झारखंड के नायक शिबू सोरेन नहीं रहे: राजनीति का एक अध्याय खत्म, 3 दिन का शोक घोषित
झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और ‘दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन का 81 वर्ष की आयु में दिल्ली में निधन हो गया। उनके संघर्षमय जीवन और आदिवासी हितों के लिए समर्पण ने झारखंड की राजनीति को हमेशा प्रेरित किया।

झारखंड की राजनीति में एक युग का अंत हो गया। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का आज सुबह दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। 81 वर्ष की आयु में लंबी बीमारी के बाद उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर ने पूरे झारखंड में शोक की लहर दौड़ा दी। उनके बेटे और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भावुक होकर कहा, “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूँ।”
शिबू सोरेन, जिन्हें आदिवासी समाज में ‘दिशोम गुरु’ के नाम से जाना जाता था, ने अपने जीवन को आदिवासी हितों, सामाजिक न्याय और झारखंड के गठन के लिए समर्पित किया। उनका जीवन संघर्ष, समर्पण और दृढ़ संकल्प की एक प्रेरणादायक कहानी है।
एक साधारण शुरुआत से ‘दिशोम गुरु’ तक
11 जनवरी 1944 को रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में एक आदिवासी परिवार में जन्मे शिबू सोरेन का बचपन कठिनाइयों से भरा था। उनके पिता, सोबरन मांझी, एक शिक्षक थे और क्षेत्र में सबसे पढ़े-लिखे आदिवासियों में गिने जाते थे। लेकिन 1957 में, जब शिबू केवल 13 वर्ष के थे, उनके पिता की महाजनों द्वारा हत्या कर दी गई। इस घटना ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। पिता की हत्या ने उनके भीतर सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ने की ज्वाला जगा दी।
शिबू ने पढ़ाई छोड़ दी और महाजनों के शोषण के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। 1960 के दशक में उन्होंने आदिवासियों को एकजुट करना शुरू किया, जिसने उन्हें धीरे-धीरे एक जननायक बना दिया। गांव-गांव घूमकर उन्होंने ‘धनकटनी आंदोलन’ चलाया, जिसमें महाजनों द्वारा हड़पी गई फसलों को वापस लेकर गरीबों में बांटा जाता था।
झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना और आंदोलन
1972 में शिबू सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा और अलग झारखंड राज्य की मांग को बल देना था। उनके नेतृत्व में JMM ने सामाजिक और राजनीतिक चेतना का अभियान चलाया। ‘जंगल, जल, जमीन’ के नारे के साथ शुरू हुआ उनका आंदोलन आदिवासी समुदाय की आवाज बना। 15 नवंबर 2000 को जब झारखंड बिहार से अलग होकर एक नया राज्य बना, तो इसमें शिबू सोरेन की भूमिका को ऐतिहासिक माना गया।
जीत, हार और विवाद
शिबू सोरेन का राजनीतिक करियर उतार-चढ़ावों से भरा रहा। उन्होंने 1977 में पहली बार दुमका लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 1980 में वह पहली बार दुमका से सांसद चुने गए और इसके बाद 1989, 1991, 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 में भी इस सीट से जीत हासिल की। 2002 और 2020 में वह राज्यसभा सदस्य भी रहे।
2004 में मनमोहन सिंह सरकार में वह केंद्रीय कोयला मंत्री बने, लेकिन 1975 के चिरूडीह हत्याकांड में गिरफ्तारी वारंट के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 2006 में उनके निजी सचिव शशिनाथ झा की 1994 में हुई हत्या के मामले में उन्हें दोषी ठहराया गया, लेकिन बाद में उच्च न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया। इन विवादों के बावजूद, उन्होंने आदिवासी हितों को हमेशा प्राथमिकता दी।
शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने—2 मार्च 2005 से 12 मार्च 2005 (10 दिन), 27 अगस्त 2008 से 19 जनवरी 2009, और 30 दिसंबर 2009 से 31 मई 2010। हालांकि, वह कभी भी पूर्ण कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। उनकी पहली सरकार केवल 10 दिन चली, जब वह बहुमत साबित नहीं कर पाए। फिर भी, उनकी करिश्माई छवि और जनता से जुड़ाव ने उन्हें हमेशा लोकप्रिय बनाए रखा।
व्यक्तिगत जीवन परिवार और विरासत
शिबू सोरेन ने रूपी किस्कू से शादी की और उनके तीन बेटे—दुर्गा, हेमंत और बसंत—तथा एक बेटी अंजली हैं। उनके बेटे हेमंत सोरेन वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री हैं और JMM की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। शिबू को उनके समर्थकों द्वारा ‘गुरुजी’ कहा जाता था, और हर साल 2 फरवरी को दुमका में उनके जन्मदिन पर हजारों लोग उनकी एक झलक पाने के लिए जुटते थे।
अंतिम दिन और शोक
जून 2025 में किडनी की समस्या और ब्रेन स्ट्रोक के बाद शिबू सोरेन को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह पिछले एक महीने से वेंटिलेटर पर थे। सोमवार सुबह 8:56 बजे उन्हें मृत घोषित किया गया। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे सहित कई नेताओं ने शोक व्यक्त किया। पीएम मोदी ने कहा, “शिबू सोरेन एक जमीनी नेता थे, जिन्होंने आदिवासी समुदायों और वंचितों के सशक्तिकरण के लिए समर्पित जीवन जिया।”
झारखंड की राजनीति में एक खालीपन
शिबू सोरेन का निधन न केवल JMM के लिए, बल्कि पूरे झारखंड के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वह न सिर्फ एक राजनेता थे, बल्कि आदिवासी समाज के लिए एक प्रतीक थे। उनकी विरासत को उनके बेटे हेमंत सोरेन और JMM के कार्यकर्ता आगे बढ़ाएंगे, लेकिन ‘दिशोम गुरु’ की अनुपस्थिति लंबे समय तक महसूस की जाएगी।
उनके अंतिम संस्कार को राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। झारखंड के लोग अपने इस महान नेता को नम आंखों से विदाई दे रहे हैं, जिन्होंने उनके हक की लड़ाई को अपनी जिंदगी बना लिया।