रेगिस्तान की रेत में खिली उम्मीद: आक का पौधा बना महिलाओं की आजीविका का सहारा

रेगिस्तान में प्राकृतिक रूप से उगने वाला आक (मदार) का पौधा अब केवल एक वनस्पति नहीं, बल्कि ग्रामीण महिलाओं के लिए आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन रहा है। आक के प्राकृतिक रेशों से गर्म कपड़े बनाए जा रहे हैं, जिनकी बाजार में 160 क्विंटल की मांग है। रूमा देवी फाउंडेशन के प्रयासों से, इस पौधे के फल (आकपाडीये) को सावधानीपूर्वक एकत्र कर ग्रामीण महिलाओं और किसानों को अतिरिक्त आय का अवसर प्रदान किया जा रहा है। यह पहल न केवल पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों को बढ़ावा दे रही है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती दे रही है।

May 20, 2025 - 12:28
May 20, 2025 - 13:22
रेगिस्तान की रेत में खिली उम्मीद: आक का पौधा बना महिलाओं की आजीविका का सहारा

थार के मरुस्थल की धरती, जहां रेत के धोरे हवाओं के साथ नाचते हैं और सूरज की तपिश हर कदम पर इम्तिहान लेती है। इस बंजर भूमि पर जीवन आसान नहीं, खासकर महिलाओं के लिए, जिनके लिए रोजगार और आत्मनिर्भरता किसी मृगतृष्णा से कम नहीं। लेकिन अब यही रेगिस्तान, यही रेत और यही तपती धूप एक नई कहानी लिख रही है। एक ऐसा पौधा, जिसे कभी गाय-बकरी भी ठुकरा देती थीं, आज मरुस्थल की महिलाओं के लिए सोने की खान बन रहा है। यह है आक का पौधा, जिसके प्राकृतिक रेशों से गर्म कपड़े बन रहे हैं और रूमा देवी फाउंडेशन के प्रयासों से यह ग्रामीण महिलाओं के

लिए रोजगार का नया द्वार खोल रहा है।


मरुस्थल में रोजगार की महक:
थार का मरुस्थल सिर्फ रेत और धूप का पर्याय नहीं, बल्कि यहाँ की महिलाओं की मेहनत और हिम्मत की गाथाएँ भी हैं। यहाँ हर दिन जीविका के लिए संघर्ष है। अधिकांश परिवारों में पुरुष शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं, और महिलाएँ घर-गृहस्थी के साथ-साथ आय का कोई जरिया तलाशती हैं। ऐसे में आक का पौधा उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं। इस पौधे के फल, जिन्हें आक पाड़िया कहते हैं, अब बिक्री के लिए एकत्रित किए जा रहे हैं। इनसे निकलने वाले प्राकृतिक रेशों की मांग आज 160 क्विंटल तक पहुँच चुकी है।
रूमा देवी फाउंडेशन इन महिलाओं को न सिर्फ प्रशिक्षण दे रहा है, बल्कि उन्हें बाजार से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने का रास्ता भी दिखा रहा है। आक पाड़िया को सावधानीपूर्वक हरा ही एकत्र करना होता है, और इसके लिए जालीदार कट्टों का उपयोग किया जाता है। यह काम महिलाओं के लिए न केवल अतिरिक्त आय का स्रोत है, बल्कि उनकी मेहनत को सम्मान और पहचान भी दे रहा है। एक महिला, जो पहले घर की चारदीवारी तक सीमित थी, अब अपने गाँव की दूसरी महिलाओं को प्रेरित कर रही है। यह रोजगार उनके लिए सिर्फ पैसे का स्रोत नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और सामाजिक सम्मान का प्रतीक है।


