पत्नी ने बीमारी छिपाकर शादी की, हाई कोर्ट ने विवाह किया शून्य: पति के खिलाफ दहेज केस खत्म, कोर्ट बोला- साफ धोखाधड़ी

राजस्थान हाई कोर्ट ने सिजोफ्रेनिया छुपाकर की गई शादी को शून्य घोषित किया, इसे हिंदू विवाह अधिनियम के तहत धोखाधड़ी माना। जयपुर खंडपीठ ने पति को दहेज उत्पीड़न के सभी मामलों से मुक्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सिजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक विकार है, जिसे छुपाना वैवाहिक सहमति को अमान्य करता है। यह फैसला मानसिक स्वास्थ्य और पारदर्शिता के लिए मिसाल बनेगा।

Aug 13, 2025 - 15:57
पत्नी ने बीमारी छिपाकर शादी की, हाई कोर्ट ने विवाह किया शून्य: पति के खिलाफ दहेज केस खत्म, कोर्ट बोला- साफ धोखाधड़ी
राजस्थान हाई कोर्ट की जयपुर खंडपीठ ने एक ऐतिहासिक और संवेदनशील फैसले में सिजोफ्रेनिया से पीड़ित एक महिला का विवाह शून्य घोषित कर दिया। कोर्ट ने माना कि महिला और उसके परिवार ने विवाह से पहले उसकी गंभीर मानसिक बीमारी की जानकारी पति से छुपाई, जो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 12(1)(c) के तहत स्पष्ट धोखाधड़ी है। जस्टिस इंदरजीत सिंह और जस्टिस आनंद शर्मा की खंडपीठ ने 31 जुलाई 2025 को यह फैसला सुनाया, जिसके तहत पति के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न के सभी मामले भी समाप्त हो जाएंगे।

विवाह में छुपाई गई सिजोफ्रेनिया

यह मामला कोटा की एक महिला और चित्तौड़गढ़ के एक पुरुष के बीच 29 अप्रैल 2013 को हुए विवाह से संबंधित है। विवाह के बाद पति को पत्नी के व्यवहार में असामान्यता दिखी, जैसे हाथ कांपना और अजीब व्यवहार। पति को पत्नी के सामान में एक मेडिकल पर्ची मिली, जिसमें पता चला कि वह विवाह से पहले सिजोफ्रेनिया के लिए दवाइयां ले रही थी। पति ने दावा किया कि यह जानकारी उससे और उसके परिवार से जानबूझकर छुपाई गई, जिसके कारण विवाह धोखे पर आधारित था। उसने कोटा की पारिवारिक अदालत में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 के तहत विवाह को शून्य करने की याचिका दायर की।

कोटा पारिवारिक अदालत का फैसला

28 अगस्त 2019 को कोटा की पारिवारिक अदालत ने पति की याचिका खारिज कर दी थी। पत्नी ने दावा किया कि उसे कोई गंभीर मानसिक बीमारी नहीं थी, बल्कि परिवार में एक दुर्घटना के कारण उसे अस्थायी अवसाद (Depression) हुआ था। उसने पति और ससुराल वालों पर दहेज मांगने और उत्पीड़न का आरोप लगाया। पति ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि पत्नी की मानसिक स्थिति के कारण वैवाहिक संबंध बनाना असंभव था। असंतुष्ट होकर, पति ने राजस्थान हाई कोर्ट की जयपुर खंडपीठ में अपील दायर की।

हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

जयपुर खंडपीठ ने मामले की गहन जांच की, जिसमें गवाहों के बयान, चिकित्सा रिकॉर्ड, और साक्ष्य शामिल थे। कोर्ट ने पाया कि पत्नी विवाह से पहले सिजोफ्रेनिया से पीड़ित थी और नियमित दवाइयां ले रही थी। कोर्ट ने सिजोफ्रेनिया को एक गंभीर मनोवैज्ञानिक विकार माना, जो सामान्य वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है। जस्टिस इंदरजीत सिंह ने कहा, “यह केवल अस्थायी अवसाद नहीं, बल्कि एक ऐसी बीमारी है जो वैवाहिक दायित्वों को निभाने में बाधा डालती है।” कोर्ट ने माना कि इस जानकारी को छुपाना हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12(1)(c) के तहत धोखाधड़ी है।31 जुलाई 2025 को कोर्ट ने विवाह को शुरू से ही शून्य घोषित किया और पति को दहेज उत्पीड़न और रखरखाव जैसे सभी आपराधिक और वित्तीय दायित्वों से मुक्त कर दिया। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी छुपाना सहमति को अमान्य करता है। इस फैसले ने कोटा पारिवारिक अदालत के 2019 के आदेश को पलट दिया।

कानूनी और सामाजिक प्रभाव

यह फैसला कानूनी और सामाजिक दृष्टिकोण से एक मील का पत्थर है। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12(1)(c) के तहत, यदि विवाह के लिए सहमति धोखे या महत्वपूर्ण तथ्य छुपाने पर आधारित है, तो उसे शून्य घोषित किया जा सकता है। कोर्ट ने सिजोफ्रेनिया को एक ऐसी स्थिति माना जो वैवाहिक जीवन की नींव को प्रभावित करती है। यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक मिसाल कायम करेगा, जहां मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े तथ्यों को विवाह से पहले साझा करना अनिवार्य होगा।सामाजिक स्तर पर, यह फैसला मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने में मदद करेगा। सिजोफ्रेनिया को अस्थायी अवसाद से अलग करते हुए, कोर्ट ने इस बीमारी की गंभीरता को रेखांकित किया। यह समाज को यह संदेश देता है कि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों को खुले तौर पर स्वीकार करना और उनकी चर्चा करना महत्वपूर्ण है। यह फैसला उन लोगों के लिए राहत लेकर आया है, जो धोखे के कारण वैवाहिक समस्याओं का सामना करते हैं।

भविष्य की दिशा और मिसाल

हाई कोर्ट के इस फैसले से पति के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न और रखरखाव के सभी मामले समाप्त हो जाएंगे। पति के वकील उमा शंकर आचार्य ने इसे “न्याय की जीत” बताया, जबकि पत्नी के वकील ने कोई बयान देने से इनकार किया। यह फैसला मानसिक स्वास्थ्य और वैवाहिक सहमति के मुद्दों को और गहराई से उजागर करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला अन्य राज्यों की अदालतों में भी इसी तरह के मामलों को प्रभावित करेगा।कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि भविष्य में ऐसे मामलों में चिकित्सा साक्ष्य और गवाहों की बारीकी से जांच हो। यह फैसला न केवल कानूनी, बल्कि सामाजिक बदलाव का भी प्रतीक है, जो मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में खुलेपन को बढ़ावा देगा। साथ ही, यह उन लोगों के लिए एक सबक है जो महत्वपूर्ण जानकारी छुपाकर विवाह करते हैं। यह फैसला वैवाहिक रिश्तों में पारदर्शिता और ईमानदारी के महत्व को रेखांकित करता है।