रविंद्र सिंह भाटी का दौसा दौरा: सियासी शतरंज में नया दांव, बीजेपी से जुड़ाव और बृजेश सिंह का साया
रविंद्र सिंह भाटी का दौसा दौरा: सियासी शतरंज में नया दांव, बीजेपी से जुड़ाव और बृजेश सिंह का साया
**दौसा, 2 अप्रैल 2025:** राजस्थान की सियासत में अपनी बेबाकी, युवा जोश और जनता से सीधे जुड़ाव के लिए मशहूर शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने मंगलवार को दौसा जिले में एक ऐसा कदम उठाया, जिसने सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया। उन्होंने बसवा में महाराणा सांगा की स्मारक स्थली पर श्रद्धांजलि अर्पित की और रास्ते में भंडाना गांव में स्वर्गीय राजेश पायलट के स्मारक पर भी पुष्पांजलि दी। इस दौरे में उनके साथ उत्तर प्रदेश के पूर्व एमएलसी और पूर्वांचल के कद्दावर नेता बृजेश सिंह की मौजूदगी ने इस घटना को और रहस्यमयी बना दिया। गुर्जर बेल्ट में भाटी की पहली एंट्री, उनके साथ उमड़ा अपार जनसैलाब और बृजेश सिंह जैसे प्रभावशाली चेहरे का साथ सवाल उठा रहा है कि क्या यह महज एक श्रद्धांजलि यात्रा थी, या इसके पीछे सियासत का कोई गहरा खेल छिपा है? भाटी की यह चाल न केवल राजस्थान, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बन गई है।
#### **गुर्जर बेल्ट में पहली एंट्री: सियासी मायने और संदेश**
रविंद्र सिंह भाटी का दौसा दौरा उनकी सियासी महत्वाकांक्षा का एक नया और साहसिक कदम है। दौसा, जो गुर्जर समुदाय का गढ़ और कांग्रेस के दिग्गज नेता सचिन पायलट का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है, वहां भाटी का कदम रखना अपने आप में एक बड़ा संकेत है। राजेश पायलट के स्मारक पर उनकी मौजूदगी और वहां उमड़ा जनसैलाब इस बात का प्रमाण है कि वे गुर्जर वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। राजस्थान की सियासत में गुर्जर समुदाय का प्रभाव किसी से छिपा नहीं है, और भाटी का यह कदम उनकी लोकप्रियता को पश्चिमी राजस्थान से पूर्वी राजस्थान तक फैलाने की रणनीति का हिस्सा लगता है। विधानसभा में वे बार-बार बीजेपी नेताओं की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, "मैं आपका अपना हूं, आप मानते नहीं।" यह बयान उनकी भावनात्मक अपील का हिस्सा है, लेकिन दौसा में उनकी यह एंट्री क्या बीजेपी को यह संदेश दे रही है कि वे अब पूरे प्रदेश में अपनी सियासी जमीन तैयार करने में जुट गए हैं? उनके समर्थकों का मानना है कि यह दौरा उनकी स्वतंत्र छवि को और मजबूत करने के साथ-साथ एक बड़े नेता के रूप में उनकी पहचान स्थापित करने की दिशा में अहम कदम है।
#### **बीजेपी से जुड़ाव: सीएम के साथ मंच और जटिल रिश्ते**
भाटी का बीजेपी के साथ रिश्ता हमेशा से एक पहेली रहा है, जो कभी नजदीकी तो कभी दूरी का मिश्रण दिखाता है। उनकी सियासी शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से हुई थी, जो बीजेपी का छात्र संगठन है, और उनकी वैचारिक जड़ें बीजेपी से जुड़ी रही हैं। हालांकि, 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी से टिकट न मिलने पर उन्होंने बगावत कर दी और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में शिव से जीत हासिल की। इस जीत ने उन्हें युवा तुर्क के रूप में स्थापित किया, लेकिन इसके बाद भी बीजेपी के साथ उनका तालमेल बना रहा। हाल के महीनों में वे अपने क्षेत्र बाड़मेर के हर बड़े कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के साथ मंच पर नजर आए हैं। चाहे वह सांस्कृतिक आयोजन हों, विकास परियोजनाओं का उद्घाटन हो या कोई जनसभा, भाटी की मौजूदगी बीजेपी के साथ उनकी सियासी नजदीकी को दर्शाती है। दौसा दौरा क्या इस नजदीकी का विस्तार है, या फिर यह उनकी स्वतंत्र सियासी पहचान को मजबूत करने की कोशिश है? यह सवाल बीजेपी के लिए भी चुनौती बन सकता है, क्योंकि भाटी की बढ़ती लोकप्रियता पार्टी के लिए खतरे की घंटी भी हो सकती है।
