दिल्ली का लाल दिल, जहां इतिहास की धड़कनें आज भी सुनाई देती हैं

लाल किला, दिल्ली का ऐतिहासिक प्रतीक, मुगलों की शान, 1857 की क्रांति और स्वतंत्रता दिवस के तिरंगे की गाथा को समेटे हुए है, जो विवादों और कहानियों से भरा एक जीवंत इतिहास है।

Aug 14, 2025 - 18:31
दिल्ली का लाल दिल, जहां इतिहास की धड़कनें आज भी सुनाई देती हैं

दिल्ली की पुरानी गलियों में बसा लाल किला न सिर्फ एक इमारत है, बल्कि भारत की आत्मा का प्रतीक है। यमुना नदी के किनारे खड़ा ये किला मुगलों की शान, ब्रिटिशों की साजिशों और स्वतंत्र भारत की आजादी की कहानियां सुना रहा है। हर साल 15 अगस्त को यहां तिरंगा लहराता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस किले की दीवारों में कितने राज छिपे हैं? आइए, इसकी असली कहानी जानते हैं – वो कहानी जो किताबों से ज्यादा, लोगों की जिंदगियों से जुड़ी है।

मुगल बादशाह की शान: लाल किले का जन्म और वैभव

लाल किला कोई साधारण किला नहीं, ये मुगल सम्राट शाहजहां का सपना था। 1639 में जब शाहजहां ने अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली शिफ्ट करने का फैसला किया, तो उन्होंने इस भव्य किले की नींव रखी। निर्माण में पूरे 10 साल लगे और 1648 में ये पूरा हुआ। लाल बलुआ पत्थर से बना होने की वजह से इसे 'लाल किला' कहा गया, लेकिन क्या आप जानते हैं कि शुरू में ये सफेद था? जी हां, कुछ हिस्से संगमरमर के थे और सफेद चूने से पुते हुए, जो ब्रिटिशों ने बाद में लाल रंग से पेंट कर दिए।

किले के अंदर दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास जैसी जगहें थीं, जहां बादशाह दरबार लगाते थे। यहां मोर सिंहासन रखा जाता था, जो दुनिया की सबसे कीमती चीजों में से एक था। लेकिन 1739 में नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला किया और ये सिंहासन लूटकर ईरान ले गया। कल्पना कीजिए, उन दिनों की रौनक – फव्वारे, बाग-बगीचे और रंग-बिरंगे पर्दे। हयात बख्श बाग में पानी की नहरें बहती थीं, जो मुगलों की लग्जरी जिंदगी की झलक देती हैं। एक किस्सा तो ये है कि शाहजहां की बेटी जहांआरा ने यहां की डिजाइन में हाथ बंटाया था, और किले की दीवारों पर फारसी में कविताएं उकेरी गईं, जो आज भी प्यार और शक्ति की बात करती हैं।

ब्रिटिश राज और स्वतंत्रता की जंग: किले की दीवारों पर खून के दाग

मुगलों के बाद लाल किला ब्रिटिशों के हाथों में आ गया। 1857 की क्रांति में ये किला विद्रोह का केंद्र बना। आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने यहां से विद्रोह की कमान संभाली, लेकिन ब्रिटिशों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और किले को बैरक में बदल दिया। बहादुर शाह की वो आखिरी रातें, जब वो किले की दीवारों से दिल्ली को निहारते थे, दिल को छू जाती हैं। ब्रिटिशों ने यहां कई इमारतें तोड़ दीं और अपने सैनिकों के लिए बैरक बना लीं। लेकिन ये किला चुप नहीं रहा – ये आजादी की लड़ाई का गवाह बना।

1947 में जब भारत आजाद हुआ, तो पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसी किले पर पहली बार तिरंगा फहराया। वो पल कितना भावुक रहा होगा – सदियों की गुलामी के बाद अपना झंडा लहराना! आज भी हर स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री यहां झंडा फहराते हैं, जो नीचे से ऊपर तक चढ़ाया जाता है, जबकि गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति इसे ऊपर से खोलते हैं। ये परंपरा न सिर्फ आजादी की याद दिलाती है, बल्कि बताती है कि लाल किला अब गुलामी का नहीं, स्वतंत्र भारत का प्रतीक है।

झंडारोहण की परंपरा: क्यों लाल किला बना आजादी का केंद्र?

