50 साल पुराना रास्ता बंद, दिव्यांग रमेश की टूटी उम्मीदें — इच्छा मृत्यु की लगाई गुहार

एक 50 वर्षीय दिव्यांग व्यक्ति और उनकी 75 वर्षीय बीमार मां ने पड़ोसियों द्वारा पुश्तैनी रास्ता बंद करने के कारण इच्छा मृत्यु की गुहार लगाई। प्रशासन ने रास्ते को वैध माना, लेकिन तहसीलदार की लापरवाही से समस्या बरकरार है।

Sep 27, 2025 - 14:55
50 साल पुराना रास्ता बंद, दिव्यांग रमेश की टूटी उम्मीदें — इच्छा मृत्यु की लगाई गुहार

जिले के दुर्जनपुरा गांव में एक घटना ने सभी का ध्यान खींचा है। 50 वर्षीय दिव्यांग रमेश कुमार, जो दोनों पैरों से चलने में असमर्थ हैं, और उनकी 75 वर्षीय हृदय रोगी मां केसर देवी ने जिला कलेक्ट्रेट में पहुंचकर इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है। रमेश का आरोप है कि पड़ोसी खातेदारों चूनाराम, पूर्णाराम और हनुमानाराम ने उनके घर और खेत तक जाने वाला 50-60 साल पुराना रास्ता अवरुद्ध कर दिया है, जिससे उनकी जिंदगी नरक बन गई है।

पुश्तैनी जमीन और रास्ते का विवाद

रमेश कुमार और उनकी मां केसर देवी ग्राम दुर्जनपुरा में खसरा नंबर 69 पर अपनी पुश्तैनी जमीन पर बनी ढाणी में रहते हैं। रमेश के पिता का देहांत हो चुका है, और वह अपनी बीमार मां के साथ इस ढाणी में जीवन यापन करते हैं। इस ढाणी तक पहुंचने वाला रास्ता, जो दशकों पुराना है, पड़ोसी खातेदारों के खेतों से होकर गुजरता है। रमेश का कहना है कि पड़ोसियों ने इस रास्ते को बंद कर दिया, जिससे उनकी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करना मुश्किल हो गया है।

रमेश ने बताया, “हमने जीवन यहीं बिताया। खेत में ढाणी है, रोजमर्रा का सब सामान यहीं से आता है। अब रास्ता रोक दिया है तो मानो हमें कैद कर दिया हो। घर है, लेकिन पहुंच नहीं सकते। दूसरे के खेतों से होकर आना पड़ता है।”

प्रशासनिक आदेश बेअसर, तहसीलदार और पटवारी पर लापरवाही का आरोप

इस मामले में प्रशासनिक कार्रवाई भी रमेश के पक्ष में रही है। 18 जुलाई 2025 को उपखंड अधिकारी, झुंझुनूं ने आदेश (क्रमांक 314) जारी कर इस रास्ते को 'कटान शुदा' यानी पहले से तय रास्ता घोषित किया था, जिससे यह साफ हो गया कि रास्ता रमेश और उनकी मां का कानूनी हक है।

हालांकि, रमेश का कहना है कि इस आदेश का जमीन पर कोई असर नहीं हुआ। पड़ोसी खातेदारों ने इस आदेश के खिलाफ संभागीय आयुक्त, जयपुर में अपील की, लेकिन दो महीने बाद भी उन्हें स्टे नहीं मिला। इसके बावजूद, तहसीलदार और पटवारी ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। रमेश ने कहा, “तहसीलदार और पटवारी के टालमटोल रवैये ने मुझे तोड़ दिया है। रोज-रोज अपमानित होना पड़ता है।”

कलेक्ट्रेट की 50 सीढ़ियां चढ़कर लगाई गुहार

दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद, रमेश अपनी रिश्तेदार राधा चौधरी की मदद से झुंझुनूं कलेक्ट्रेट की करीब 50 सीढ़ियां चढ़कर जिला कलेक्टर डॉ. अरुण गर्ग के कार्यालय पहुंचे। उन्होंने अपनी मां के साथ इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगते हुए कहा, “अगर हमारा रास्ता नहीं खुल सकता, तो हमें जीने की मजबूरी से मुक्त कर दिया जाए।” रमेश की यह पुकार उनकी निराशा और प्रशासनिक लापरवाही से उपजे दर्द को दर्शाती है।

राधा चौधरी ने भी तहसीलदार की बेरुखी का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि तहसीलदार ने उनसे कहा, “रोज-रोज इस विकलांग को लेकर आ जाती हो!” यह बयान प्रशासनिक संवेदनहीनता को उजागर करता है।

कलेक्टर का आश्वासन, क्या होगा समाधान?

जिला कलेक्टर डॉ. अरुण गर्ग ने मामले को गंभीरता से लेते हुए तहसीलदार को रिकॉर्ड दुरुस्त करने और दो दिनों में कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। उन्होंने आश्वासन दिया कि रमेश को दोबारा कलेक्ट्रेट नहीं आना पड़ेगा।

Yashaswani Journalist at The Khatak .