#### **बृजेश सिंह: मुख्तार अंसारी से गैंगवार तक का सियासी सफर**
बृजेश सिंह इस दौरे में सबसे बड़ा आश्चर्य थे, जिनकी मौजूदगी ने सियासी स्नेकेट को नया आयाम दिया। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल से ताल्लुक रखने वाले बृजेश सिंह एक प्रभावशाली नेता हैं, जिनका नाम सियासत के साथ-साथ आपराधिक दुनिया से भी जुड़ा रहा है। पूर्व एमएलसी के रूप में उन्होंने पूर्वांचल में अपनी मजबूत पकड़ बनाई और आर्थिक ताकत व सामाजिक रसूख के दम पर "किंगमेकर" की उपाधि हासिल की। उनका नाम खूंखार गैंगस्टर और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी के साथ गैंगवार और सियासी दुश्मनी की घटनाओं से जोड़ा जाता है। अंसारी के साथ उनके टकराव की कहानियां पूर्वांचल में मशहूर हैं, जहां हिंसक झड़पों ने उनकी छवि को एक सख्त और निडर नेता के रूप में स्थापित किया। इसके बावजूद, बृजेश ने अपनी सियासी पकड़ को कमजोर नहीं होने दिया और कई बार विधानसभा चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाई। भाटी जैसे युवा और लोकप्रिय नेता के साथ उनका यह साथ क्या पूर्वांचल और राजस्थान की सियासत को जोड़ने की कोशिश है? उनकी यह जोड़ी सियासी विश्लेषकों के लिए एक पहेली बन गई है, जो बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए नई चुनौती खड़ी कर सकती है।
#### **राणा सांगा का स्मारक: इतिहास से राष्ट्रीय संदेश की कोशिश**
हाल ही में समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन द्वारा राणा सांगा पर दिए गए विवादित बयान ने देश भर में बहस छेड़ दी थी। इस संदर्भ में भाटी का राणा सांगा की स्मारक स्थली पर जाना केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि एक सियासी मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है। राणा सांगा, जो 16वीं सदी में राजपूत वीरता के प्रतीक थे, उनकी समाधि स्थली लंबे समय से उपेक्षा का शिकार रही है। भाटी ने इस स्थल पर पहुंचकर न केवल इतिहास के प्रति अपनी संवेदनशीलता दिखाई, बल्कि यह संदेश भी दिया कि वे राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत को सम्मान देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह कदम उनकी छवि को क्षेत्रीय नेता से राष्ट्रीय स्तर के नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश माना जा रहा है। क्या यह देश भर में यह संदेश देने का प्रयास है कि भाटी अब केवल राजस्थान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनकी नजर बड़े मंच पर है? उनके समर्थकों का मानना है कि यह दौरा उनकी सियासी रणनीति का हिस्सा है, जो इतिहास और वर्तमान को जोड़कर एक नई कहानी लिखने की तैयारी है।
#### **जनसैलाब और बीजेपी पर दबाव**
भाटी के इस दौरे में जिस तरह का जनसैलाब उमड़ा, वह उनकी बढ़ती लोकप्रियता का जीता-जागता सबूत है। युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक, हर वर्ग उनके साथ जुड़ा नजर आया। सड़कों पर उनके स्वागत में लगे नारे और सोशल मीडिया पर वायरल हुई तस्वीरें, जिनमें समर्थक उन्हें "अपना नेता" कहते दिखे, उनकी जनता के बीच गहरी पैठ को दर्शाती हैं। विधानसभा में बीजेपी नेताओं को "अपना" कहने वाले भाटी का यह जनसमर्थन क्या बीजेपी के लिए संकट का संकेत है? या फिर यह उनकी नजदीकी का ही एक हिस्सा है, जैसा कि सीएम के साथ मंच साझा करने से झलकता है? उनके समर्थकों का दावा है कि यह जनसैलाब उनकी स्वतंत्र सियासी ताकत का प्रदर्शन है, जो किसी भी दल के लिए चुनौती बन सकता है। बीजेपी के लिए यह स्थिति इसलिए भी जटिल है, क्योंकि भाटी की लोकप्रियता उनके अपने दम पर बढ़ रही है, न कि किसी दल के सहारे।
#### **सियासत का नया मोड़: चुनौती या सहयोग?**
भाटी का यह दौरा सियासी शतरंज का एक नया और रोचक दांव है। गुर्जर बेल्ट में उनकी एंट्री, बृजेश सिंह जैसे किंगमेकर का साथ, बीजेपी के साथ जटिल रिश्ते और राणा सांगा जैसे प्रतीकों से जुड़ाव—यह सब सवाल उठाता है कि क्या वे राजस्थान की सियासत में नया इतिहास रचने जा रहे हैं? क्या यह बीजेपी के लिए एक सहयोगी कदम है, या फिर उनकी स्वतंत्र सियासी ताकत का प्रदर्शन, जो पार्टी के लिए चुनौती बन सकता है? बृजेश सिंह का पूर्वांचल से जुड़ाव इस दौरे को राष्ट्रीय स्तर पर भी ले जाता है, जिससे यह अटकलें तेज हो गई हैं कि भाटी की नजर अब बड़े मंच पर है। यह दौरा सियासत को नया रंग देने जा रहा है, और इसका असली प्रभाव आने वाले दिनों में ही सामने आएगा।
#### **सोचने पर मजबूर करने वाली बात**
रविंद्र सिंह भाटी का यह कदम सियासत के उस मोड़ On आया है, जहां हर चाल के पीछे गहरे मायने छिपे हो सकते हैं। बृजेश सिंह का साथ, बीजेपी से नजदीकी और दूरी का खेल, गुर्जर बेल्ट में एंट्री और राष्ट्रीय संदेश की कोशिश—यह सब सोचने पर मजबूर करता है। क्या भाटी "अपना" बनकर जनता के दिलों में जगह बना पाएंगे? क्या यह जोड़ी बीजेपी और कांग्रेस के लिए नया संकट खड़ा करेगी, या फिर यह एक नए सियासी गठजोड़ की शुरुआत है? यह सवाल हर सियासी गलियारे में गूंज रहा है, और इसका जवाब वक्त के गर्भ में छिपा है।
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