खांसने की आवाज से एआई करेगा लेटेंट टीबी का पता: राजस्थान के 37 जिलों में अक्टूबर से ऐप-आधारित जांच शुरू
अक्टूबर से राजस्थान के 37 जिलों में खांसने की आवाज से लेटेंट टीबी का पता लगाने वाला एआई-आधारित मोबाइल ऐप शुरू होगा। यह सुविधा सब-सेंटरों पर उपलब्ध होगी, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में टीबी जांच तेज और सस्ती होगी।

टीबी जैसी घातक बीमारी से निपटने के लिए राजस्थान चिकित्सा विभाग ने एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। अब स्वस्थ लोगों में छिपी हुई (लेटेंट) टीबी का पता लगाने के लिए खांसने की आवाज की रिकॉर्डिंग पर्याप्त होगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से लैस मोबाइल ऐप के जरिए यह जांच संभव होगी, जो ग्रामीण क्षेत्रों में सब-सेंटरों पर आसानी से उपलब्ध होगी। जयपुर सहित 37 जिलों में यह नई सुविधा अक्टूबर माह से शुरू हो जाएगी। इससे टीबी के शुरुआती चरण में ही संक्रमण का पता चल सकेगा, जिससे लाखों जिंदगियां बचाई जा सकेंगी।
लेटेंट टीबी: छिपा खतरा जो लाखों को प्रभावित करता है
टीबी (क्षय रोग) भारत में एक प्रमुख स्वास्थ्य चुनौती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, देश में हर साल करीब 10 लाख नए टीबी केस सामने आते हैं। लेकिन सबसे बड़ी समस्या लेटेंट टीबी की है, जो बिना लक्षणों के शरीर में छिपी रहती है और कभी भी सक्रिय हो सकती है। पारंपरिक जांच जैसे बलगम परीक्षण, एक्स-रे या सीबीएनएएटी मशीन पर निर्भर रहने से कई मामलों में देरी हो जाती है।
नई तकनीक इस कमी को दूर करेगी। एआई-आधारित ऐप खांसने की आवाज के विश्लेषण से संक्रमण का पता लगाएगा। यह ऐप गूगल के हेल्थ एकॉस्टिक रिप्रेजेंटेशंस (HeAR) मॉडल पर आधारित है, जो ध्वनि तरंगों के पैटर्न को पढ़कर टीबी बैक्टीरिया की मौजूदगी का अनुमान लगाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह विधि 90% तक सटीक हो सकती है, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां उन्नत मशीनें उपलब्ध नहीं होतीं।
जांच प्रक्रिया: सरल और तेज, सिर्फ 5 मिनट में रिजल्ट
यह ऐप उपयोगकर्ता-अनुकूल है और किसी विशेष उपकरण की जरूरत नहीं। जांच कराने वाले को निम्नलिखित कदम अपनाने होंगे:
- ऐप डाउनलोड और रजिस्ट्रेशन: गूगल प्ले स्टोर से ऐप डाउनलोड करें। सब-सेंटर पर उपलब्ध एक विशेष नंबर से रजिस्टर करें।
- रिकॉर्डिंग: तीन बार खांसने की आवाज रिकॉर्ड करें। इसके अलावा, एक बार बैकग्राउंड शोर (परिवेश ध्वनि) रिकॉर्ड करें ताकि शोर-प्रूफ विश्लेषण हो सके।
- दूरी और सहमति: रिकॉर्डिंग के दौरान व्यक्ति से कम से कम तीन फीट की दूरी रखें। प्राकृतिक खांसी आए तो उसे ही रिकॉर्ड करें, अन्यथा हल्की खांसी उत्तेजित करें। जांच से पहले लिखित सहमति लें और नाम, पता, मोबाइल नंबर सहित पूरा प्रोफॉर्मा भरें।
- रिजल्ट: रिकॉर्डिंग अपलोड करने के बाद एआई कुछ मिनटों में रिपोर्ट जनरेट करेगा। पॉजिटिव केस में तुरंत आगे की जांच और इलाज की सलाह दी जाएगी।
यह प्रक्रिया पूरी तरह गोपनीय और डेटा-सुरक्षित होगी, जिससे मरीजों की निजता बनी रहेगी। चिकित्सा विभाग ने साफ निर्देश दिए हैं कि गाइडलाइंस का पालन अनिवार्य होगा, अन्यथा डेटा अमान्य हो सकता है।
37 जिलों में विस्तार: ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूती
राजस्थान के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने इस पहल को पूरे राज्य में फैलाने की योजना बनाई है। जयपुर के अलावा जोधपुर, उदयपुर, कोटा, बीकानेर, अजमेर, अलवर, बाड़मेर, बांसवाड़ा, बारां, बूंदी, चित्तौड़गढ़, चुरू, दौसा, धौलपुर, डूंगरपुर, हनुमानगढ़, जैसलमेर, जालौर, झालावाड़, झुंझुनू, करौली, किशनगढ़, नागौर, पाली, प्रतापगढ़, राजसमंद, सवाई माधोपुर, सीकर, सीकर, श्रीगंगानगर, टोंक, वीरभूमि और सिरोही जैसे 37 जिलों के सभी सब-सेंटरों पर यह सुविधा अक्टूबर से उपलब्ध होगी।
इससे ग्रामीण क्षेत्रों में टीबी स्क्रीनिंग की पहुंच बढ़ेगी। विभाग का लक्ष्य है कि साल के अंत तक 5 लाख से अधिक लोगों की जांच हो। केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना के तहत यह एकीकरण किया गया है, जो डिजिटल हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करेगा।
विशेषज्ञों की राय: 'यह टीबी उन्मूलन की दिशा में बड़ा कदम'
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की प्रमुख शासन सचिव गायत्री राठौड़ ने कहा, "अगले माह से जयपुर समेत 37 जिलों में टीबी संक्रमण का पता मोबाइल एप के जरिए लगाया जा सकेगा, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी शामिल है। यह सुविधा अक्टूबर माह में शुरू होगी। इससे न केवल जांच तेज होगी, बल्कि टीबी के प्रसार को रोकने में भी मदद मिलेगी।"
टीबी विशेषज्ञ डॉ. राजेश शर्मा ने बताया, "खांसने की आवाज में टीबी बैक्टीरिया की सूक्ष्म ध्वनियां होती हैं, जिन्हें एआई आसानी से पकड़ लेता है। यह खासकर उन लोगों के लिए वरदान है जो लक्षणों के बिना संक्रमित होते हैं।" गूगल इंडिया के स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी इस तकनीक को सराहा है, जो पहले पुदुचेरी और उत्तर प्रदेश में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में सफल रही।
लाभ और भविष्य की संभावनाएं
- तेज और सस्ती जांच: पारंपरिक तरीकों की तुलना में लागत 80% कम।
- जागरूकता बढ़ावा: ऐप के जरिए स्वास्थ्य शिक्षा भी दी जाएगी।
- राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार: सफलता पर अन्य राज्यों में भी लागू होगा।
- चुनौतियां: इंटरनेट कनेक्टिविटी और प्रशिक्षण की जरूरत।