बिहार विधानसभा चुनाव 2025: नीतीश, लालू या PK - कौन मारेगा बाजी?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में नीतीश कुमार, लालू परिवार और प्रशांत किशोर के बीच कड़ा मुकाबला। रणनीतियां तेज, जनता तय करेगी सत्ता का भविष्य।

पटना, 12 अप्रैल 2025: बिहार की सियासत में विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं। नवंबर में होने वाले इस महासमर में सत्तारूढ़ नीतीश कुमार की जेडीयू-बीजेपी गठबंधन (एनडीए), लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में तेजस्वी यादव की अगुवाई वाला महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस-लेफ्ट), और प्रशांत किशोर (PK) की नई पार्टी जन सुराज के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है। हर पक्ष अपनी रणनीति को धार दे रहा है, लेकिन सवाल वही है - क्या नीतीश सरकार दोहराएगी इतिहास, लालू परिवार लाएगा सत्ता में वापसी, या PK बिगाड़ देंगे सारे समीकरण?
## नीतीश कुमार: "मिशन 225" के साथ सत्ता बचाने की जंग
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो पिछले दो दशकों से बिहार की सियासत के केंद्र में हैं, एक बार फिर एनडीए के चेहरे के रूप में मैदान में हैं। उनकी रणनीति विकास, सामाजिक समावेश, और गठबंधन की एकजुटता पर टिकी है। जेडीयू ने "मिशन 225" अभियान शुरू किया है, जिसके तहत सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों में सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं। इन सम्मेलनों में सड़क, बिजली, पानी, और नौकरियों जैसे विकास कार्यों को गिनाया जा रहा है।
हाल ही में नीतीश सरकार ने 2025-26 के बजट में 12 लाख नौकरियों का वादा किया, जिसका लक्ष्य युवा वोटरों को लुभाना है। इसके अलावा, बिहार में स्मार्ट सिटी परियोजनाएं, ग्रामीण सड़क नेटवर्क का विस्तार, और शिक्षा-स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधारों पर जोर दिया जा रहा है। नीतीश की ताकत गैर-यादव ओबीसी (कुर्मी, कोइरी) और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) में उनकी पकड़ है, जो बिहार की 30% आबादी का हिस्सा हैं।
हालांकि, नीतीश के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। बार-बार पाला बदलने (2000 में बीजेपी, 2013 में आरजेडी, फिर 2017 में बीजेपी, और 2022 में दोबारा महागठबंधन-एनडीए) से उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। बीजेपी के बढ़ते दबदबे और हिंदुत्व की आक्रामक छवि से नीतीश की सेक्युलर इमेज को नुकसान हो रहा है। हाल ही में कुछ मुस्लिम संगठनों ने नीतीश की इफ्तार पार्टी का बहिष्कार किया, जो उनके लिए खतरे की घंटी हो सकता है। फिर भी, बीजेपी का मजबूत संगठन और नीतीश का प्रशासनिक अनुभव एनडीए को मजबूत स्थिति में रखता है।
**सर्वे का अनुमान**: हाल के कुछ सर्वेक्षणों (जैसे CSDS) के मुताबिक, अगर नीतीश को सीएम चेहरा बनाया जाता है, तो एनडीए को 130-140 सीटें मिल सकती हैं, जो बहुमत (122) से ज्यादा है।
## लालू परिवार: तेजस्वी की अगुवाई में वापसी की उम्मीद
लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) इस बार तेजस्वी यादव को पूरी तरह से कमान सौंप चुकी है। 2020 में 110 सीटों के साथ हार के बावजूद तेजस्वी ने अपनी युवा अपील और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर आक्रामक रुख से सियासी जमीन मजबूत की है। महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, और लेफ्ट पार्टियों (CPI, CPM, CPI-ML) के अलावा पशुपति पारस की रालोसपा और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के शामिल होने की संभावना है।
