दीपावली की रोशनी बुझ गई: छुट्टी की उम्मीद में आई पत्नी, कफन ओढ़े लौटी घर... दिव्यांग पति का फूट-फूटकर रोना....
जयपुर के एसएमएस अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में रविवार रात न्यूरो आईसीयू में शॉर्ट सर्किट से लगी भीषण आग ने 8 मरीजों की जान ले ली, जिनमें भरतपुर की रुक्मणि देवी (55) शामिल थीं। दीपावली बाद छुट्टी की उम्मीद में थीं रुक्मणि, लेकिन कफन में लिपटी लौटीं। उनके दिव्यांग पति का रो-रोकर बुरा हाल है। परिजनों ने अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाया, कहा- शॉर्ट सर्किट की चेतावनी नजरअंदाज की गई। 5 मरीज गंभीर, मृतकों की संख्या बढ़ने की आशंका। सरकार ने 6 सदस्यीय जांच समिति बनाई।

जयपुर/भरतपुर, 7 अक्टूबर 2025: राजस्थान की राजधानी जयपुर के प्रसिद्ध सवाई मानसिंह (एसएमएस) अस्पताल में रविवार रात को ट्रॉमा सेंटर के न्यूरो आईसीयू में लगी भयानक आग ने कई परिवारों की जिंदगी उजाड़ दी। इस हादसे में अब तक कम से कम 8 मरीजों की मौत हो चुकी है, जिनमें 3 महिलाएं शामिल हैं। आग के समय आईसीयू में 11 गंभीर मरीज भर्ती थे, जिनमें से 5 अभी भी खतरे के साये में हैं। प्रारंभिक जांच में शॉर्ट सर्किट को आग का मुख्य कारण बताया जा रहा है, लेकिन परिजनों का आरोप है कि अस्पताल प्रशासन की लापरवाही ने इस त्रासदी को और गहरा बना दिया। राज्य सरकार ने इस मामले की गहन जांच के लिए 6 सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति गठित की है, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने न्यायिक जांच की मांग की है।
हादसे का पूरा विवरण:
रविवार रात करीब 11:20 बजे ट्रॉमा सेंटर के न्यूरो आईसीयू में अचानक शॉर्ट सर्किट से चिंगारी फूटी, जो पलक झपकते ही भयानक आग में बदल गई। आग ने न सिर्फ बेड और उपकरणों को अपनी चपेट में ले लिया, बल्कि जहरीली गैसों का गुबार भी फैला दिया, जिससे मरीजों को सांस लेने में भारी दिक्कत हुई। अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर इंचार्ज डॉ. अनुराग धाकड़ के अनुसार, आग इतनी तेजी से फैली कि स्टाफ को मरीजों को ट्रॉली पर लादकर बाहर निकालना पड़ा। कुल 24 मरीजों को तुरंत अन्य वार्डों में शिफ्ट किया गया, लेकिन धुएं और आग की चपेट में 8 मरीजों की जान चली गई।मृतकों में भरतपुर जिले के गोपालगढ़ निवासी रुक्मणि देवी (55) का नाम प्रमुख है, जिनकी कहानी सुनकर हर कोई सिहर उठता है। 17 सितंबर को घर के बाथरूम में गिरने से रुक्मणि के सिर पर गंभीर चोट लगी थी। पहले उन्हें भरतपुर के जेके लोन अस्पताल में भर्ती किया गया, लेकिन हालत बिगड़ने पर जयपुर के एसएमएस अस्पताल रेफर कर दिया गया। कई दिनों के कठिन इलाज के बाद उनकी स्थिति में सुधार हो गया था। डॉक्टरों ने परिजनों को आश्वासन दिया था कि दीपावली के बाद छुट्टी मिल जाएगी और वे घर लौट आएंगी। लेकिन किसे पता था कि दीपावली की खुशियां मनाने की बजाय अब कफन ओढ़े उनका पार्थिव शरीर ही घर पहुंचेगा।परिजनों के अनुसार, रुक्मणि देवी एक मेहनती महिला थीं। वे घरों और स्कूलों में झाड़ू-पोंछा का काम करके अपने दिव्यांग पति का पालन-पोषण करती थीं। हादसे के बाद भरतपुर लाए गए शव को देखते ही पति फूट-फूटकर रो पड़े। वे बार-बार यही कह रहे थे, "दीपावली के बाद छुट्टी मिलती... अब तो सब खत्म हो गया।" परिजन उन्हें चुप कराने की कोशिश करते रहे, लेकिन एक मासूम बच्चा भी आंसू पोंछते नजर आया। यह दिल दहला देने वाला दृश्य देखकर वहां मौजूद हर शख्स की आंखें नम हो गईं। रुक्मणि की बेटी पूजा ने गुस्से और गम के आंसुओं के बीच बताया, "मां बिल्कुल ठीक हो रही थीं। भाई शेरू ने हादसे से ठीक पहले अस्पताल स्टाफ को शॉर्ट सर्किट और धुएं की शिकायत की थी, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। अगर समय पर कार्रवाई होती, तो आज मां हमारे साथ होतीं।"
