जोधपुर में साइबर ठगी का चौंकाने वाला खुलासा: फर्जी आधार बनाकर लूटने वाले , दो शातिर अपराधी गिरफ्तार
जोधपुर की देवनगर थाना पुलिस ने फर्जी आधार कार्ड बनाकर साइबर ठगी करने वाले रैकेट का पर्दाफाश किया। दो आरोपी, प्रवीण पवार और सद्दाम हुसैन, गिरफ्तार किए गए, जो नकली स्टांप और मोहरों का उपयोग कर फर्जी आधार कार्ड तैयार करते थे। इन कार्डों का उपयोग बैंक धोखाधड़ी और साइबर अपराधों में होता था। पुलिस ने फर्जी दस्तावेज, लैपटॉप, प्रिंटर और अन्य सामग्री जब्त की। जांच में अंतरराष्ट्रीय साइबर गिरोहों से संबंध की आशंका जताई जा रही है।

जोधपुर, राजस्थान। देश के सबसे बड़े साइबर अपराधों में से एक को उजागर करते हुए, जोधपुर की देवनगर थाना पुलिस ने एक सनसनीखेज कार्रवाई में फर्जी आधार कार्ड बनाने वाले रैकेट का भंडाफाश किया है। इस मामले में दो कुख्यात अपराधी, प्रवीण पवार (उम्र 28 वर्ष) और सद्दाम हुसैन (उम्र 25 वर्ष), को गिरफ्तार किया गया है। ये दोनों नकली स्टांप, मोहरों और अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग कर फर्जी आधार कार्ड तैयार करते थे, जिनका इस्तेमाल साइबर ठगी, बैंक धोखाधड़ी और अन्य संगीन अपराधों में किया जाता था। पुलिस की इस कार्रवाई ने साइबर अपराध के खिलाफ जंग में एक नया अध्याय जोड़ा है।
कैसे पकड़ा गया रैकेट?
पिछले कुछ महीनों से जोधपुर और आसपास के इलाकों में साइबर ठगी की शिकायतों में तेजी आई थी। कई लोग पुलिस के पास यह कहकर पहुंचे कि उनके बैंक खातों से बिना उनकी जानकारी के लाखों रुपये गायब हो गए। कुछ मामलों में पीड़ितों के नाम पर फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल कर सिम कार्ड और बैंक खाते खोले गए थे। इन शिकायतों ने पुलिस को चौकन्ना कर दिया।
देवनगर थाना प्रभारी राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक विशेष जांच दल का गठन किया गया। कई हफ्तों की निगरानी और गुप्त सूचना के आधार पर पुलिस ने एक सुनियोजित ऑपरेशन चलाया। सूचना मिली थी कि जोधपुर के एक सुदूर इलाके में कुछ लोग फर्जी दस्तावेज तैयार कर साइबर ठगों को सप्लाई कर रहे हैं। पुलिस ने छापेमारी कर प्रवीण और सद्दाम को उनके ठिकाने से धर दबोचा, जहां वे फर्जी आधार कार्ड बनाने में व्यस्त थे।
पुलिस ने क्या-क्या जब्त किया?
छापेमारी के दौरान पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से साइबर अपराध का एक पूरा ‘अड्डा’ बरामद किया। जब्त सामग्री में शामिल हैं:
सैकड़ों फर्जी आधार कार्ड की प्रतियां
सरकारी दस्तावेजों की तरह दिखने वाली नकली मोहरें और स्टांप
हाई-टेक लैपटॉप, प्रिंटर, स्कैनर और डिजिटल उपकरण
फर्जी दस्तावेज बनाने के लिए विशेष सॉफ्टवेयर
हजारों लोगों की निजी जानकारी, जैसे फोटो, आधार नंबर, पैन कार्ड डिटेल्स और पते
दर्जनों मोबाइल फोन और सिम कार्ड, जो ठगी के लिए इस्तेमाल होते थे
नकदी और बैंक पासबुक, जो अवैध लेनदेन के सबूत हैं
रैकेट का खौफनाक मॉडस ऑपरेंडी
पूछताछ में आरोपियों ने अपने काले कारनामों का सिलसिलेवार खुलासा किया। प्रवीण पवार, जो इस रैकेट का मास्टरमाइंड बताया जा रहा है, ने कबूल किया कि वे नकली आधार कार्ड बनाने के लिए पहले लोगों की निजी जानकारी इकट्ठा करते थे। यह जानकारी कई तरीकों से हासिल की जाती थी:
फर्जी ऑफर और लालच: लोगों को नौकरी, लोन या सरकारी योजनाओं का झांसा देकर उनकी फोटो, आधार नंबर और अन्य डिटेल्स ली जाती थीं।
डेटा चोरी: कुछ मामलों में, हैकिंग या अनधिकृत डेटा लीक के जरिए जानकारी चुराई जाती थी।
स्थानीय एजेंट्स: छोटे-मोटे दुकानदारों या साइबर कैफे संचालकों को कमीशन देकर लोगों की जानकारी खरीदी जाती थी।
इसके बाद, ये जानकारी एक सॉफ्टवेयर में डाली जाती थी, और सरकारी दस्तावेजों की तरह दिखने वाले फर्जी आधार कार्ड तैयार किए जाते थे। ये कार्ड इतने सटीक होते थे कि सामान्य जांच में इनकी असलियत पकड़ना मुश्किल था।
