हितेशी की अनमोल देन: नर्सिंग ऑफिसर की अंतिम सांसों ने दी तीन जिंदगियों को नई उड़ान
हितेशी बोराणा, जोधपुर की 31 वर्षीय नर्सिंग ऑफिसर, एक सड़क हादसे में ब्रेन डेड होने के बाद तीन लोगों को नई जिंदगी दे गईं। उनके परिवार ने उनकी दोनों किडनी और लिवर दान करने का फैसला लिया। एक किडनी और लिवर जोधपुर में दो मरीजों को प्रत्यारोपित किए गए, जबकि दूसरी किडनी जयपुर के एसएमएस अस्पताल भेजी गई। हितेशी की इस नेक पहल ने अंगदान के प्रति जागरूकता फैलाई और उनके परिवार ने मानवता की मिसाल पेश की।

जोधपुर की बेटी हितेशी बोराणा ने अपनी जिंदगी के आखिरी पल में भी मानवता की ऐसी मिसाल कायम की, जो हर किसी के दिल को छू जाए। 31 साल की हितेशी, जो राजकोट में नर्सिंग ऑफिसर के रूप में अपनी सेवाएं दे रही थीं, एक सड़क हादसे का शिकार हो गईं। ब्रेन डेड घोषित होने के बाद उनके परिवार ने एक ऐसा फैसला लिया, जिसने तीन लोगों की जिंदगी को नया प्रकाश दिया। हितेशी के लिवर और दोनों किडनी ने जोधपुर और जयपुर के मरीजों को नई जिंदगी बख्शी, जिससे उनकी कहानी अमर हो गई।
हितेशी जोधपुर के पाल रोड, रूपनगर द्वितीय की निवासी थीं। उन्होंने जोधपुर एम्स से बीएससी और एमएससी नर्सिंग की पढ़ाई पूरी की थी। डेढ़ साल पहले उन्हें राजकोट एम्स में नर्सिंग ऑफिसर की नौकरी मिली थी। 12 दिसंबर 2024 को राजकोट में हुए एक भीषण सड़क हादसे में वह गंभीर रूप से घायल हो गईं। इलाज के लिए उन्हें जोधपुर एम्स लाया गया, लेकिन 21 दिसंबर को डॉक्टरों ने उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया। इस दुखद पल में हितेशी के माता-पिता, लक्ष्मी नारायण बोराणा (सेवानिवृत्त प्रिंसिपल) और चंद्रकला (सेवानिवृत्त वरिष्ठ नर्सिंग अधिकारी), ने हिम्मत दिखाते हुए उनकी किडनी और लिवर दान करने का फैसला लिया।
हितेशी की एक किडनी जोधपुर में ही 38 साल की एक महिला को प्रत्यारोपित की गई, जिसकी किडनी उच्च रक्तचाप के कारण खराब हो चुकी थी। उनका लिवर 40 साल के एक पुरुष को दिया गया, जो हेपेटाइटिस के कारण लिवर की बीमारी से जूझ रहा था। दूसरी किडनी ग्रीन कॉरिडोर के जरिए जयपुर के सवाई मानसिंह (एसएमएस) अस्पताल भेजी गई, जहां एक अन्य मरीज को नया जीवन मिला। जोधपुर एम्स में रविवार को यह प्रत्यारोपण प्रक्रिया पूरी की गई, जिसमें डॉ. जीडी पुरी के मार्गदर्शन में डॉ. मनोज कमल, डॉ. अंकुर शर्मा और उनकी टीम ने अहम भूमिका निभाई।
हितेशी की अंतिम यात्रा को जोधपुर एम्स ने सम्मान के साथ विदाई दी। उनके पार्थिव शरीर को फूलों से सजी एम्बुलेंस में उनके घर भेजा गया, जहां डॉक्टरों और स्टाफ ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। हितेशी के इस बलिदान ने न केवल तीन लोगों को नया जीवन दिया, बल्कि समाज को अंगदान के प्रति जागरूक करने का भी संदेश दिया। उनके परिवार की इस नेक पहल ने साबित कर दिया कि इंसानियत की मिसालें मुश्किल वक्त में भी कायम की जा सकती हैं।