बाड़मेर में श्मशान घाट विवाद: दमाराम की मौत के बाद जोगी समाज का आक्रोश, वन विभाग का इनकार और देर रात अंतिम संस्कार

राजस्थान के बाड़मेर जिले के चौहटन चौहराया के पास 45 वर्षीय दमाराम की अचानक मौत के बाद जोगी समाज के परिजनों को पारंपरिक श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार करने से वन विभाग ने रोक दिया, क्योंकि इसे वन क्षेत्र घोषित किया गया है। गुस्साए ग्रामीणों ने सड़क पर धरना दिया, पुलिस ने समझाइश की, लेकिन परिजन कलेक्ट्रेट पहुंच गए। विधायक रविंद्र सिंह भाटी के हस्तक्षेप से रात 2 बजे सार्वजनिक श्मशान पर संस्कार संपन्न हुआ। समाज ने वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत दावा दायर करने की योजना बनाई है, जो पारंपरिक अधिकारों और वन नियमों के टकराव को उजागर करता है।

Oct 27, 2025 - 11:33
बाड़मेर में श्मशान घाट विवाद: दमाराम की मौत के बाद जोगी समाज का आक्रोश, वन विभाग का इनकार और देर रात अंतिम संस्कार

बाड़मेर, 27 अक्टूबर 2025: राजस्थान के बाड़मेर जिले के चौहटन चौराहे के पास बसे एक छोटे से समुदाय में दुख और गुस्से की लहर दौड़ गई, जब 45 वर्षीय दमाराम की अचानक मौत के बाद उनके परिजनों को अंतिम संस्कार के लिए पारंपरिक श्मशान घाट तक पहुंचने से रोक दिया गया। यह घटना न केवल एक परिवार के दर्द को उजागर करती है, बल्कि पीढ़ियों पुरानी परंपरा और वन विभाग के नियमों के बीच टकराव की गहरी खाई को भी सामने लाती है। जोगी समाज के लोगों का कहना है कि उनका श्मशान घाट, जो घर के ठीक पास स्थित है, सदियों से उनका अभिन्न अंग रहा है, लेकिन अब वन विभाग के कार्मिकों द्वारा इसे 'वन क्षेत्र' घोषित कर प्रवेश पर रोक लगा दी गई है। इस विवाद ने रविवार को सड़क पर धरना, पुलिस की समझाइश और देर रात तक चले तनाव को जन्म दिया।

दमाराम की मौत और अंतिम संस्कार की शुरुआत:  दमाराम, 45 वर्षीय निवासी चौहटन चौराहे के पास के एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनकी मौत स्वास्थ्य संबंधी किसी समस्या के कारण अचानक हुई। परिजनों ने तुरंत उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए घर के निकट बने पारंपरिक श्मशान घाट की ओर रवाना किया। यह श्मशान घाट जोगी समाज का सामुदायिक स्थल है, जहां पीढ़ियों से अंतिम संस्कार की रस्में निभाई जाती रही हैं। समाज के बुजुर्गों का कहना है कि यह जगह न केवल धार्मिक महत्व की है, बल्कि सामाजिक एकजुटता का प्रतीक भी।हालांकि, जैसे ही शवयात्रा श्मशान घाट पहुंची, वन विभाग के कार्मिकों ने कड़ा रुख अपनाते हुए अंतिम संस्कार की अनुमति देने से इनकार कर दिया। विभाग के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह क्षेत्र वन संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत आता है, और बिना उचित अनुमति के यहां कोई धार्मिक या सांस्कृतिक गतिविधि आयोजित नहीं की जा सकती। कार्मिकों ने तर्क दिया कि यह नियम वन्यजीवों और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए है, और किसी भी उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी। लेकिन परिजनों के लिए यह फैसला असहनीय था—उन्हें लगा कि उनके पारंपरिक अधिकारों पर डाका पड़ रहा है।