तेजस्वी की रणनीति बेरोजगारी, सामाजिक न्याय, और नीतीश सरकार की नाकामियों पर हमला करने की है। उनकी "आर्थिक न्याय यात्रा" ने ग्रामीण और शहरी युवाओं में समर्थन बढ़ाया है। लालू ने हाल ही में नीतीश के लिए "दरवाजे खुले" होने का बयान देकर सियासी हलचल मचाई, जिससे महागठबंधन और जेडीयू के बीच संभावित गठजोड़ की अटकलें शुरू हुईं। हालांकि, तेजस्वी ने इसे खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि उनकी लड़ाई सत्ता के लिए नहीं, बल्कि बिहार के भविष्य के लिए है।
आरजेडी की ताकत उसका यादव (14%) और मुस्लिम (17%) वोट बैंक है, जिसे "MY समीकरण" कहा जाता है। इसके अलावा, पसमांदा मुस्लिम और दलित वोटरों को लुभाने के लिए तेजस्वी ने विशेष अभियान शुरू किए हैं। लेकिन महागठबंधन की कमजोरी उसकी आंतरिक कलह है। कांग्रेस की कमजोर स्थिति और सीट बंटवारे पर सहमति की कमी आरजेडी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। साथ ही, लालू परिवार पर भ्रष्टाचार के पुराने आरोप और "जंगलराज" की छवि को बीजेपी और जेडीयू भुनाने की कोशिश कर रहे हैं।
**सर्वे का अनुमान**: अगर महागठबंधन एकजुट रहता है, तो उसे 100-120 सीटें मिल सकती हैं, लेकिन PK की मौजूदगी इसे 80-100 तक सीमित कर सकती है।
## प्रशांत किशोर: जन सुराज के साथ नया दांव
चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर (PK) अपनी पार्टी जन सुराज के साथ बिहार की सियासत में नया रंग भर रहे हैं। जन सुराज ने सभी 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की है, जिससे एनडीए और महागठबंधन दोनों की नींद उड़ी हुई है। PK की दो साल की पदयात्रा और युवा-केंद्रित कैंपेन ने ग्रामीण इलाकों में खासा प्रभाव डाला है। उनकी रणनीति शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसे मुद्दों पर केंद्रित है, साथ ही वे मुस्लिम, यादव, और महिला वोटरों को विशेष रूप से लक्षित कर रहे हैं।
PK का नारा है - "नया बिहार, जन सुराज का आधार"। उनकी तटस्थ छवि और डेटा-आधारित रणनीति युवाओं और मध्यम वर्ग को आकर्षित कर रही है। जन सुराज ने बिहार में 50,000 स्वयंसेवकों का नेटवर्क तैयार करने का दावा किया है। लेकिन, PK के सामने सबसे बड़ी चुनौती उनकी पार्टी का नया होना और संगठनात्मक ढांचे की कमी है। बड़े चेहरों और फंडिंग की कमी भी उनकी राह में रोड़ा है।
**प्रभाव**: PK का लक्ष्य सरकार बनाना कम, बल्कि समीकरण बिगाड़ना ज्यादा है। अगर जन सुराज 10-15% वोट लेती है, तो कई सीटों पर हार-जीत का अंतर कम हो सकता है। खासकर आरजेडी के MY वोट बैंक में सेंध लगने की संभावना है, क्योंकि PK ने मुस्लिम और यादव वोटरों पर फोकस किया है।
**सर्वे का अनुमान**: जन सुराज को 5-10 सीटें मिल सकती हैं, लेकिन उसका वोट शेयर (10-15%) एनडीए और महागठबंधन दोनों को नुकसान पहुंचा सकता है।
## जातीय समीकरण: बिहार की सियासत का आधार
बिहार में जातीय गणित चुनावी नतीजों को तय करता है। प्रमुख समुदायों का प्रभाव इस प्रकार है:
