19 लोग मारे गए: सोशल मीडिया प्रतिबंध का विरोध भड़क उठा—संसद व राष्ट्रपति आवास जले; केपी ओली ने इस्तीफा दे दिया

नेपाल में भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया बैन के खिलाफ हिंसक प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया। 19 लोगों की मौत और 400 से अधिक घायलों के बाद काठमांडू में कर्फ्यू लागू है।

Sep 9, 2025 - 15:46
19 लोग मारे गए: सोशल मीडिया प्रतिबंध का विरोध भड़क उठा—संसद व राष्ट्रपति आवास जले; केपी ओली ने इस्तीफा दे दिया

नेपाल की राजधानी काठमांडू में पिछले दो दिनों से भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ चल रहे हिंसक प्रदर्शनों ने देश को अस्थिरता की ओर धकेल दिया है। प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन में घुसकर आगजनी की, जिसके बाद सरकार ने काठमांडू और भक्तपुर में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लागू कर दिया। कर्फ्यू 8 सितंबर 2025 की सुबह 8:30 बजे से प्रभावी है और अगली सूचना तक जारी रहेगा। इस दौरान किसी भी प्रकार की सभा, जुलूस या प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध है, हालांकि एम्बुलेंस, स्वास्थ्यकर्मियों, पत्रकारों और राजनयिक वाहनों को छूट दी गई है।

प्रदर्शन के दौरान पुलिस की गोलीबारी में अब तक 19 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 421 लोग घायल हैं। राष्ट्रीय ट्रॉमा सेंटर में भर्ती मृतकों में से पांच की पहचान ग्लोबल कॉलेज के 19 वर्षीय छात्र श्रीयम चौलागैन, सुलभ राज श्रेष्ठ, बुद्धि तमांग, स्टॉप अधिकारी और गौरव जोशी के रूप में हुई है। सरकार ने घायलों के लिए मुफ्त इलाज की व्यवस्था करने का ऐलान किया है।

प्रधानमंत्री ओली का इस्तीफा और सियासी उथल-पुथल

प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने बढ़ते दबाव और हिंसक प्रदर्शनों के बीच 9 सितंबर 2025 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। ओली ने अपने त्यागपत्र में "असामान्य परिस्थितियों" का हवाला देते हुए संवैधानिक प्रक्रिया के तहत सत्ता हस्तांतरण की बात कही। इससे पहले, गृहमंत्री रमेश लेखक, कृषि मंत्री रामनाथ अधिकारी, स्वास्थ्य और जनसंख्या मंत्री प्रदीप पौडेल, जल आपूर्ति मंत्री प्रदीप यादव और युवा एवं खेल मंत्री तेजूलाल चौधरी ने भी इस्तीफा दे दिया था।

नेपाल की चौथी सबसे बड़ी पार्टी, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के सभी सांसदों ने भी इस्तीफा दे दिया, और इसके नेता रवि लामिछाने को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल नेपाली कांग्रेस में भी मतभेद उभर रहे हैं, जहां पार्टी अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा और अन्य नेताओं के बीच गठबंधन तोड़ने और नई सरकार बनाने की चर्चा तेज हो गई है।

सोशल मीडिया बैन और जन-आक्रोश

नेपाल सरकार ने 4 सितंबर 2025 को फेसबुक, यूट्यूब, व्हाट्सएप और X (ट्विटर) समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया था, क्योंकि इन कंपनियों ने सरकार के रजिस्ट्रेशन नियमों का पालन नहीं किया। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सभी सोशल मीडिया कंपनियों को स्थानीय कार्यालय खोलने, स्थानीय प्रतिनिधि नियुक्त करने और यूजर डेटा साझा करने के नियम लागू किए थे। टिकटॉक और वाइबर जैसे प्लेटफॉर्म्स ने रजिस्ट्रेशन करा लिया, इसलिए उन पर बैन नहीं लगा।