धरना और तनाव का बढ़ना:  वन विभाग के इनकार के बाद गुस्साए परिजन और स्थानीय जोगी समाज के लोग शव को लेकर वन क्षेत्र के गेट के बाहर ही धरना देने बैठ गए। सैकड़ों ग्रामीणों ने शव को सड़क पर रखा और नारेबाजी शुरू कर दी। उनका मांग स्पष्ट थी: "हमारा श्मशान घाट वही रहे, वन विभाग का हस्तक्षेप बंद हो।" धरना कई घंटों तक चला, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हो गए। इस दौरान शवयात्रा रुकने से माहौल में गमगीनता के साथ-साथ आक्रोश भी फैलता गया। ग्रामीणों ने बताया कि इस श्मशान घाट का उपयोग दशकों से हो रहा है, और अब अचानक वन विभाग का दावा उनके जीवन को प्रभावित कर रहा है। पीढ़ियां यहीं जन्मीं, यहीं मरीं और यहीं दाह संस्कार किया। यह हमारी धरती है, वन का नाम देकर हमें बेघर मत बनाओ। समाज के एक अन्य सदस्य ने कहा कि वन विभाग ने हाल ही में इस क्षेत्र को चिह्नित किया है, जिससे दैनिक जीवन प्रभावित हो रहा है—चाहे मवेशियों के चराने का मुद्दा हो या सामुदायिक समारोह।

पुलिस और प्रशासन की समझाइश, लेकिन परिजनों का जिद्द:  घंटों के इंतजार के बाद बाड़मेर पुलिस की टीम मौके पर पहुंची और परिजनों से समझाइश करने लगे। पुलिस ने प्रस्ताव दिया कि शव को नजदीकी सार्वजनिक श्मशान घाट ले जाया जाए, जहां अंतिम संस्कार बिना किसी बाधा के किया जा सके। समझाइश के बाद परिजन सहमत हुए और शव को सार्वजनिक श्मशान की ओर रवाना करने लगे। लेकिन रास्ते में ही उनका मन बदल गया। गुस्से में परिजनों ने शव को लेकर सीधे जिला कलेक्ट्रेट की ओर कूच कर लिया, मांग करते हुए कि प्रशासन इस विवाद को स्थायी रूप से सुलझाए।कलेक्ट्रेट के रास्ते में प्रशासन और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें रोक लिया। कार्यालय से निर्देश पर टीम ने फिर से बातचीत की कोशिश की, लेकिन परिजन नहीं माने। वे वहीं सड़क पर धरना देकर बैठ गए। रात गहराने लगी, लेकिन तनाव कम न होने पाने का नाम न ले रहा था। सड़क पर ट्रैफिक प्रभावित हो गया, और स्थानीय लोग भी इकट्ठा होने लगे। इस दौरान जोगी समाज के प्रतिनिधियों ने वन विभाग के अधिकारियों से फोन पर बात की, लेकिन कोई समाधान न निकला।

 देर रात अंतिम संस्कार: रात करीब 11 बजे मामला और गंभीर हो गया, तभी क्षेत्र के शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी मौके पर पहुंचे। विधायक ने तुरंत स्थिति का जायजा लिया और मृतक के परिजनों से लंबी चर्चा की। उन्होंने आश्वासन दिया कि इस मुद्दे को विधानसभा स्तर पर उठाया जाएगा और श्मशान घाट के संबंध में उचित कार्रवाई की जाएगी। विधायक की समझाइश पर परिजन आखिरकार सहमत हुए। करीब रात 2 बजे शव को सार्वजनिक श्मशान घाट ले जाया गया, जहां अंतिम संस्कार संपन्न कराया गया। विधायक स्वयं अंतिम समय तक मौजूद रहे, जिससे परिवार को थोड़ी राहत मिली।

जोगी समाज की मांग: इस

पूरी घटना के पीछे जोगी समाज का एक बड़ा दर्द छिपा है। चौहटन चौराहे के पास यह श्मशान घाट 100 वर्षों से अधिक पुराना है। यहां न केवल अंतिम संस्कार होते हैं, बल्कि सामुदायिक सभाएं भी आयोजित की जाती हैं। वन विभाग का दावा है कि यह भूमि वन क्षेत्र में आती है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि राजस्व रिकॉर्ड में यह श्मशान के रूप में दर्ज है। समाज ने मांग की है कि प्रशासन इसकी जांच कराए और पारंपरिक अधिकारों को मान्यता दे। ग्रामीण इलाकों में ऐसे विवाद आम हैं, जहां वन संरक्षण कानून और स्थानीय परंपराओं के बीच टकराव होता है। वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत संरक्षित क्षेत्रों में गतिविधियां प्रतिबंधित हैं, लेकिन आदिवासी और पारंपरिक समुदायों के अधिकारों को मान्यता देने के लिए वन अधिकार अधिनियम, 2006 मौजूद है। जोगी समाज अब इस कानून के तहत दावा दायर करने की योजना बना रहा है।