इसलिए नगरीय क्षेत्रों में तैयारीें जारी रहीं।खंडपीठ ने अब तक कई बार सरकार और आयोग से जवाब मांगे, लेकिन स्पष्ट शेड्यूल न मिलने पर नाराजगी जताई। अगस्त में ही आयोग ने पंचायत चुनावों की तैयारियां तेज करने की बात कही, लेकिन खंडपीठ की रोक के कारण सब कुछ ठप हो गया। वर्तमान में 21 जिला परिषदों और 222 पंचायत समितियों का कार्यकाल नवंबर-दिसंबर 2025 में समाप्त होने वाला है, जिससे दबाव और बढ़ गया है। 

जयपुर में हाईकोर्ट की खंडपीठ में राज्य सरकार की अपील पर अंतिम सुनवाई होगी। एकलपीठ के आदेश के खिलाफ दायर इन अपीलों पर फैसला सुनाया जाएगा। स्रोतों के अनुसार, खंडपीठ एकलपीठ के आदेश की पालना पर पहले ही रोक लगा चुकी है, लेकिन अब यह तय करेगी कि रोक बरकरार रहेगी या हटाई जाएगी। यदि रोक हटती है, तो आयोग को चुनाव प्रक्रिया दोबारा शुरू करने का आदेश मिल सकता है, जिससे दिसंबर 2025 तक नामांकन और फरवरी 2026 तक मतदान संभव हो सकता है।दूसरी ओर, यदि अपील स्वीकार होती है, तो चुनावों में और देरी होगी—शायद 2026 के मध्य तक। राज्य निर्वाचन आयुक्त मधुकर गुप्ता ने हाल ही में कहा कि 'वन स्टेट, वन इलेक्शन' अभी व्यावहारिक नहीं, जब तक संविधान संशोधन न हो। हरियाणा, पंजाब और कर्नाटक जैसे राज्यों में भी इसी तरह की देरी हुई, जहां कोर्ट हस्तक्षेप से चुनाव हुए।

अन्य याचिकाओं का इंतजार: शहरी निकाय और प्रशासक नियुक्ति पर फैसला कब?

समानांतर रूप से, कार्यकाल समाप्ति के बाद पंचायती राज संस्थाओं और शहरी निकायों में प्रशासक नियुक्त करने के राज्य सरकार के आदेश के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं पर खंडपीठ ने करीब तीन माह पहले  सुनवाई पूरी कर ली है। इनका फैसला भी जल्द आने की उम्मीद है। शहरी निकाय चुनावों पर अभी तक कोई रोक नहीं लगी, इसलिए इनकी प्रक्रिया सुचारू रूप से चल रही है।प्रभाव: राजनीतिक हलचल और लोकतंत्र पर असरयह सस्पेंस न केवल ग्रामीण राजस्थान की हजारों पंचायतों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि पूरे राज्य की राजनीति को भी। विपक्ष (कांग्रेस) सरकार पर देरी का आरोप लगा रहा है, जबकि भाजपा सरकार पुनर्गठन को प्राथमिकता दे रही है। यदि चुनाव समय पर होते हैं, तो स्थानीय स्तर पर नई नेतृत्व प्रणाली बनेगी, लेकिन देरी से प्रशासनिक खालीपन बढ़ेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि कोर्ट का हस्तक्षेप लोकतंत्र को मजबूत करने वाला है, लेकिन इससे 'वन स्टेट, वन इलेक्शन' की बहस भी तेज हो रही है।