जालोर के खरबूजे की मिठास: बांकली बांध के किसानों ने खेती से लिखी कामयाबी की कहानी
जालोर के बांकली बांध इलाके में कजली खरबूजे की खेती ने 300 परिवारों की तकदीर बदली है। इस मीठे देसी खरबूजे की मांग राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में है। 34 साल के किशनलाल भील ने आंध्र प्रदेश में नौकरी और बिजनेस छोड़कर 2017 में गांव लौटकर खेती शुरू की। वे 20 बीघा जमीन पर हर साल 80-100 टन खरबूजा उगाते हैं, जिससे 3 महीने के सीजन में 4 लाख तक की कमाई होती है। बांध की उपजाऊ मिट्टी और नमी खेती के लिए आदर्श है। खरबूजे की तुड़ाई अप्रैल-मई में होती है, और इसे 10-25 रुपये/किलो की दर से बेचा जाता है। किशनलाल का परिवार बुवाई, तुड़ाई और सप्लाई में साथ देता है। खरबूजे के बाद मूंग, तिल और गेहूं की खेती से सालभर कमाई होती है। यह कहानी मेहनत और नवाचार की प्रेरणा है

राजस्थान का जालोर जिला, जो रेगिस्तान की तपती धूप और रेत के लिए जाना जाता है, अब एक नई पहचान बना रहा है। जालोर के बांकली बांध के आसपास का इलाका अपनी मिश्री जैसे मीठे खरबूजों के लिए दूर-दूर तक मशहूर हो रहा है। इस इलाके का धारीदार देसी खरबूजा, जिसे कजली खरबूजा कहते हैं, न केवल राजस्थान के बाजारों में धूम मचाता है, बल्कि गुजरात और महाराष्ट्र तक अपनी मिठास पहुंचाता है। गर्मी के मौसम में यहां के करीब 300 परिवार इस खरबूजे की खेती से न सिर्फ अपनी आजीविका चला रहे हैं, बल्कि लाखों रुपये की कमाई भी कर रहे हैं। इस कहानी का हीरो है 34 साल का एक युवा किसान किशनलाल भील, जिसने आंध्र प्रदेश में नौकरी और बिजनेस छोड़कर अपने गांव लौटकर खेती को अपनाया और आज तीन राज्यों में खरबूजे की सप्लाई कर रहा है। आइए, जानते हैं इस मिठास भरी कहानी को, जो मेहनत, लगन और मिट्टी से जुड़ाव की मिसाल है।
किशनलाल की कहानी: नौकरी से खेती तक का सफर:
जालोर शहर से करीब 65 किलोमीटर दूर, पाली जिले की सीमा पर बांकली बांध बसा है। हर साल बारिश में यह बांध लबालब भर जाता है। जब बारिश थमती है, तो बांध का पानी नहरों में छोड़ा जाता है, जिससे तल की मिट्टी खेती के लिए तैयार हो जाती है। यही वह जादुई जमीन है, जहां कजली खरबूजे की खेती होती है। इस खरबूजे की खासियत है इसकी मिठास, जो इसे बाजार में सबसे अलग बनाती है। गर्मी के मौसम में, जब पारा चढ़ता है, यह खरबूजा न सिर्फ स्वाद देता है, बल्कि शरीर में पानी और शुगर की कमी को भी पूरा करता है। यही वजह है कि राजस्थान के जोधपुर, पाली, बाड़मेर और बालोतरा जैसे शहरों के अलावा गुजरात और महाराष्ट्र की मंडियों में इसकी भारी डिमांड रहती है।
इस इलाके के पांच गांवों के 300 परिवार इस खेती से जुड़े हैं। इनमें से एक हैं किशनलाल भील, जिनकी कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं। किशनलाल ने बताया कि उनके गांव हजावा (भाद्राजून, जालोर) में पहले रोजगार का बड़ा अभाव था। युवा नौकरी की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करते थे। किशनलाल भी उनमें से एक थे। मात्र पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद, 2002 में कम उम्र में ही वे काम की तलाश में आंध्र प्रदेश चले गए। वहां उन्होंने 10 साल तक एक मिठाई की दुकान पर काम किया। फिर 2013 में उन्होंने अपनी खुद की दुकान खोली, लेकिन 4-5 साल बाद भी मुनाफा नहीं हुआ। परिवार की जिम्मेदारियां बढ़ रही थीं, और मन में कुछ बड़ा करने की चाह थी।
