'समाजवादी-धर्मनिरपेक्ष' शब्दों पर घमासान: कांग्रेस Vs आरएसएस
आरएसएस के दत्तात्रेय होसबाले के संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने की बात पर कांग्रेस ने तीखा हमला बोला, इसे संविधान विरोधी साजिश करार दिया। होसबाले ने कहा कि ये शब्द आपातकाल में जोड़े गए थे और इन पर बहस होनी चाहिए।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों पर दिए गए बयान ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। होसबाले ने गुरुवार को एक कार्यक्रम में कहा था कि ये शब्द आपातकाल (1975-77) के दौरान 42वें संवैधानिक संशोधन के जरिए जोड़े गए थे और इनके प्रस्तावना में बने रहने पर बहस होनी चाहिए। उन्होंने दावा किया कि बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा तैयार मूल संविधान में ये शब्द नहीं थे और इन्हें उस समय जोड़ा गया जब मौलिक अधिकार निलंबित थे, संसद निष्क्रिय थी, और न्यायपालिका पंगु थी।
कांग्रेस का तीखा पलटवार
कांग्रेस ने होसबाले के बयान को संविधान विरोधी करार देते हुए आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर तीखा हमला बोला है। कांग्रेस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "आरएसएस-बीजेपी की सोच ही संविधान विरोधी है। होसबाले का बयान बाबासाहेब के संविधान को खत्म करने की साजिश का हिस्सा है, जो आरएसएस-बीजेपी लंबे समय से रच रही है। हम उनके मंसूबों को कभी कामयाब नहीं होने देंगे।"
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने एक्स पर कहा, "आरएसएस ने 30 नवंबर 1949 से संविधान, आंबेडकर, नेहरू और इसके निर्माण में शामिल सभी लोगों पर हमला किया है। उनके शब्दों में, संविधान 'मनुस्मृति से प्रेरित नहीं' था।" उन्होंने आरोप लगाया कि 2024 के लोकसभा चुनाव में जनता ने बीजेपी के संविधान बदलने के एजेंडे को खारिज किया, फिर भी आरएसएस का इकोसिस्टम संविधान के मूल स्वरूप को बदलने की कोशिश कर रहा है।
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भी एक्स पर लिखा, "आरएसएस और बीजेपी किसी भी कीमत पर संविधान को बदलना चाहते हैं। होसबाले ने 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने की मांग की है। यह संविधान पर हमला है।"
आपातकाल और 42वां संशोधन
होसबाले ने अपने बयान में 1975 के आपातकाल को याद करते हुए कहा कि उस दौरान हजारों लोग जेल में डाले गए, पत्रकारों पर अंकुश लगाया गया, और जबरन नसबंदी जैसे कदम उठाए गए। उन्होंने कांग्रेस से आपातकाल की "अत्याचारों" के लिए माफी मांगने की मांग की। 42वें संशोधन के जरिए तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने संविधान की प्रस्तावना में "समाजवादी", "धर्मनिरपेक्ष", और "अखंडता" शब्द जोड़े थे।
विशेषज्ञों की राय
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ने कहा, "होसबाले का बयान महत्वपूर्ण है। जब आपातकाल में ये शब्द जोड़े गए, तब मोरारजी देसाई की सरकार में भी इन्हें हटाने की बात उठी थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। भारत जैसे विषमता वाले देश में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' जैसे शब्दों का असर खासकर बिहार, बंगाल, और असम जैसे राज्यों में गहरा है।"
वरिष्ठ पत्रकार अदिति फडनीस ने कहा, "आरएसएस का रुख वही है, बस अब वे पहले से ज्यादा मुखर हो गए हैं। कुछ विचारकों, जैसे प्रोफेसर राजीव भार्गव, का मानना है कि हिंदू राष्ट्र की अवधारणा के लिए प्रस्तावना से इन शब्दों को हटाना पहला कदम होगा। हालांकि, यह व्यावहारिक रूप से मुश्किल है, क्योंकि प्रस्तावना को बदलना आसान नहीं है।"
संविधान पर आरएसएस का रुख
आरएसएस का संविधान के प्रति रुख ऐतिहासिक रूप से जटिल रहा है। संघ के दूसरे सरसंघचालक एम.एस. गोलवलकर ने अपनी किताब 'बंच ऑफ थॉट्स' में संविधान को पश्चिमी देशों के संविधानों का "विषम संयोजन" करार दिया था। हालांकि, 2018 में संघ के वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा था कि संविधान देश की आम सहमति का प्रतीक है और इसका पालन करना सबका कर्तव्य है।
बीजेपी का रुख और 2024 का चुनाव
2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के कुछ नेताओं के बयानों ने संविधान बदलने की अटकलें तेज की थीं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी रैलियों में संविधान की प्रति लहराते हुए बीजेपी पर इसे बदलने का आरोप लगाया था। बीजेपी ने इन आरोपों को खारिज किया, लेकिन ऐसे बयान बार-बार चर्चा का विषय बने।