जोजरी नदी प्रदूषण: धवा गांव में विश्व पर्यावरण दिवस पर ग्रामीण महिलाओं का अनोखा विरोध

जोधपुर के धवा गांव में विश्व पर्यावरण दिवस पर ग्रामीण महिलाओं ने जोजरी नदी के प्रदूषण के खिलाफ अनोखा विरोध किया। 'वंदे गंगा जल संरक्षण अभियान' के तहत आयोजित कार्यक्रम में महिलाओं ने पोस्टर लहराकर नदी की सफाई की मांग की। जोजरी नदी औद्योगिक कचरे से जहरीली हो चुकी है, जिससे खेती, पशुधन और स्वास्थ्य प्रभावित हो रहे हैं। सरकार ने 176 करोड़ की योजना की घोषणा की, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि ठोस कार्रवाई जरूरी है। मेलबा तालाब की सफाई को ग्रामीणों की मेहनत का उदाहरण बताया गया।

Jun 5, 2025 - 19:00
जोजरी नदी प्रदूषण: धवा गांव में विश्व पर्यावरण दिवस पर ग्रामीण महिलाओं का अनोखा विरोध

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर राजस्थान के जोधपुर जिले के लूणी विधानसभा क्षेत्र के धवा गांव में एक अनोखा और विचारोत्तेजक दृश्य देखने को मिला। जहां एक ओर सरकारी अधिकारी ‘वंदे गंगा जल संरक्षण अभियान’ के तहत जल और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने पहुंचे, वहीं दूसरी ओर गांव की महिलाएं जोजरी नदी के प्रदूषण के खिलाफ स्लोगन लिखे पोस्टर लेकर विरोध में डट गईं। उनके पोस्टरों पर लिखा था—“जोजरी से बचाओ, फिर पर्यावरण दिवस मनाओ”। इस विरोध ने न केवल अधिकारियों को असहज कर दिया, बल्कि जोजरी नदी के बदहाल हालात को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया।

विरोध का कारण: जोजरी नदी का ज़हरीला पानी

जोजरी नदी, जो कभी जोधपुर और आसपास के गांवों के लिए जीवनदायिनी थी, आज औद्योगिक कचरे और बिना उपचारित सीवेज के कारण एक जहरीले नाले में तब्दील हो चुकी है। टेक्सटाइल, डाई, स्टील और रंगाई-छपाई उद्योगों से निकलने वाला अपशिष्ट जल बिना किसी शुद्धिकरण के सीधे नदी में डाला जा रहा है। नदी के पानी में लेड, क्रोमियम, कैडमियम, कॉपर, मरकरी और रासायनिक रंगों की मात्रा खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है। इसके दुष्परिणाम स्पष्ट हैं:

  • कृषि पर असर: खेत बंजर हो रहे हैं और फसलों की पैदावार बर्बाद हो रही है।
  • पशुधन को नुकसान: मवेशियों की असामयिक मौतें हो रही हैं।
  • स्वास्थ्य समस्याएं: ग्रामीण दूषित पानी पीने को मजबूर हैं, जिससे बच्चों और वयस्कों में बीमारियां बढ़ रही हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश: जल जीवों और पर्यावरण को अपूरणीय क्षति पहुंच रही है।

ग्रामीण महिलाओं का गुस्सा यही था कि जब उनकी जीवनरेखा जोजरी नदी ही ज़हर बन चुकी है, तो पर्यावरण दिवस जैसे आयोजनों का क्या मतलब? उन्होंने मांग की, “जोजरी नदी हमारी गंगा है, पहले इसे साफ करो, फिर हमारे गांव में ऐसे कार्यक्रम करो।”

मेलबा तालाब क्यों चुना गया?

कार्यक्रम के लिए अधिकारियों ने धवा गांव के बजाय मेलबा गांव के तालाब को चुना, जिसे ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमी श्रवण पटेल जैसे लोगों ने अपनी मेहनत से साफ-सुथरा बनाया है। कई गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और स्थानीय समुदायों के सहयोग से मेलबा तालाब को पुनर्जनन किया गया है, जो आज एक स्वच्छ जल स्रोत के रूप में जाना जाता है। दूसरी ओर, धवा गांव का तालाब जोजरी नदी के जहरीले पानी से भरा हुआ है, जिसे साफ करने में कोई सरकारी प्रयास नहीं दिखता।

ग्रामीणों का आरोप है कि अधिकारी जानबूझकर मेलबा तालाब को चुना ताकि उनकी नाकामी छिप सके। धवा के तालाब की बदहाली जोजरी नदी के प्रदूषण की सच्चाई को उजागर करती है, जिसे अधिकारी सामने नहीं लाना चाहते।

विरोध का दृश्य: महिलाओं की दृढ़ता

कार्यक्रम के दौरान जब अधिकारी मंच से पर्यावरण संरक्षण की शपथ दिलाने लगे, तो महिलाओं ने अपने पोस्टर ऊंचे कर दिए और जोर-जोर से अपनी मांगें दोहराने लगीं। उनके स्लोगन थे:

  • “जोजरी को जहर से मुक्त करो!”
  • “हमारी गंगा को बचाओ, फिर शपथ दिलाओ!”