- **यादव (14%)**: आरजेडी का कोर वोट बैंक, लेकिन PK की कोशिश इसे तोड़ने की है।
- **मुस्लिम (17%)**: परंपरागत रूप से आरजेडी समर्थक, लेकिन नीतीश और PK भी इस वर्ग को लुभा रहे हैं।
- **ओबीसी (30%)**: कुर्मी, कोइरी, और अन्य गैर-यादव ओबीसी में नीतीश की मजबूत पकड़। बीजेपी ने भी इस वर्ग को साधने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं।
- **अति पिछड़ा वर्ग (EBC, 20%)**: नीतीश का सबसे मजबूत आधार, जिसमें कई छोटी जातियां शामिल हैं।
- **दलित (16%)**: इसमें पासवान और रविदास समुदाय शामिल हैं। बीजेपी और चिराग पासवान की LJP इस वर्ग में मजबूत हैं, जबकि आरजेडी और लेफ्ट भी दलित वोटों की कोशिश में हैं।
- **सवर्ण (10%)**: बीजेपी का पारंपरिक वोट बैंक, जिसमें ब्राह्मण, राजपूत, और भूमिहार शामिल हैं।
## प्रमुख मुद्दे और जनता की नब्ज
बिहार का चुनाव कई अहम मुद्दों पर लड़ा जाएगा:
- **बेरोजगारी**: तेजस्वी ने इसे अपना मुख्य हथियार बनाया है। बिहार में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत (7%) से ज्यादा है, जो युवाओं में असंतोष पैदा कर रहा है।
- **विकास**: नीतीश सड़क, बिजली, और पानी जैसे बुनियादी ढांचे को अपनी उपलब्धि बता रहे हैं। बीजेपी "डबल इंजन सरकार" के फायदों का प्रचार कर रही है।
- **कानून-व्यवस्था**: नीतीश का दावा है कि उन्होंने "जंगलराज" को खत्म किया, जबकि आरजेडी इसे भ्रामक प्रचार बताती है।
- **शिक्षा और स्वास्थ्य**: PK ने इन दोनों क्षेत्रों को प्राथमिकता दी है, जिससे युवा और मध्यम वर्ग में उनकी चर्चा बढ़ी है।
- **जातीय और सामाजिक न्याय**: लालू और तेजस्वी सामाजिक न्याय की बात को आगे बढ़ा रहे हैं, जबकि नीतीश ने EBC और महिलाओं के लिए विशेष योजनाओं पर जोर दिया है।
## संभावित परिदृश्य
1. **नीतीश का रिपीट**: अगर एनडीए एकजुट रहता है और नीतीश को सीएम चेहरा बनाया जाता है, तो उनकी जीत की संभावना सबसे ज्यादा है। बीजेपी का संगठन और नीतीश का अनुभव उन्हें बहुमत के करीब ले जा सकता है। लेकिन, बीजेपी के भीतर सीएम पद को लेकर चर्चाएं उनकी राह मुश्किल कर सकती हैं।
2. **लालू परिवार की वापसी**: महागठबंधन की एकजुटता और तेजस्वी की युवा अपील सत्ता में वापसी करा सकती है, बशर्ते वे नीतीश की एंटी-इनकंबेंसी को भुना पाएं। लेकिन PK की मौजूदगी और गठबंधन की अंदरूनी कलह इसे चुनौतीपूर्ण बनाती है।
3. **PK का गेमचेंजर रोल**: जन सुराज की जीत की संभावना कम है, लेकिन अगर वे 10-15% वोट लेते हैं, तो कई सीटों पर नतीजे पलट सकते हैं। खासकर आरजेडी को इससे ज्यादा नुकसान हो सकता है। लंबे समय में PK बिहार की सियासत में तीसरे विकल्प के रूप में उभर सकते हैं।
बिहार का चुनावी दंगल बेहद रोमांचक होने जा रहा है। नीतीश कुमार की अनुभवी रणनीति, तेजस्वी यादव की आक्रामक अपील, और प्रशांत किशोर की तटस्थ छवि इस मुकाबले को त्रिकोणीय बना रही है। 2020 के करीबी नतीजों (एनडीए: 125, महागठबंधन: 110) को देखते हुए इस बार भी हार-जीत का अंतर कम रह सकता है। जातीय समीकरण, गठबंधन की एकजुटता, और युवा वोटरों की भूमिका नतीजों को तय करेगी। क्या नीतीश फिर सत्ता की कुर्सी संभालेंगे, लालू परिवार वापसी करेगा, या PK नया इतिहास रचेगा? इसका जवाब नवंबर 2025 में बिहार की जनता देगी।
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