पर्यटन भवन की दीवारों पर उकेरी गई शाही परंपरा, 24 कैरेट सोने से सजी तीज माता की सवारी..
राजस्थान पर्यटन भवन में 24 कैरेट सोने और गंगाजल से सजी तीज माता की शाही सवारी और ऐतिहासिक धरोहरों की भित्तिचित्रें चर्चा में हैं। वैदिक कलाकार रामू रामदेव ने आठ महीने में इन 3D पेंटिंग्स को तैयार कर राजस्थान की सांस्कृतिक भव्यता को उकेरा।

राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और दुनिया के सामने पेश करने की एक अनूठी पहल राजस्थान पर्यटन भवन में देखने को मिल रही है। यहां की दीवारों पर बनी भित्तिचित्र (वॉल पेंटिंग्स) इन दिनों खूब चर्चा में हैं। कारण है इनका 24 कैरेट सोने और चांदी के वर्क से तैयार होना, जो राजस्थान की शाही और सांस्कृतिक परंपराओं को जीवंत कर रहा है। इन पेंटिंग्स में तीज माता की शाही सवारी से लेकर आमेर महल, मेहरानगढ़ किला, विजय स्तंभ और डीग पैलेस जैसी ऐतिहासिक धरोहरों को दर्शाया गया है। खास बात यह है कि इन चित्रों को वैदिक मंत्रों और गंगाजल के साथ तैयार किया गया है, जो इसे और भी पवित्र और विशेष बनाता है।
सातवीं पीढ़ी के कलाकार की विरासत
इन भव्य भित्तिचित्रों को तैयार करने का श्रेय जाता है वैदिक कलाकार रामू रामदेव को, जो सिटी पैलेस, जयपुर के कला एवं संस्कृति विभाग में OSD हैं। रामू, इस परंपरागत कला की सातवीं पीढ़ी के कलाकार हैं। उन्होंने बताया कि यह कला उन्हें उनके पिता अचलेश्वर प्रसाद रामदेव से विरासत में मिली है। "यह मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट है। मैंने 2018 में इसका ड्रॉइंग तैयार किया था, और इसे पूरा करने में आठ महीने से ज्यादा का समय लगा," रामू ने गर्व के साथ कहा।
उनके अनुसार, इन पेंटिंग्स में पुराने जयपुर की भव्यता और संस्कृति को दर्शाने की कोशिश की गई है। हर चित्र में राजस्थान की शाही परंपराओं को इस तरह उकेरा गया है कि यह देखने वालों को उस दौर में ले जाता है। रामू ने बताया कि तीज माता की शाही सवारी में शामिल हर किरदार—पंडित, पुरोहित, चोपदार, छड़ीदार, भाले-तलवार लिए सिपाही—के चेहरे अलग-अलग बनाए गए हैं। खास बात यह है कि रामू ने इस सवारी में अपना चेहरा भी शामिल किया है।
24 कैरेट सोने और गंगाजल का अनूठा संगम
इन भित्तिचित्रों की खासियत सिर्फ उनकी सुंदरता ही नहीं, बल्कि उनकी निर्माण प्रक्रिया भी है। पेंटिंग्स को 3D प्रभाव देने के लिए एंबोजिंग वर्क किया गया है। इसके लिए स्टोन पाउडर, खड़िया, चौक मिट्टी और पेवड़ी को फेविकोल के साथ मिलाकर एक खास मसाला तैयार किया गया, जिसे मेहंदी के कोन में भरकर उभार बनाए गए। रामू बताते हैं कि यह तकनीक पेंटिंग को 100 साल से ज्यादा समय तक बिना दरार और रंग फीके पड़े सुरक्षित रखती है।
वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ रंगों में गंगाजल मिलाया गया, और पहले के जमाने में घी से लेप कर संरक्षित की जाने वाली इन पेंटिंग्स को अब कांच के बॉक्स में सील कर सुरक्षित किया गया है। सामने की दीवार पर आमेर के शीश महल की तर्ज पर बना ठीकरी वर्क और 24 कैरेट सोने से सजा गणेश जी का मुकुट इस कला की भव्यता को और बढ़ाता है। गणेश जी की प्रतिमा के साथ रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ के स्वरूप भी दर्शाए गए हैं।
तीज माता की सवारी का जीवंत चित्रण
तीज माता की शाही सवारी जयपुर राजपरिवार की ऐतिहासिक परंपरा है, जो शहर की स्थापना के समय से चली आ रही है। सावन की तीज पर सिटी पैलेस की जनानी ड्योढ़ी में महिलाएं तीज माता की पूजा करती हैं, फिर महाराजा त्रिपोलिया गेट पर शाही पोशाक में पूजा-अर्चना और आरती करते हैं। इसके बाद माता नगर भ्रमण पर निकलती हैं और पौंड्रिक उद्यान में जलपान के बाद रावले लौटती हैं।
रामू ने इस सवारी को हूबहू चित्रित किया है। सवारी की शुरुआत में गामा पहलवान द्वारा हाथी पर निशान पचरंगा लिए चलने से लेकर ऊंट पर नगाड़े, घोड़े पर रक्षक, तख्त, कलश और प्रसाद-जलपान तक हर दृश्य को बारीकी से उकेरा गया है। रामू ने बताया कि इस झांकी को तैयार करने से पहले उन्होंने इस परंपरा का गहरा अध्ययन किया।
राजस्थान की धरोहरों का भव्य प्रदर्शन
पर्यटन भवन के स्वागत कक्ष की दीवारों पर 10 से 15 भित्तिचित्र बनाए गए हैं, जिनमें कुंभलगढ़, विजय स्तंभ, डीग पैलेस और मेहरानगढ़ किला जैसी धरोहरों को पारंपरिक शैली में दर्शाया गया है। ये चित्र न केवल राजस्थान की स्थापत्य कला को प्रदर्शित करते हैं, बल्कि यह भी बताते हैं कि कैसे यह कला दो हजार साल पुरानी अजंता-एलोरा की गुफाओं से प्रेरित है। जयपुर के राजपरिवार ने इस कला को संरक्षण देकर इसे जीवित रखा, जिसके नमूने आज भी शहर के महलों, मंदिरों और हवेलियों में देखने को मिलते हैं।
सरकार का समर्थन और भविष्य की योजनाएं
रामू रामदेव ने बताया कि यह प्रोजेक्ट डिप्टी सीएम दीया कुमारी और पर्यटन मंत्री के निर्देश पर शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को राजस्थान की सांस्कृतिक और शाही परंपराओं की एक भव्य झलक दिखाना था। राजस्थान सरकार ने इस कला को बढ़ावा देने के लिए 3500 करोड़ रुपये का बजट भी स्वीकृत किया है, जिससे स्थानीय लोक कलाकारों को प्रोत्साहन मिलेगा और इस परंपरागत कला को नई पहचान मिलेगी।
एक जीवंत दस्तावेज
रामू रामदेव के लिए यह सिर्फ पेंटिंग्स नहीं, बल्कि राजस्थान की ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को जीवंत करने वाली एक दस्तावेजी प्रस्तुति है। यह कला न केवल पर्यटकों को राजस्थान की समृद्ध विरासत से रूबरू कराएगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत भी बनेगी।