अधिकारी बार-बार उनसे शांत होने और पोस्टर नीचे करने की अपील करते रहे, लेकिन महिलाएं अडिग रहीं। उनकी एकजुटता और साहस ने यह साफ कर दिया कि वे अब केवल वादों से संतुष्ट नहीं होंगी। उनकी मांग थी कि जोजरी नदी में औद्योगिक कचरा डालने पर तुरंत रोक लगे और प्रभावी सफाई अभियान शुरू हो।

एनजीटी के आदेश और सरकारी दावे

जोजरी नदी के प्रदूषण को लेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) में कई याचिकाएं दायर हो चुकी हैं। एनजीटी ने स्थानीय प्रशासन पर जुर्माना भी लगाया है, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई खास बदलाव नहीं आया। हाल ही में सरकार ने 176 करोड़ रुपये की योजना की घोषणा की, जिसमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) निर्माण और सीवरेज लाइनों को दुरुस्त करने की बात कही गई है। हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि जब तक औद्योगिक इकाइयों पर सख्ती नहीं होगी और नदी में गंदा पानी डालना पूरी तरह बंद नहीं होगा, तब तक ये योजनाएं केवल कागजी साबित होंगी।

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस मुद्दे को उठाते हुए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को पत्र लिखकर जोजरी नदी के प्रदूषण को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने की मांग की थी। उन्होंने बताया कि जीरो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का काम भी तीन महीने से रुका हुआ है, जिससे समस्या और गंभीर हो गई है।

‘वंदे गंगा जल संरक्षण अभियान’ और जमीनी हकीकत

राज्य सरकार ने 5 से 20 जून तक ‘वंदे गंगा जल संरक्षण-जन अभियान’ चलाने की घोषणा की है, जिसके तहत जल स्रोतों की सफाई, पौधरोपण, जागरूकता अभियान और श्रमदान जैसे कार्यक्रम पूरे प्रदेश में आयोजित होंगे। इस अभियान का उद्देश्य जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना है।

लेकिन धवा और आसपास के गांवों के लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब उनकी जोजरी नदी का पानी ज़हर बन चुका है, तो केवल औपचारिक कार्यक्रमों से क्या हासिल होगा? ग्रामीणों का कहना है कि सरकार अगर वाकई ‘वंदे गंगा’ अभियान को लेकर गंभीर है, तो पहले जोजरी नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए ठोस कदम उठाए।

एक अच्छी खबर: मेलबा तालाब का पुनर्जनन

इस निराशाजनक स्थिति के बीच मेलबा तालाब की कहानी एक प्रेरणा है। स्थानीय युवा श्रवण पटेल और कई NGOs की मेहनत से मेलबा तालाब को पुनर्जनन किया गया है। गांववासियों ने रात-दिन श्रमदान कर तालाब को साफ किया, जिससे यह आज स्वच्छ जल का स्रोत बन चुका है। यह तालाब न केवल पानी की जरूरतों को पूरा कर रहा है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिए एक मिसाल भी बन गया है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर सरकार जोजरी नदी के लिए ऐसी ही पहल करे, तो उनकी समस्याएं हल हो सकती हैं।

आगे की राह

जोजरी नदी के प्रदूषण का मुद्दा अब केवल धवा या लूणी तक सीमित नहीं है। यह जोधपुर, पाली और बालोतरा जिलों के लाखों लोगों के जीवन और आजीविका से जुड़ा है। ग्रामीण महिलाओं का यह विरोध एक चेतावनी है कि पर्यावरण संरक्षण के नाम पर केवल औपचारिक आयोजन काफी नहीं हैं। जरूरत है:

  • औद्योगिक इकाइयों पर सख्ती: अपशिष्ट जल को बिना उपचार नदी में डालने पर कठोर कार्रवाई।
  • प्रभावी सीवेज ट्रीटमेंट: जीरो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को तुरंत चालू करना।
  • जन भागीदारी: ग्रामीणों को सफाई और संरक्षण अभियानों में शामिल करना।
  • निगरानी तंत्र: एनजीटी के आदेशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र निगरानी समिति।

धवा गांव की महिलाओं ने अपने साहसिक विरोध से यह साफ कर दिया है कि वे अब खामोश नहीं रहेंगी। उनकी आवाज न केवल जोजरी नदी को बचाने की पुकार है, बल्कि पूरे देश में प्रदूषित जल स्रोतों को पुनर्जनन करने की प्रेरणा भी है। अब सवाल यह है कि क्या सरकार उनकी इस मांग को गंभीरता से लेगी, या जोजरी नदी का ज़हर और गहरा होता जाएगा?

“जोजरी को बचाना है, पर्यावरण को सजाना है!”—यह नारा अब धवा गांव से निकलकर पूरे राजस्थान में गूंज रहा है।

Yashaswani Journalist at The Khatak .