थार के रेगिस्तान में 4500 साल पुराना हड़प्पा शहर: पाकिस्तान सीमा के पास चौंकाने वाली खोज.
राजस्थान के थार रेगिस्तान में जैसलमेर के 'रातडिया री डेरी' में 4500 साल पुरानी हड़प्पा सभ्यता के अवशेष मिले हैं। यह खोज पाकिस्तान सीमा के पास हुई, जहां लाल मिट्टी के बर्तन, चट्टानी ब्लेड, टेराकोटा केक, और प्राचीन भट्टी जैसे अवशेषों ने पुरातत्वविदों को हैरान कर दिया। यह स्थल हड़प्पा सभ्यता के रेगिस्तानी विस्तार और व्यापारिक नेटवर्क को दर्शाता है, जो प्राचीन सरस्वती नदी के मुहाने पर बसा हो सकता है। यह खोज भारतीय इतिहास में नया अध्याय जोड़ती है।

पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर जिले में थार रेगिस्तान की रेत में छिपा एक प्राचीन रहस्य सामने आया है, जिसने पुरातत्वविदों और इतिहासकारों को हैरान कर दिया। रामगढ़ तहसील से करीब 60-70 किलोमीटर और सादेवाला गांव से 17 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित 'रातडिया री डेरी' नामक स्थान पर 4500 साल पुरानी हड़प्पा सभ्यता के अवशेष मिले हैं। यह खोज न केवल राजस्थान के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ती है, बल्कि सिंधु घाटी सभ्यता के भौगोलिक विस्तार को भी पुनर्परिभाषित करती है।
खोज का विवरण
इस पुरातात्विक स्थल पर शोधकर्ताओं को लाल मिट्टी के बर्तन, चट्टानों से बने धारदार ब्लेड (चर्ट ब्लेड), मिट्टी और शंख की चूड़ियां, त्रिकोणीय और इडली जैसे आकार के टेराकोटा केक, और पत्थर से बने पीसने-घिसने के उपकरण मिले हैं। सबसे रोचक खोज है एक प्राचीन भट्टी, जिसके भीतर स्तंभ (कॉलम) बने हुए हैं। इस प्रकार की भट्टियां पहले मोहनजोदड़ो और गुजरात के कानमेर जैसे हड़प्पा स्थलों पर पाई गई हैं। इसके अलावा, वेज-आकार की ईंटें भी मिली हैं, जो गोलाकार संरचनाओं और दीवारों के निर्माण में उपयोग की जाती थीं। ये अवशेष इस बात का प्रमाण हैं कि हड़प्पा सभ्यता न केवल नदियों के किनारे, बल्कि थार जैसे कठोर रेगिस्तानी क्षेत्रों में भी फली-फूली थी।
खोज का नेतृत्व और महत्व
इस ऐतिहासिक खोज का नेतृत्व राजस्थान विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के शोधार्थी दिलीप कुमार सैनी ने किया। उनकी टीम में इतिहासकार पार्थ जगानी (जैसलमेर), चतरसिंह 'जाम' (रामगढ़), प्रो. जीवनसिंह खरकवाल (राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर), डॉ. तमेघ पंवार, डॉ. रविंद्र देवरा, और प्रदीप कुमार गर्ग शामिल थे। विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थल उत्तरी राजस्थान और गुजरात के बीच थार क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता का पहला पुष्ट पुरातात्विक स्थल है। इसकी पाकिस्तान सीमा के निकट स्थिति इसे और भी महत्वपूर्ण बनाती है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यह बस्ती संभवतः प्राचीन सरस्वती नदी के मुहाने पर बसी होगी, जो अब विलुप्त हो चुकी है। यह खोज इस बात का संकेत देती है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग रेगिस्तान की कठिन परिस्थितियों में भी नगरीय जीवन जीने में सक्षम थे। यहां मिले चर्ट ब्लेड, जो सिंध और रोहरी क्षेत्र से आए माने जाते हैं, यह दर्शाते हैं कि हड़प्पा सभ्यता में लंबी दूरी का व्यापार और संसाधनों का आदान-प्रदान होता था।
इतिहास में नया अध्याय
यह खोज हड़प्पा सभ्यता की नगरीय संस्कृति, सामाजिक संरचना, और आर्थिक व्यवस्था को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। अब तक हड़प्पा सभ्यता के अवशेष मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, गुजरात, और सिंध जैसे नदी-किनारे के क्षेत्रों में मिले थे। थार रेगिस्तान में इस तरह के अवशेषों की खोज यह साबित करती है कि यह सभ्यता पहले से कहीं अधिक व्यापक और अनुकूलनशील थी। इतिहासकार पार्थ जगानी के अनुसार, यदि इस स्थल की वैज्ञानिक खुदाई और संरक्षण किया जाए, तो यह भारतीय पुरातत्व के नक्शे पर एक नया मील का पत्थर साबित हो सकता है। यह स्थल थार के कठोर वातावरण में भी नगरीय जीवन की जटिलताओं को दर्शाता है।
भविष्य की संभावनाए
'रातडिया री डेरी' की यह खोज राजस्थान के पुरातात्विक और सांस्कृतिक महत्व को बढ़ाने के साथ-साथ वैश्विक ऐतिहासिक विमर्श में इस क्षेत्र की भूमिका को मजबूत कर सकती है। यदि इस स्थल की गहन खुदाई और अध्ययन किया जाए, तो हड़प्पा सभ्यता के ग्रामीण और शहरी केंद्रों के बीच व्यापार, संसाधन प्रबंधन, और सामाजिक संगठन के बारे में नई जानकारी मिल सकती है। यह खोज न केवल राजस्थान के गौरवशाली अतीत को उजागर करती है, बल्कि थार रेगिस्तान को सिर्फ रेत का मैदान नहीं, बल्कि एक प्राचीन और समृद्ध सभ्यता का गवाह साबित करती है।