स्वच्छता पर हाईकोर्ट का सख्त रुख,एक हफ्ते में ठोस प्लान न देने पर नगर निगम पर भारी पड़ेगा, कचरा-मलबा संकट का समाधान जरूरी.
जोधपुर की सड़कों पर कचरे का ढेर और निर्माण मलबे का मायाजाल अब हाईकोर्ट के रडार पर है! राजस्थान हाईकोर्ट ने जोधपुर नगर निगम को सात दिन का अल्टीमेटम दिया है कि शहर की सफाई और कचरा प्रबंधन के लिए ठोस योजना पेश करें, वरना कार्रवाई तय है। महेश गहलोत की याचिका पर जस्टिस दिनेश मेहता और संगीता शर्मा की खंडपीठ ने यह सख्त आदेश दिया। क्या सूर्य नगरी फिर से चमकेगी? अब निगम पर सबकी नजर!

जोधपुर, 17 सितंबर 2025: राजस्थान की सूर्य नगरी जोधपुर में गंदगी का अंबार लगता जा रहा है, लेकिन अब कोर्ट ने साफ कह दिया है- अब बहाने नहीं चलेंगे! राजस्थान हाईकोर्ट ने जोधपुर नगर निगम को शहर की लचर सफाई व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए एक हफ्ते का अल्टीमेटम थमा दिया है। अगर समय पर विस्तृत योजना नहीं सौंपी गई, तो निगम को कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। यह आदेश ठोस कचरे के ढेर और निर्माण मलबे की समस्या से जूझते शहरवासियों के लिए एक बड़ी राहत है, लेकिन सवाल यह है कि क्या निगम इस चुनौती को स्वीकार कर पाएगा?
मामले की पृष्ठभूमि: याचिका से शुरू हुई सफाई की जंग
यह मामला महेश गहलोत नामक एक स्थानीय निवासी की जनहित याचिका (PIL) से जुड़ा है, जिसमें शहर की बिगड़ती सफाई व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाए गए थे। याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि जोधपुर की सड़कों पर कचरे के ढेर, नालियों में रुकावट और निर्माण स्थलों पर बिखरा मलबा न सिर्फ स्वास्थ्य जोखिम बढ़ा रहा है, बल्कि पर्यावरण और शहर की छवि को भी धूमिल कर रहा है। खासकर मानसून के बाद की स्थिति और भी खराब हो गई है, जहां जलभराव के साथ कचरा बहकर मुख्य सड़कों पर फैल जाता है।हाईकोर्ट की जोधपुर बेंच ने इस याचिका को गंभीरता से लेते हुए मंगलवार को सुनवाई की। जस्टिस दिनेश मेहता और जस्टिस संगीता शर्मा की खंडपीठ ने नगर निगम के अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई। बेंच ने कहा, "शहर की सफाई निगम का संवैधानिक दायित्व है। बार-बार शिकायतें आने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, यह लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।" कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए कि निगम को अगली सुनवाई से एक सप्ताह पहले (यानी 24 सितंबर तक) एक विस्तृत कार्यान्वयन योजना पेश करनी होगी।
योजना में क्या-क्या शामिल होना चाहिए?