आरोपियों ने बताया कि एक फर्जी आधार कार्ड की कीमत 2,000 से 5,000 रुपये तक होती थी, और ग्राहकों में ज्यादातर साइबर ठग, बैंक धोखेबाज और अंतरराष्ट्रीय अपराधी शामिल थे। इन कार्डों का इस्तेमाल निम्नलिखित अपराधों में होता था:
फर्जी बैंक खाते खोलना
अवैध सिम कार्ड हासिल करना
ऑनलाइन शॉपिंग और लोन फ्रॉड
मनी लॉन्ड्रिंग और काले धन को सफेद करना
अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन की आशंका
पुलिस को शक है कि इस रैकेट के तार केवल जोधपुर या राजस्थान तक सीमित नहीं हैं। प्रारंभिक जांच में कुछ सबूत मिले हैं, जो यह संकेत देते हैं कि इन फर्जी आधार कार्ड का उपयोग विदेशी साइबर ठगी गिरोहों द्वारा भी किया जा रहा था। विशेष रूप से, नाइजीरियाई और दक्षिण-पूर्वी एशियाई अपराधी समूहों के साथ इनके लिंक होने की आशंका है। पुलिस ने साइबर सेल और केंद्रीय जांच एजेंसियों के साथ मिलकर इस कोण की गहन जांच शुरू कर दी है।
पुलिस की चुनौतियां
देवनगर थाना प्रभारी ने बताया कि इस रैकेट की जांच में कई तकनीकी और कानूनी चुनौतियां हैं। आरोपियों ने अपने लैपटॉप और मोबाइल फोनों में डेटा को मल्टी-लेयर एन्क्रिप्शन के जरिए सुरक्षित किया था। साइबर फोरेंसिक विशेषज्ञों की मदद से इस डेटा को डिकोड करने की प्रक्रिया चल रही है। इसके अलावा, फर्जी आधार कार्ड के उपयोग से हुए अपराधों की जड़ तक पहुंचने के लिए पुलिस को पीड़ितों और बैंकों के साथ समन्वय करना पड़ रहा है।
साइबर ठगी का बढ़ता साया
यह मामला साइबर अपराध के बढ़ते खतरे की एक झलक पेश करता है। आधार कार्ड, जो भारत में पहचान का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है, उसकी नकल तैयार करना न केवल व्यक्तियों के लिए खतरा है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है। साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि फर्जी दस्तावेजों का उपयोग अपराधियों के लिए सबसे आसान हथियार बन गया है। इस तरह के रैकेट न केवल आम लोगों की मेहनत की कमाई लूटते हैं, बल्कि देश की वित्तीय प्रणाली को भी कमजोर करते हैं।
पुलिस की अपील और सलाह
देवनगर थाना पुलिस ने जनता से सतर्क रहने की अपील की है। पुलिस ने कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं:
अपनी निजी जानकारी, जैसे आधार नंबर, पैन कार्ड, बैंक डिटेल्स या ओटीपी, किसी के साथ साझा न करें।
अगर कोई व्यक्ति फोन, ईमेल या मैसेज के जरिए आपकी जानकारी मांगता है, तो उसकी सत्यता की जांच करें।
आधार कार्ड की फोटोकॉपी देते समय उस पर ‘कैंसिल्ड’ लिखें और उपयोग का उद्देश्य स्पष्ट करें।
संदिग्ध गतिविधियों की तुरंत नजदीकी पुलिस स्टेशन या साइबर सेल में शिकायत करें।
पुलिस ने यह भी कहा कि इस रैकेट के अन्य सदस्यों की तलाश के लिए छापेमारी जारी है। जोधपुर के विभिन्न इलाकों में संदिग्ध ठिकानों पर नजर रखी जा रही है।
आगे की कार्रवाई
गिरफ्तार दोनों आरोपियों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। पुलिस अब बरामद डेटा का विश्लेषण कर रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि अब तक कितने लोगों को ठगा गया और इन फर्जी आधार कार्ड का उपयोग किन-किन अपराधों में हुआ। साथ ही, पुलिस इस रैकेट के पीछे संभावित मास्टरमाइंड और बड़े साइबर ठगी गिरोहों की तलाश में है।
सतर्कता ही सुरक्षा
जोधपुर के इस सनसनीखेज मामले ने एक बार फिर साइबर ठगी के खतरे को रेखांकित किया है। फर्जी आधार कार्ड जैसे अपराध न केवल व्यक्तिगत नुकसान पहुंचाते हैं।, बल्कि देश की सुरक्षा और विश्वसनीयता को भी चुनौती देता हैं।। देवनगर थाना पुलिस की त्वरित कार्रवाई ने इस रैकेट को ध्वस्त कर कई लोगों को ठगी का शिकार होने से बचाया।। लेकिन यह मामला हमें याद दिलाता है कि डिजिटल युग में सतर्कता और जागरूकता ही हमारी सबसे बड़ी ढाल है।।