सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी, बच्चों का भविष्य दांव पर, शिक्षा व्यवस्था पर सवाल
राजस्थान के सरकारी स्कूलों में 84,000 से अधिक शिक्षक पद रिक्त होने से शिक्षा व्यवस्था संकट में है, ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों की बदहाल स्थिति और अभिभावकों के विरोध ने सरकार की निष्क्रियता को उजागर किया।

राजस्थान के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी ने शिक्षा व्यवस्था को गहरे संकट में डाल दिया है। विशेष रूप से ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों जैसे बाड़मेर, जालोर, जैसलमेर और श्रीगंगानगर में स्कूलों की स्थिति बदहाल है। कई स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं, जिसके कारण कक्षाएं या तो नहीं चल रही हैं या पेड़ों के नीचे और जर्जर भवनों में संचालित हो रही हैं। इस स्थिति ने बच्चों के भविष्य को खतरे में डाल दिया है और शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के उल्लंघन का गंभीर सवाल उठाया है।
शिक्षकों की कमी का विकराल रूप
राज्य में शिक्षकों के लगभग 84,000 पद रिक्त हैं, जिनमें प्राचार्य, व्याख्याता, वरिष्ठ अध्यापक और तृतीय श्रेणी शिक्षक शामिल हैं। ग्रामीण स्कूलों में स्थिति और गंभीर है, जहां कई स्कूल केवल एक या दो शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं। कुछ स्कूलों में तो लिपिक या चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही पढ़ाने को मजबूर हैं। श्रीगंगानगर के रायसिंहनगर में एक स्कूल में 19 में से 11 शिक्षक पद रिक्त हैं। यह समस्या पूरे राज्य में व्याप्त है, जिसने शिक्षा की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित किया है।
अभिभावकों और छात्रों का आक्रोश
शिक्षकों की कमी के विरोध में बाड़मेर, जालोर और जैसलमेर के कई स्कूलों के बाहर अभिभावकों और छात्रों ने धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया है। स्कूलों के गेट पर ताले जड़ गए हैं, और प्रदर्शनकारी तत्काल शिक्षक भर्ती और बुनियादी सुविधाओं की मांग कर रहे हैं। अभिभावकों का कहना है कि बिना शिक्षकों के स्कूल केवल कागजी औपचारिकता बनकर रह गए हैं। एक अभिभावक ने कहा, “हमारे बच्चों का भविष्य अंधेरे में है। सरकार को यह संकट दिखाई क्यों नहीं देता?”
शिक्षा विभाग की निष्क्रियता
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर और शिक्षा विभाग इस संकट के लिए आलोचना के घेरे में हैं। हाल ही में 450 स्कूलों को कम नामांकन के कारण बंद करने का निर्णय लिया गया, जिसे आलोचक शिक्षक कमी को छिपाने का बहाना मानते हैं। इसके अलावा, महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के लिए हिंदी माध्यम स्कूलों से शिक्षकों का स्थानांतरण किया गया, जिससे ग्रामीण स्कूलों में स्थिति और खराब हो गई। शिक्षक संगठनों और विपक्ष ने सरकार पर निष्क्रियता का आरोप लगाया है। विपक्षी नेता गोविंद सिंह डोटासरा ने दावा किया कि 1,25,000 शिक्षक पद रिक्त हैं, और सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही।
बच्चों के भविष्य पर संकट
शिक्षकों की कमी के साथ-साथ स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी गंभीर समस्या है। कई स्कूलों में पीने का पानी, शौचालय, बिजली और उचित भवन तक नहीं हैं। ऐसी स्थिति में बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं, और उनकी सुरक्षा भी खतरे में है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार निजी स्कूलों का खर्च नहीं उठा सकते, जिसके कारण उनके बच्चे शिक्षा से बाहर हो रहे हैं। शिक्षाविदों का कहना है कि यह स्थिति शिक्षा के अधिकार को कमजोर कर रही है।
सुधार की जरूरत
इस संकट से निपटने के लिए तत्काल और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों के सुझाव हैं:
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रिक्त शिक्षक पदों को भरने के लिए तेजी से भर्ती प्रक्रिया शुरू की जाए।
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स्कूलों में भवन, शौचालय, पीने का पानी और बिजली जैसी सुविधाएं सुनिश्चित की जाएं।
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शिक्षकों के स्थानांतरण को पारदर्शी और ग्रामीण जरूरतों के अनुरूप किया जाए।
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शिक्षा विभाग के अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए और स्कूलों की नियमित निगरानी हो।
हालांकि, शिक्षा विभाग ने 63,000 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती की घोषणा की है, लेकिन शिक्षक भर्ती प्रक्रिया अभी भी धीमी है। यदि सरकार समय रहते कदम नहीं उठाती, तो राजस्थान की शिक्षा व्यवस्था और गहरे संकट में फंस सकती है, जिसका सबसे बड़ा नुकसान बच्चों के भविष्य को होगा।