क्यों लाल किला? क्योंकि ये ब्रिटिशों की सत्ता का प्रतीक था। आजादी के बाद यहां झंडा फहराना मतलब था – हमने अपनी जमीन वापस छीन ली। हर साल प्रधानमंत्री यहां से राष्ट्र को संबोधित करते हैं, और लाखों लोग टीवी पर देखते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि झंडारोहण के दौरान 21 तोपों की सलामी दी जाती है? और हाल ही में, 2025 के स्वतंत्रता दिवस पर फ्लाइंग ऑफिसर राशिका शर्मा ने झंडा फहराने में मदद की। ये पल हर भारतीय के दिल में देशभक्ति की लहर पैदा करते हैं, जैसे कोई पुरानी याद ताजा हो रही हो।

विवादों की छाया: किसान आंदोलन और लाल किले का दर्द

लाल किला हमेशा शांत नहीं रहा। 2021 में किसान आंदोलन के दौरान गणतंत्र दिवस पर प्रदर्शनकारियों ने किले पर चढ़कर निशान साहिब (सिख धार्मिक झंडा) फहराया। कुछ लोगों ने इसे तिरंगे का अपमान कहा, लेकिन सच ये था कि उन्होंने तिरंगा नहीं उतारा, बल्कि एक खाली खंभे पर अपना झंडा लगाया। फिर भी, ये घटना विवादास्पद बनी – पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई, एक किसान की मौत हो गई। अभिनेता दीप सिद्धू को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया, जिन्होंने कहा कि ये सिर्फ प्रतीकात्मक विरोध था।

ये विवाद बताता है कि लाल किला आज भी लोगों की भावनाओं का केंद्र है। किसानों की वो पीड़ा, जो कृषि कानूनों के खिलाफ थी, किले की दीवारों तक पहुंच गई। लेकिन ऐसे पलों में हमें याद रखना चाहिए कि किला सबका है – विरोध का नहीं, एकता का प्रतीक।

रोचक कहानियां: लाल किले के रहस्य जो आपको चौंका देंगे

लाल किले में सिर्फ इतिहास नहीं, कहानियां भी हैं। एक बार यहां भूमिगत सुरंगें थीं, जो यमुना से जुड़ीं, जिन्हें मुगल राजकुमारियां नहाने के लिए इस्तेमाल करती थीं। और वो मोती मस्जिद, जो शाहजहां ने बनवाई, आज भी शांति की मिसाल है।

 एक दिलचस्प किस्सा बहादुर शाह जफर का – ब्रिटिशों ने उन्हें यहां कैद किया और फिर रंगून भेज दिया, जहां उन्होंने अपनी आखिरी कविता लिखी: "कितना है बदनसीब जफर दफन के लिए, दो गज जमीन भी न मिली कु-ए-यार में।" ये शब्द आज भी गूंजते हैं, जैसे किला खुद रो रहा हो।

क्या आप जानते हैं कि किला 256 एकड़ में फैला है और इसमें तीन मुख्य द्वार हैं? शाम को यहां साउंड एंड लाइट शो होता है, जो इतिहास को जीवंत कर देता है। और यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट होने की वजह से, ये पर्यटकों का फेवरेट स्पॉट है। लेकिन सबसे प्यारी कहानी वो है जब बच्चे यहां आते हैं और दीवारों को छूकर पूछते हैं – "ये किला बोलता क्यों नहीं?"

लाल किला सिर्फ पत्थरों का ढांचा नहीं, ये भारत की यात्रा है – वैभव से संघर्ष तक, और आजादी से एकता तक। हर 15 अगस्त को यहां तिरंगा देखकर लगता है, जैसे इतिहास हमें पुकार रहा हो। लेकिन विवाद हमें सिखाते हैं कि इसे संभालना हमारी जिम्मेदारी है। अगली बार दिल्ली जाएं, तो लाल किले में रुकें, उसकी हवा महसूस करें – शायद कोई पुरानी कहानी आपके कान में फुसफुसाए। क्योंकि ये किला जीवित है, हमारी तरह।

Yashaswani Journalist at The Khatak .