"मालेगांव ब्लास्ट केस: सनातन आतंकवाद की बहस और बरी हुए सातों आरोपी – क्या है पूरा सच?"
मालेगांव ब्लास्ट केस (2008) में विशेष एनआईए कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित सहित सातों आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। इस फैसले ने "हिंदू आतंकवाद" की बहस को फिर से छेड़ दिया। कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने इसे "सनातन आतंकवाद" कहकर नया विवाद खड़ा किया, साथ ही बीजेपी सरकार पर जांच में देरी और कमजोरी का आरोप लगाया। कोर्ट ने दो वॉन्टेड आरोपियों की नए सिरे से जांच का आदेश दिया। पीड़ितों के परिवारों को मुआवजा देने का निर्देश भी दिया गया।

महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को हुए बम धमाके, जिसमें 6 लोगों की जान गई और 100 से अधिक लोग घायल हुए, ने न केवल देश को हिलाकर रख दिया, बल्कि भारतीय राजनीति और समाज में एक नई बहस को जन्म दिया। 17 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, 31 जुलाई 2025 को मुंबई की विशेष एनआईए कोर्ट ने इस मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ठोस सबूत पेश करने में नाकाम रहा। इस फैसले ने जहां एक ओर "हिंदू आतंकवाद" के नैरेटिव को लेकर सवाल उठाए, वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने इसे "सनातन आतंकवाद" कहकर एक नया विवाद खड़ा कर दिया।
पृथ्वीराज चव्हाण का बयान: भगवा नहीं, सनातन आतंकवाद
पृथ्वीराज चव्हाण ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में कहा कि "भगवा" शब्द का इस्तेमाल आतंकवाद से जोड़ना गलत है, क्योंकि यह छत्रपति शिवाजी महाराज और स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक है। उन्होंने सुझाव दिया कि इसके बजाय "हिंदू आतंकवाद" या "सनातन आतंकवाद" शब्द का उपयोग किया जाना चाहिए। चव्हाण ने केंद्र और महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए सवाल उठाया कि अगर सभी आरोपी निर्दोष थे, तो 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद इस मामले को क्यों नहीं बंद किया गया? उन्होंने कहा, "11 साल तक सरकार ने मुकदमा लड़ा, और अब कोर्ट में जाकर कह दिया कि कोई सबूत नहीं है। अगर पहले से पता था कि आरोपी बेकसूर हैं, तो देवेंद्र फडणवीस ने केस वापस क्यों नहीं लिया?"चव्हाण ने यह भी कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन इस मामले में पीड़ित परिवारों को न्याय नहीं मिला। उन्होंने पूछा, "जो लोग इस धमाके में मारे गए, उनके परिवारों को सरकार क्या जवाब देगी?"
मालेगांव ब्लास्ट केस: 17 साल की कानूनी जंग
29 सितंबर 2008 को मालेगांव के भीकू चौक पर रमजान के पवित्र महीने में एक मोटरसाइकिल में हुए विस्फोट ने सांप्रदायिक तनाव को भड़काने की आशंका पैदा की थी। शुरुआत में, महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने इसकी जांच की और इसे "हिंदू आतंकवाद" से जोड़ा। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित, रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी, और समीर कुलकर्णी पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA), भारतीय दंड संहिता (IPC), और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए।2011 में जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी गई। एनआईए ने 2016 में साध्वी प्रज्ञा को क्लीन चिट दी थी, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। 2017 तक सभी आरोपी जमानत पर रिहा हो गए। 323 गवाहों की गवाही के बावजूद, 34 गवाह अपने बयानों से पलट गए, और कई सबूतों में खामियां पाई गईं। कोर्ट ने नोट किया कि न तो यह साबित हो सका कि बम वाली मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा की थी, न ही पुरोहित द्वारा RDX लाने का कोई ठोस सबूत मिला।
कोर्ट का फैसला और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
विशेष एनआईए कोर्ट के जज एके लाहोटी ने फैसले में कहा, "आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा की वकालत नहीं करता।" कोर्ट ने अभिनव भारत संगठन को भी आतंकी गतिविधियों से जोड़ने के आरोपों से बरी कर दिया। साध्वी प्रज्ञा ने बरी होने के बाद कहा, "यह मेरी नहीं, बल्कि भगवा और हिंदुत्व की जीत है। मुझे 13 दिन तक टॉर्चर किया गया, लेकिन आज सच सामने आ गया।"महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा, "आतंकवाद कभी भगवा नहीं था, न है, और न होगा।" उन्होंने कांग्रेस पर "भगवा आतंकवाद" का नैरेटिव गढ़ने का आरोप लगाया। वहीं, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्र और फडणवीस सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि एनआईए ने जानबूझकर कमजोर जांच की। उन्होंने पूछा, "क्या सरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी?"समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कहा, "दोषियों को सजा मिलनी चाहिए थी। क्या यह फैसला अन्य खबरों को दबाने के लिए लाया गया?" कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने कहा, "आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, न हिंदू, न मुस्लिम।"
पीड़ितों का दर्द और अनसुलझे सवाल
मालेगांव ब्लास्ट में मारे गए लोगों के परिवारों ने फैसले पर निराशा जताई। उन्होंने कहा कि 17 साल बाद भी उन्हें न्याय नहीं मिला। पीड़ित पक्ष के वकील ने उच्च न्यायालय में अपील करने की बात कही। कोर्ट ने मृतकों के परिजनों को 2 लाख रुपये और घायलों को 50 हजार रुपये मुआवजे का आदेश दिया, लेकिन सवाल बना हुआ है कि इस धमाके का असल दोषी कौन है?
नए सिरे से जांच के आदेश
कोर्ट ने एनआईए को दो वॉन्टेड आरोपियों, संदीप डांगे और राम कलसांगरा, के खिलाफ फिर से जांच करने और चार्जशीट दाखिल करने का निर्देश दिया। जांच एजेंसियों का दावा है कि इन दोनों ने ही बम बंधी मोटरसाइकिल को मालेगांव के भीकू चौक पर रखा था।
बहस का नया अध्याय
मालेगांव ब्लास्ट केस का फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसने "हिंदू आतंकवाद" और "सनातन आतंकवाद" जैसे शब्दों को लेकर राजनीतिक और सामाजिक बहस को और गर्म कर दिया है। जहां बीजेपी इसे "भगवा" की जीत बता रही है, वहीं विपक्षी दल जांच की खामियों और पीड़ितों को न्याय न मिलने की बात उठा रहे हैं। क्या यह मामला यहीं खत्म हो जाएगा, या सुप्रीम कोर्ट में नया मोड़ लेगा? यह समय बताएगा।