आक: मरुस्थल का अनमोल रत्न:
आक (Calotropis procera), जिसे स्थानीय भाषा में आकड़ा या मदार भी कहते हैं, मरुस्थल की बंजर भूमि पर अपने आप उगने वाला एक कांटेदार पौधा है। इसकी पत्तियाँ खारी होती हैं, जिसके कारण इसे पशु भी नहीं खाते। लेकिन इसकी उपयोगिता अब सामने आ रही है। आक के फल, यानी आक पाड़िया, और इसके रेशे अब कपड़ा उद्योग में क्रांति ला रहे हैं। इन रेशों से बने गर्म कपड़े न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि उनकी मांग देश-विदेश में बढ़ रही है।
आक के रेशों से निम्नलिखित चीजें बनाई जा सकती हैं:


गर्म कपड़े: इन रेशों से जैकेट, शॉल और अन्य गर्म वस्त्र बनाए जा रहे हैं, जो सर्दियों में उपयोगी हैं।

हस्तशिल्प उत्पाद: बैग, कुशन कवर और अन्य सजावटी सामान।

पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद: आक के रेशे प्राकृतिक और टिकाऊ होते हैं, जो प्लास्टिक-आधारित सामग्री का बेहतर विकल्प हैं।
इसके अलावा, आक का पौधा औषधीय गुणों से भी भरपूर है। आयुर्वेद में इसके दूध और पत्तियों का उपयोग कई रोगों के इलाज में किया जाता है, जैसे त्वचा रोग और जोड़ों का दर्द। यह पौधा मरुस्थल की कठिन परिस्थितियों में भी पनपता है, जिससे यह स्थानीय समुदायों के लिए एक विश्वसनीय संसाधन है।


रूमा देवी फाउंडेशन: मरुस्थल में बदलाव की बयार
रूमा देवी, जिन्होंने खुद आर्थिक तंगी और सामाजिक बाधाओं का सामना करते हुए एक बड़ा मुकाम हासिल किया, आज हजारों महिलाओं की प्रेरणा हैं। उनके नेतृत्व में रूमा देवी फाउंडेशन मरुस्थल की महिलाओं को आक के पौधे की उपयोगिता के बारे में जागरूक कर रहा है। फाउंडेशन न केवल आक पाड़िया एकत्र करने का प्रशिक्षण देता है, बल्कि इन रेशों से उत्पाद बनाने और उनकी बिक्री के लिए बाजार उपलब्ध कराने में भी मदद करता है।
रूमा देवी की कहानी अपने आप में मरुस्थल की महक लिए हुए है। बाड़मेर के एक छोटे से गाँव से निकलकर उन्होंने 35,000 से अधिक महिलाओं को रोजगार और प्रशिक्षण दिया है। उनके डिज़ाइन किए कपड़े लंदन, जर्मनी, और सिंगापुर जैसे देशों के फैशन शो में प्रदर्शित हो चुके हैं। अब आक के पौधे के जरिए वे एक नया अध्याय लिख रही हैं, जो मरुस्थल की महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता की ओर ले जा रहा है।


मरुस्थल की महक और उम्मीद की किरण:
जरा सोचिए, उस धरती पर जहाँ पानी की एक-एक बूंद कीमती है, वहाँ आक का पौधा बिना किसी देखभाल के लहलहाता है। यह पौधा मरुस्थल की उस जिद का प्रतीक है, जो कहता है कि कठिनाइयों के बीच भी जीवन संभव है। और जब इस पौधे को रूमा देवी जैसे विज़न के साथ जोड़ा जाता है, तो यह सिर्फ एक पौधा नहीं, बल्कि हजारों महिलाओं के सपनों का आधार बन जाता है।
आक से बने कपड़े जब किसी के कंधों पर सजते हैं, तो वे सिर्फ गर्माहट नहीं देते, बल्कि मरुस्थल की उन महिलाओं की मेहनत, हिम्मत और आत्मसम्मान की कहानी भी बयां करते हैं। यह खबर सिर्फ आक की नहीं, बल्कि उस बदलाव की है, जो रेगिस्तान की रेत में उम्मीद के फूल खिला रहा है।