कोर्ट के सख्त निर्देशखंडपीठ ने योजना को महज कागजी कार्रवाई बनाने की बजाय व्यावहारिक और समयबद्ध बनाने पर जोर दिया है। मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
शहर की सफाई का मास्टर प्लान: दैनिक, साप्ताहिक और मासिक सफाई शेड्यूल, जिसमें सभी वार्डों को कवर किया जाए। कोर्ट ने विशेष रूप से मुख्य बाजारों, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और पर्यटन स्थलों जैसे उम्मेद भवन पैलेस इलाके पर फोकस करने को कहा है।
ठोस कचरा प्रबंधन: कचरा संग्रहण, पृथक्करण (गीला-सूखा), रीसाइक्लिंग और लैंडफिल साइट्स का विकास। निगम को बताना होगा कि रोजाना कितना कचरा उत्पन्न होता है और उसका निपटान कैसे होगा। वर्तमान में जोधपुर में प्रतिदिन करीब 500 टन कचरा निकलता है, लेकिन प्रसंस्करण की क्षमता अपर्याप्त है।
निर्माण मलबे का समाधान: बिल्डिंग निर्माण के दौरान उत्पन्न मलबे के लिए अलग से डिस्पोजल सिस्टम। कोर्ट ने निर्देश दिया कि अवैध डंपिंग पर तत्काल रोक लगे और ठेकेदारों पर जुर्माना लगाया जाए। एक रिपोर्ट के अनुसार, शहर में 20% से अधिक कचरा इसी मलबे का है।
मानव संसाधन और संसाधन: सफाई कर्मचारियों की भर्ती, ट्रेनिंग और उपकरणों (जैसे स्वीपिंग मशीनें, डंपर) की व्यवस्था। हाल ही में राजस्थान में सफाई कर्मचारी भर्ती प्रक्रिया में देरी की खबरें आई हैं, जिसका असर जोधपुर पर भी पड़ा है।
मॉनिटरिंग तंत्र: योजना के क्रियान्वयन के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित करना, जिसमें एनजीओ और स्थानीय प्रतिनिधि शामिल हों। कोर्ट ने कहा कि प्रगति रिपोर्ट हर 15 दिन में पेश की जाए।
कोर्ट ने निगम को चेतावनी दी कि अगर योजना अपर्याप्त पाई गई, तो अधिकारियों के खिलाफ contempt of court की कार्रवाई हो सकती है। साथ ही, राज्य सरकार को भी निर्देश दिए गए हैं कि फंडिंग में कोई कमी न हो।
शहरवासियों की परेशानी: गंदगी का बोझ क्यों बढ़ा?
जोधपुर, जो अपनी नीली दीवारों और राजसी वैभव के लिए जाना जाता है, आज कचरे की समस्या से जूझ रहा है। तेज शहरीकरण, बढ़ती आबादी (लगभग 15 लाख) और पर्यटन के कारण कचरा उत्पादन दोगुना हो गया है। नगर निगम के पास अपर्याप्त वाहन और कर्मचारी हैं, जबकि निर्माण बूम ने मलबे की समस्या को और गंभीर बना दिया। स्थानीय निवासियों का कहना है कि कई इलाकों में सप्ताह में एक बार ही कचरा उठता है, जिससे बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ गया है। एक सर्वे में पाया गया कि 60% से अधिक लोग सफाई व्यवस्था से असंतुष्ट हैं।यह पहली बार नहीं है जब हाईकोर्ट ने सफाई पर सख्ती दिखाई। 2022 में जयपुर की सफाई पर भी इसी तरह का आदेश आया था, जहां कोर्ट ने निगम को जिम्मेदार ठहराया था। जोधपुर मामले में भी वही इतिहास दोहराया जा रहा है, जो शहर की लापरवाही को उजागर करता है।
आगे की राह: उम्मीदें और चुनौतियां
यह अल्टीमेटम निगम के लिए परीक्षा की घड़ी है। अगर योजना प्रभावी रही, तो जोधपुर न सिर्फ स्वच्छ बनेगा, बल्कि पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि बिना सरकारी समर्थन और जनभागीदारी के यह मुश्किल है। स्थानीय एनजीओ ने स्वागत करते हुए कहा, "कोर्ट का हस्तक्षेप जरूरी था, अब अमल पर नजर रखनी होगी।"अगली सुनवाई में निगम की योजना पर कोर्ट का फैसला तय करेगा कि जोधपुर की सड़कें कितनी जल्दी चमकेंगी। फिलहाल, शहरवासी उम्मीद बांधे बैठे हैं कि यह आदेश सिर्फ कागजों तक सीमित न रहे। क्या निगम समय पर प्लान दे पाएगा? आने वाले दिनों में इसका जवाब मिलेगा।