अन्य मृतक: भरतपुर से 3 जिंदगियां छिनी
इस हादसे में भरतपुर जिले के 3 लोग शिकार हुए, जिनमें रुक्मणि के अलावा श्रीनाथ और खुरमा भी शामिल हैं। अन्य मृतकों में सीकर के पिंटू, जयपुर के आंधी क्षेत्र के दिलीप, संगानेर के बहादुर और एक अन्य मरीज का नाम है। परिजनों का कहना है कि आग लगने से पहले ही स्पार्क और धुआं दिखाई दे रहा था, लेकिन डॉक्टर और कंपाउंडरों ने चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया। एक परिजन ने बताया, "जब चिंगारी निकली, तो सिलेंडर के पास आग लग गई। स्टाफ ने गेट बंद कर दिए और खुद भाग गए। हम चिल्लाते रहे, लेकिन किसी ने नहीं सुना।" एक अन्य रिश्तेदार ओम प्रकाश ने कहा, "मेरी मामी का बेटा भी इसी आग में जल गया। हमने डॉक्टरों को आग के बारे में बताया, लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया।"
लापरवाही के आरोप: फायर अलार्म फेल, स्टाफ भागा
परिजनों का गुस्सा सड़क पर उतर आया। सोमवार सुबह एसएमएस अस्पताल के बाहर सैकड़ों लोग सड़क जाम कर धरना देने लगे। वे चिल्ला रहे थे, "न्याय दो, दोषियों को सजा दो!" आरोप है कि अस्पताल में फायर अलार्म काम नहीं कर रहा था, ऑक्सीजन लाइन बंद करने में देरी हुई और फायर फाइटिंग उपकरण अपर्याप्त थे। एक परिजन ने कहा, "आग बुझाने के लिए न सिलेंडर थे, न पानी। स्टाफ पहले भाग गया।" पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर कहा, "यह बेहद दुखद है। सरकार को उच्च स्तरीय जांच करनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसा न हो।"हालांकि, अस्पताल प्रशासन ने इन आरोपों का खंडन किया है। डॉ. धाकड़ ने बताया, "स्टाफ ने पूरी कोशिश की। आग तेजी से फैली, लेकिन हमने एक्सटिंग्विशर इस्तेमाल किए और फायर ब्रिगेड को तुरंत बुलाया।" लेकिन वीडियो फुटेज में दिखा कि दो पुलिस कांस्टेबल हरि मोहन और ललित शर्मा ने जान जोखिम में डालकर आग के बीच जाकर 12 मरीजों को बचाया, जिसमें एक सिर में चोटिल लड़का भी शामिल था।
सरकारी कार्रवाई: जांच समिति बनी, सीएम ने किया दौरा
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा रात में ही अस्पताल पहुंचे और घायलों का हाल जाना। उन्होंने कहा, "यह दर्दनाक हादसा है। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।" उन्होंने मेडिकल एजुकेशन सेक्रेटरी अंबरीश कुमार, पुलिस कमिश्नर बिजू जॉर्ज जोसेफ, जयपुर कलेक्टर जितेंद्र सोनी और एसएमएस मेडिकल कॉलेज प्रिंसिपल डॉ. सुधीर कुमार को विस्तृत रिपोर्ट देने के निर्देश दिए। 6 सदस्यीय जांच समिति का गठन मेडिकल एजुकेशन कमिश्नर इकबाल खान की अध्यक्षता में किया गया है, जो आग के कारण, सुरक्षा उपायों की कमी और स्टाफ की भूमिका की पड़ताल करेगी। फॉरेंसिक साइंस लैब (एफएसएल) टीम ने मौके से साक्ष्य एकत्र कर लिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शोक व्यक्त किया और पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना जताई।
भावुक अपील: परिवारों की पुकार
भरतपुर में रुक्मणि के अंतिम संस्कार के दौरान पूरा गांव सन्नाटे में डूब गया। दिव्यांग पति की वेदना देखकर लोग फूट-फूटकर रो पड़े। "मां की कमाई से ही हम पढ़े-लिखे। अब कौन संभालेगा?" यह हादसा न सिर्फ एक परिवार की कहानी है, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की लापरवाही का आईना है।