राजस्थान के बाड़मेर जिले के शिव तहसील हड़वा गांव में खेजड़ी वृक्षों की अंधाधुंध कटाई: पर्यावरणीय संकट की ओर एक कदम
बाड़मेर के हड़वा गांव में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए राजस्थान के राज्य वृक्ष खेजड़ी की अंधाधुंध कटाई हो रही है। यह पर्यावरण, जैव विविधता, और स्थानीय समुदाय की आजीविका के लिए खतरा है। प्रशासन की निष्क्रियता और अवैध कटाई पर चिंता बढ़ रही है। संरक्षण के लिए सख्त कानून, पुनरोपण, और जागरूकता की जरूरत है।

राजस्थान का राज्य वृक्ष खेजड़ी, जिसे 'रेगिस्तान का कल्पवृक्ष' कहा जाता है, आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। बाड़मेर जिले के शिव तहसील के हड़वा गांव में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए सैकड़ों खेजड़ी पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की खबरें सामने आई हैं। यह स्थिति पर्यावरणीय संतुलन, सांस्कृतिक विरासत और स्थानीय समुदायों की आजीविका के लिए गंभीर खतरा बन रही है।
खेजड़ी वृक्ष का महत्व
खेजड़ी को 31 अक्टूबर, 1983 को राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया गया। यह वृक्ष थार मरुस्थल में भू-क्षरण रोकने, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी फलियां (सांगरी) सब्जी के रूप में, पत्तियां (लूप) पशुओं के चारे के लिए, और लकड़ी कृषि उपकरण, ईंधन, और निर्माण में उपयोग होती है। सांस्कृतिक रूप से, इसे 'शमी' वृक्ष के रूप में पूजा जाता है, और विश्नोई समुदाय इसे पवित्र मानता है। 1730 में जोधपुर के खेजड़ली गांव में 363 विश्नोई लोगों ने इसके संरक्षण के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी, जो पर्यावरण संरक्षण की वैश्विक मिसाल है।
हड़वा गांव में कटाई की स्थिति
हड़वा गांव में सोलर परियोजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर खेजड़ी कटाई हो रही है। स्थानीय लोगों और पर्यावरण प्रेमियों का आरोप है कि सोलर कंपनियां बिना पर्याप्त अनुमति और पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन के पेड़ काट रही हैं। पिछले 14 वर्षों में राजस्थान में 25 लाख से अधिक पेड़ काटे जा चुके हैं। प्रशासनिक उदासीनता और नियमों के उल्लंघन के कारण यह समस्या गंभीर हो रही है।
इस कटाई से पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है। खेजड़ी मरुस्थल की जैव विविधता का आधार है, और इसकी कटाई से मिट्टी का कटाव बढ़ेगा, जल संरक्षण की क्षमता घटेगी, और वन्यजीवों का आवास नष्ट होगा। स्थानीय लोगों की आजीविका, जो सांगरी और पत्तियों पर निर्भर है, भी प्रभावित हो रही है। साथ ही, विश्नोई समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत हो रही हैं।
स्थानीय लोग और पर्यावरण कार्यकर्ता इस कटाई के खिलाफ मुखर हैं। सोशल मीडिया, विशेषकर एक्स पर, लोग सोलर परियोजनाओं को पर्यावरण के लिए खतरा बता रहे हैं और प्रशासन की चुप्पी पर सवाल उठा रहे हैं। कुछ संगठन, जैसे बालदेव गोरा फाउंडेशन, ने 5 लाख खेजड़ी पौधे लगाने का संकल्प लिया है। केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर ने 'थार शोभा खेजड़ी' नामक नई किस्म विकसित की है, जो कांटों रहित और कम ऊंचाई वाली है।
इस समस्या के समाधान के लिए कठोर कानूनी प्रावधान, बंजर भूमि का उपयोग, पुनरोपण कार्यक्रम, सामुदायिक भागीदारी, और जागरूकता अभियान जरूरी हैं। खेजड़ी को बचाना केवल एक वृक्ष को बचाना नहीं, बल्कि राजस्थान की आत्मा को जीवित रखना है। सरकार, सोलर कंपनियों और समुदायों को मिलकर विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाना होगा।
हड़वा गांव में खेजड़ी वृक्षों की कटाई न केवल एक स्थानीय समस्या है, बल्कि यह राजस्थान की पर्यावरणीय और सांस्कृतिक विरासत पर हमला है। विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना आज की सबसे बड़ी चुनौती है। यदि समय रहते इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो 'रेगिस्तान का कल्पवृक्ष' विलुप्ति के कगार पर पहुंच सकता है। यह समय है कि सरकार, स्थानीय समुदाय, और पर्यावरणविद एकजुट होकर इस संकट का सामना करें।