"विश्व आदिवासी दिवस: 'जय भील प्रदेश' की मांग के साथ विशाल महारैली, सांसद-विधायक हुए शामिल"
चित्तौड़गढ़ में विश्व आदिवासी दिवस पर "जय भील प्रदेश" की मांग को लेकर गोपाल चतुर्वेदी के नेतृत्व में महारैली और ईनानी सिटी सेंटर में विशाल जनसभा हुई, जिसमें सांसद सी.पी. जोशी, राजकुमार रौत और विधायक थावरचंद डामोर शामिल हुए।

चित्तौड़गढ़ में विश्व आदिवासी दिवस (9 अगस्त) के अवसर पर "जय भील प्रदेश" की मांग को लेकर एक महारैली का आयोजन किया गया, जिसकी समाप्ति ईनानी सिटी सेंटर में विशाल जनसभा के साथ हुई। यह आयोजन आदिवासी समुदाय के अधिकारों, उनकी सांस्कृतिक पहचान, और अलग "भील प्रदेश" की स्थापना की मांग को लेकर किया गया। इस कार्यक्रम में चित्तौड़गढ़ के सांसद सी.पी. जोशी, बांसवाड़ा-डूंगरपुर के सांसद राजकुमार रौत, धरियावाद के विधायक थावरचंद डामोर, और अन्य जनप्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। गोपाल चतुर्वेदी, जो इस आयोजन से जुड़े एक प्रमुख नाम हैं, ने इस रैली के माध्यम से आदिवासी समुदाय की मांगों को जोर-शोर से उठाया।
विश्व आदिवासी दिवस का महत्व
विश्व आदिवासी दिवस हर साल 9 अगस्त को मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य आदिवासी समुदायों के अधिकारों, उनकी सांस्कृतिक विरासत, और सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए जागरूकता बढ़ाना है। भारत में, विशेष रूप से राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में, यह दिन आदिवासी समुदायों की मांगों और उनके योगदान को रेखांकित करने का अवसर प्रदान करता है।
चित्तौड़गढ़ में आयोजन का विवरण
- महारैली और जनसभा: चित्तौड़गढ़ में आयोजित महारैली में हजारों आदिवासी समुदाय के लोग शामिल हुए, जो "जय भील प्रदेश" की मांग को लेकर एकजुट हुए। यह रैली शहर के प्रमुख मार्गों से होकर गुजरी और ईनानी सिटी सेंटर में एक विशाल जनसभा के साथ समाप्त हुई। इस जनसभा में आदिवासी समुदाय की समस्याओं, जैसे भूमि अधिकार, शिक्षा, रोजगार, और सांस्कृतिक संरक्षण पर चर्चा की गई।
- प्रमुख मांग: "जय भील प्रदेश" की मांग लंबे समय से राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में रहने वाले भील आदिवासी समुदाय द्वारा उठाई जा रही है। यह मांग एक अलग राज्य या प्रशासनिक इकाई की स्थापना से जुड़ी है, जो आदिवासी समुदाय के लिए स्वायत्तता और विकास के अवसर सुनिश्चित कर सके।
- गोपाल चतुर्वेदी की भूमिका: गोपाल चतुर्वेदी, जो संभवतः इस आयोजन के प्रमुख आयोजकों में से एक हैं, ने इस रैली के माध्यम से आदिवासी समुदाय की आवाज को बुलंद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में इस रैली ने स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया।
- जनप्रतिनिधियों की भागीदारी:
- सी.पी. जोशी: चित्तौड़गढ़ के सांसद, जो भारतीय जनता पार्टी (BJP) से संबद्ध हैं, ने इस आयोजन में हिस्सा लिया और आदिवासी समुदाय के हितों के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई।
- राजकुमार रौत: बांसवाड़ा-डूंगरपुर से सांसद, जो भारत आदिवासी पार्टी (BAP) से हैं, ने आदिवासी समुदाय की मांगों को समर्थन दिया। हाल ही में, उन्होंने झालावाड़ में एक अन्य आदिवासी दिवस कार्यक्रम को संबोधित किया था, जहां उन्होंने समुदाय के अधिकारों पर जोर दिया।
- थावरचंद डामोर: धरियावाद के विधायक, जो आदिवासी समुदाय के मुद्दों पर सक्रिय रूप से काम करते हैं, ने भी इस जनसभा में भाग लिया और स्थानीय मुद्दों को उठाया।
आदिवासी समुदाय की मांगें और चुनौतियाँ
- भील प्रदेश की मांग: भील आदिवासी समुदाय, जो राजस्थान, मध्य प्रदेश, और गुजरात के कुछ हिस्सों में निवास करता है, लंबे समय से एक अलग प्रशासनिक इकाई की मांग कर रहा है। इस मांग का उद्देश्य आदिवासियों के लिए बेहतर शासन, संसाधनों का उचित वितरण, और सांस्कृतिक संरक्षण सुनिश्चित करना है।
- सामाजिक-आर्थिक मुद्दे: आदिवासी समुदाय को भूमि विस्थापन, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, और रोजगार के अवसरों की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। विश्व आदिवासी दिवस पर आयोजित इस तरह के कार्यक्रम इन मुद्दों को राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर उठाने का प्रयास करते हैं।
- सांस्कृतिक संरक्षण: आदिवासी समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, जैसे उनके नृत्य (जैसे गौर, कर्मा), परंपराएँ, और भाषाएँ, को संरक्षित करने की आवश्यकता पर भी इस आयोजन में जोर दिया गया।
अन्य क्षेत्रों में विश्व आदिवासी दिवस
- डूंगरपुर: डूंगरपुर में भी विश्व आदिवासी दिवस पर बड़े स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिसमें लाखों लोग शामिल हुए। यह आयोजन भी "जय भील प्रदेश" की मांग को समर्पित था।
- छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ में विश्व आदिवासी दिवस को सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाया गया, और विभिन्न जिलों में कार्यक्रम आयोजित किए गए। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, जो स्वयं आदिवासी समुदाय से हैं, ने आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और विकास के लिए कई योजनाओं की घोषणा की।
चित्तौड़गढ़ में विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आयोजित महारैली और जनसभा आदिवासी समुदाय की एकता और उनकी मांगों को राष्ट्रीय मंच पर लाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास था। "जय भील प्रदेश" की मांग, जो इस आयोजन का केंद्रीय विषय थी, आदिवासी समुदाय के लिए स्वायत्तता और विकास की आवश्यकता को दर्शाती है। गोपाल चतुर्वेदी, सांसद सी.पी. जोशी, राजकुमार रौत, और थावरचंद डामोर जैसे नेताओं की भागीदारी ने इस आयोजन को और अधिक प्रभावशाली बनाया। यह आयोजन न केवल आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को उजागर करता है, बल्कि उनकी चुनौतियों और मांगों को नीति-निर्माताओं तक पहुंचाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।