हालांकि, 8 सितंबर की देर रात कैबिनेट की आपात बैठक के बाद सरकार ने सोशल मीडिया प्रतिबंध हटा लिया। यह फैसला प्रदर्शनकारियों के बढ़ते दबाव और हिंसा के बाद लिया गया। सरकार ने बैन का बचाव करते हुए कहा था कि यह फेक न्यूज, हेट स्पीच और साइबर क्राइम रोकने के लिए जरूरी था।

जेन-जेड का आंदोलन और हामी नेपाल की भूमिका

प्रदर्शन का नेतृत्व जेन-जेड (Gen-Z) युवाओं ने किया, जिन्हें हामी नेपाल संगठन के प्रमुख सुदन गुरुंग ने संगठित किया। गुरुंग ने डिस्कॉर्ड और वीपीएन जैसे डिजिटल टूल्स का इस्तेमाल कर छात्रों को एकजुट किया और उन्हें स्कूली यूनिफॉर्म में प्रदर्शन के लिए प्रेरित किया। युवाओं का गुस्सा भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई, नेपोटिज्म और सियासी अस्थिरता के खिलाफ है।

पिछले चार वर्षों में नेपाल में तीन बड़े घोटाले—2021 में 54,600 करोड़ का गिरी बंधु भूमि स्वैप घोटाला, 2023 में 13,600 करोड़ का ओरिएंटल कोऑपरेटिव घोटाला और 2024 में 69,600 करोड़ का कोऑपरेटिव घोटाला—ने जनता में आक्रोश बढ़ाया है। इसके अलावा, बेरोजगारी दर 10.71% और महंगाई दर 5.2% तक पहुंच गई है, जिसने युवाओं में असंतोष को और गहरा किया।

हिंसा और तोड़फोड़: नेताओं के घर निशाना

प्रदर्शनकारियों ने कई नेताओं के घरों और कार्यालयों को निशाना बनाया। पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा, पुष्प कमल दहल (प्रचंड), संचार मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग और विदेश मंत्री अर्जु राणा के स्कूल में आगजनी की गई। इसके अलावा, ओली की पार्टी CPN (UML) के कार्यालय और संसद भवन में भी तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं हुईं। काठमांडू के मेयर बालेन शाह को उनके घर में नजरबंद कर दिया गया, जिन्होंने जेन-जेड आंदोलन का खुलकर समर्थन किया था।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और भारत-नेपाल सीमा पर सतर्कता

ऑस्ट्रेलिया, फिनलैंड, फ्रांस, जापान, दक्षिण कोरिया, ब्रिटेन और अमेरिका के दूतावासों ने संयुक्त बयान जारी कर हिंसा पर चिंता जताई और मृतकों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की। भारत के विदेश मंत्रालय ने भी नेपाल में हो रहे घटनाक्रम पर नजर रखने की बात कही और सभी पक्षों से शांतिपूर्ण समाधान की अपील की। भारत ने नेपाल से सटे बिहार के सात जिलों—पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, अररिया, सुपौल, पूर्वी चंपारण और किशनगंज—में सीमा सील कर दी है और सशस्त्र सीमा बल (SSB) को हाई अलर्ट पर रखा है।

नई सरकार की मांग

राजनीतिक विश्लेषक और नेपाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बसुदेव खनाल का कहना है कि मौजूदा नेतृत्व में पीढ़ीगत हस्तांतरण की कमी ने युवाओं का गुस्सा सड़कों पर ला दिया। प्रदर्शनकारी मौजूदा नेतृत्व को अस्वीकार कर रहे हैं और एक ऐसी सरकार की मांग कर रहे हैं जो उनकी चिंताओं को समझे। पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टाराई ने युवाओं को शामिल करते हुए अंतरिम सरकार बनाने का प्रस्ताव दिया है, जबकि कुछ विश्लेषकों का सुझाव है कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश खिलराज रेग्मी जैसे निर्विवाद व्यक्ति को सत्ता सौंपी जाए।

काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने भी युवाओं से देश का नेतृत्व संभालने की अपील की है और संसद भंग करने की शर्त रखी है। प्रदर्शनकारियों ने साफ कर दिया है कि 8 सितंबर से शुरू हुआ आंदोलन का नया चरण तब तक जारी रहेगा, जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं।

Yashaswani Journalist at The Khatak .