2016-17 में किशनलाल को पता चला कि उनके इलाके में कुछ किसान खेती में नए प्रयोग कर अच्छी कमाई कर रहे हैं। बस, यहीं से उनके जीवन में नया मोड़ आया। 2017 में वे अपने गांव लौट आए और पुश्तैनी 20 बीघा जमीन पर खेती शुरू की। शुरुआत में उनके पिता लालाराम, जो परंपरागत खेती करते थे, ने उनका साथ दिया। किशनलाल ने देखा कि बांकली बांध के पास खरबूजे की खेती से कई किसान मुनाफा कमा रहे हैं। उन्होंने भी 2018 से कजली खरबूजे की खेती शुरू की। आज वे हर साल 80 से 100 टन खरबूजे का उत्पादन करते हैं, जिससे तीन महीने के छोटे से सीजन में 4 लाख रुपये तक की कमाई हो जाती है।
खरबूजे की खेती का जादू:
खरबूजे की खेती का सीजन जनवरी से मई तक चलता है। जनवरी में बुवाई होती है, और अप्रैल-मई में 20-25 दिनों के दौरान 6 से 7 बार तुड़ाई की जाती है। हर तुड़ाई में 8-10 मजदूर लगते हैं, और 5-7 हजार रुपये का खर्च आता है। तुड़ाई के बाद खरबूजे को क्वालिटी के आधार पर तीन हिस्सों में बांटा जाता है। सबसे अच्छी क्वालिटी का खरबूजा 25 रुपये प्रति किलो तक बिकता है, मध्यम क्वालिटी 20 रुपये प्रति किलो और सामान्य क्वालिटी 10-15 रुपये प्रति किलो। यह खरबूजा मंडी व्यापारियों को बल्क में बेचा जाता है, जो इसे ट्रकों के जरिए राजस्थान की स्थानीय मंडियों जैसे आहोर, जालोर, जोधपुर, पाली, बाड़मेर के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश तक पहुंचाते हैं।
बांकली बांध की खासियत इसकी उपजाऊ मिट्टी और नमी है, जो खरबूजे की खेती के लिए आदर्श स्थिति बनाती है। किशनलाल बताते हैं कि उनके खेत बांध के पेटा क्षेत्र में हैं, जहां मिट्टी में हमेशा नमी बनी रहती है। इसीलिए ज्यादा मेहनत के बिना भी बंपर पैदावार हो जाती है। खेती का काम सिर्फ किशनलाल अकेले नहीं करते। उनकी पत्नी पप्पू देवी, मां साखा देवी और परिवार के बाकी लोग भी बुवाई, तुड़ाई, पैकिंग और सप्लाई में पूरा साथ देते हैं। मई के महीने में, जब तुड़ाई का दौर चरम पर होता है, पूरा परिवार एकजुट होकर काम करता है, ताकि बारिश से पहले सीजन पूरा हो जाए।
खरबूजा इस इलाके के लिए शॉर्ट टर्म, लेकिन मुनाफे वाली फसल है। सीजन खत्म होने के बाद किशनलाल और दूसरे किसान जून में बारिश के साथ मूंग और तिल की बुवाई करते हैं, जो सितंबर-अक्टूबर तक चलती है। फिर अक्टूबर से जनवरी तक गेहूं की फसल होती है। इस तरह सालभर खेती से कमाई का सिलसिला चलता रहता है। किशनलाल कहते हैं कि खरबूजे की खेती ने उनकी जिंदगी बदल दी। पहले जहां रोजगार के लिए शहरों की ओर भागना पड़ता था, वहीं अब गांव में ही अच्छी कमाई हो रही है।
यह कहानी सिर्फ खरबूजे की मिठास की नहीं, बल्कि उन मेहनती किसानों की है, जो अपनी मिट्टी से सोना उगा रहे हैं। किशनलाल जैसे युवा किसानों ने साबित कर दिया कि अगर हिम्मत और मेहनत हो, तो खेती भी मुनाफे का धंधा बन सकती है। बांकली बांध का यह इलाका अब न सिर्फ खरबूजे के लिए मशहूर है, बल्कि यह उन युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बन रहा है, जो अपने गांव और मिट्टी की ताकत को समझकर नई राह बना रहे हैं।
जालोर के बांकली बांध इलाके का खरबूजा न सिर्फ स्वाद में लाजवाब है, बल्कि यह सैकड़ों परिवारों की जिंदगी को भी मिठास दे रहा है। किशनलाल जैसे किसानों ने साबित कर दिया कि मेहनत, लगन और सही दिशा में कदम उठाकर खेती को भी मुनाफे का धंधा बनाया जा सकता है। यह कहानी न केवल खरबूजे की मिठास की है, बल्कि उन किसानों की मेहनत और हिम्मत की भी है, जो अपनी मिट्टी से सोना उगा रहे हैं।