Kanwar Yatra 2025: लव मैरिज करने से नाराज़ गांव वालों को मनाने कावड़ लेकर गंगाजल लेने निकले कपल,85 वर्ष के बुजुर्ग ने भी उठाई कावड़

मुरैना के 82 वर्षीय केशव सिंह, जिन्हें भक्त गुरुजी कहते हैं, अब तक 63 कांवड़ यात्राएं पूरी कर चुके हैं। वे कहते हैं, "यह यात्रा आत्मिक शांति देती है। हम चाहते हैं कि हमारा परिवार और समाज सुखी रहे।" उनकी टोली भी अपनी कुलदेवी मंदिर में जल चढ़ाने के लिए हरिद्वार से निकली है।

Jul 19, 2025 - 13:07
Jul 19, 2025 - 14:57
Kanwar Yatra 2025: लव मैरिज करने से नाराज़ गांव वालों को मनाने कावड़ लेकर गंगाजल लेने निकले कपल,85 वर्ष के बुजुर्ग ने भी उठाई कावड़

उत्तर प्रदेश में इन दिनों हर तरफ भगवान शिव-शंकर के भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है। सावन के पवित्र महीने में कांवड़ यात्रा की धूम मची है, जहां लाखों श्रद्धालु कांवड़ लेकर हरिद्वार से गंगाजल लाने और अपने गांव-शहर के शिव मंदिरों में जलाभिषेक करने के लिए निकल पड़े हैं। यह यात्रा न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि भक्तों की अनूठी कहानियों और उनके समर्पण का जीवंत चित्रण भी है।

प्रेम विवाह के बाद समाज का दिल जीतने की कोशिश

नकला गांव के सौरभ नामदेव और खुशबू की कहानी दिल को छू लेने वाली है। इस नवदंपती ने हाल ही में प्रेम विवाह किया, लेकिन एक ही गांव और मोहल्ले के होने के कारण उनके परिवार और समाज ने इस शादी का विरोध किया। नतीजतन, उन्हें गांव छोड़ना पड़ा। अब, अपने प्यार को साबित करने और समाज का विश्वास जीतने के लिए यह जोड़ा हरिद्वार से 650 किलोमीटर दूर अपने गांव के शिव मंदिर तक कांवड़ लेकर जा रहा है।

3 जुलाई को हरकी पैड़ी से 25 लीटर गंगाजल के साथ शुरू हुई उनकी यात्रा में वे रोजाना 20-22 किलोमीटर पैदल चल रहे हैं। बुलंदशहर के गुलावठी में मिले इस जोड़े ने बताया कि वे 7 अगस्त तक अपने गांव पहुंचकर शिव मंदिर में जलाभिषेक करेंगे। सौरभ और खुशबू का कहना है, "हमने अपने परिवार की मर्जी के खिलाफ शादी की, लेकिन हम चाहते हैं कि समाज और परिवार हमारी भावनाओं को समझे। इस कांवड़ यात्रा के जरिए हम अपने प्यार की सच्चाई साबित करना चाहते हैं।"

दंडवत यात्रा: भाई की मुक्ति के लिए आकाश का संकल्प

शाहजहांपुर जिले के अल्लाहगंज क्षेत्र के हतोड़ा गांव निवासी 19 वर्षीय आकाश सिंह की कहानी भी कम प्रेरणादायक नहीं है। आकाश दंडवत होकर हरिद्वार से गंगाजल लाने के लिए निकले हैं। उनकी मंजिल फर्रुखाबाद के पास दिबियापुर का शिव मंदिर है, जो करीब 30 किलोमीटर दूर है। इस यात्रा में उन्हें 15 दिन लगेंगे।

आकाश ने बताया कि उनके भाई पर सड़क दुर्घटना का मुकदमा चल रहा था, जिसके चलते उन्होंने दंडवत कांवड़ लाने का प्रण लिया था। भाई के बाइज्जत बरी होने के बाद अब वे अपने एक साथी के साथ इस यात्रा को पूरा कर रहे हैं। कड़ी धूप और बारिश के बीच वे रात में यात्रा करते हैं और दिन में पेड़ की छांव में विश्राम करते हैं। आकाश कहते हैं, "यह यात्रा कठिन है, लेकिन भोले बाबा के प्रति हमारी श्रद्धा हमें आगे बढ़ने की ताकत देती है।"

64वीं बार खड़ी कांवड़ लेकर चले 85 वर्षीय बुजुर्ग

मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के 85 वर्षीय रामजीलाल की आस्था देखकर हर कोई दंग रह जाता है। वे 64वीं बार खड़ी कांवड़ लेकर हरिद्वार से अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहे हैं। 18 भक्तों की उनकी टोली 23 जुलाई तक अपने कुलदेवी मंदिर में गंगाजल अर्पित करेगी। रामजीलाल कहते हैं, "हमारी कामना है कि सभी सुखी और खुशहाल रहें। भोले बाबा की कृपा से हम हर साल यह यात्रा पूरी करते हैं।"

इसी तरह, मुरैना जिले के नरेश 800 किलोमीटर की खड़ी कांवड़ यात्रा पर हैं। उनकी 10वीं कांवड़ यात्रा है, और वे कहते हैं, "जब तक मंजिल पूरी नहीं हो जाती, कांवड़ कंधे से नहीं उतरेगी।" उनके साथी एक-दूसरे का सहयोग करते हुए कांवड़ को कंधे पर ही रखते हैं, क्योंकि खड़ी कांवड़ के नियम बेहद कठिन हैं। इसमें कांवड़ को जमीन पर रखना वर्जित है, और भक्त बारी-बारी से इसे कंधे पर उठाते हैं।

63 कांवड़ों का अनुभव: गुरुजी केशव सिंह की भक्ति

मुरैना के 82 वर्षीय केशव सिंह, जिन्हें भक्त गुरुजी कहते हैं, अब तक 63 कांवड़ यात्राएं पूरी कर चुके हैं। वे कहते हैं, "यह यात्रा आत्मिक शांति देती है। हम चाहते हैं कि हमारा परिवार और समाज सुखी रहे।" उनकी टोली भी अपनी कुलदेवी मंदिर में जल चढ़ाने के लिए हरिद्वार से निकली है।

खड़ी कांवड़ के कठिन नियम और भक्तों का समर्पण

खड़ी कांवड़ यात्रा के नियम अन्य कांवड़ यात्राओं से कहीं अधिक कठिन हैं। इसमें कांवड़ को कभी जमीन पर नहीं रखा जाता। जब एक भक्त को विश्राम या नित्यक्रिया की आवश्यकता होती है, तो दूसरा भक्त कांवड़ को अपने कंधे पर ले लेता है। इस तरह, भक्त एक-दूसरे के सहयोग से अपनी मंजिल तक पहुंचते हैं।

कांवड़ यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भक्तों के संकल्प, प्रेम, और समर्पण की कहानियों को भी बयां करती है। चाहे वह सौरभ और खुशबू का अपने प्यार को साबित करने का प्रयास हो, आकाश का अपने भाई के लिए प्रण, या रामजीलाल और केशव सिंह जैसे बुजुर्गों की अटूट भक्ति, ये सभी कहानियां इस पवित्र यात्रा को और भी खास बनाती हैं।

Yashaswani Journalist at The Khatak .