आग से जूझ रहे लोगों को बचाने निकले परिजन:-पैरों में कांच चुभे, अपनों को न बचा सके' - 8 जिंदगियां खाक हो गई.

जयपुर के सवाई मानसिंह (SMS) हॉस्पिटल के ट्रॉमा सेंटर में 5 अक्टूबर 2025 की रात 11:20 बजे लगी भीषण आग ने 8 मरीजों की जान ले ली, जिनमें भरतपुर की रुकमणि कौर (56), कुषमा देवी (54) और श्रीनाथ (50) शामिल थे। शॉर्ट सर्किट से शुरू हुई आग ने न्यूरो आईसीयू को जहरीली गैसों से भर दिया। परिजनों ने स्टाफ पर लापरवाही का आरोप लगाया- कोई फायर अलार्म नहीं, स्टाफ भाग निकला, गेट बंद। कुषमा के पति पूरन सिंह ने कांच तोड़कर पत्नी को बचाने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे। रुकमणि के बेटे शेरू ने जबरन गेट खोल मां को बेड समेत बाहर घसीटा, पर जहरीली गैस ने सब छीन लिया। सरकार ने 6 सदस्यीय जांच कमेटी बनाई। सवाल उठता है- क्या अस्पतालों में सुरक्षा सुधरेगी?

Oct 6, 2025 - 17:55
आग से जूझ रहे लोगों को बचाने निकले परिजन:-पैरों में कांच चुभे, अपनों को न बचा सके' - 8 जिंदगियां खाक हो गई.

जयपुर, 6 अक्टूबर 2025: रविवार की रात करीब 11:20 बजे सवाई मानसिंह (SMS) हॉस्पिटल का ट्रॉमा सेंटर मौत का साय बन गया। न्यूरो आईसीयू वार्ड में एक छोटी-सी चिंगारी ने भयानक आग का रूप ले लिया, जो तेजी से फैलकर जहरीली गैसों का जाल बुन दिया। जहां जिंदगियां बचाने का वादा था, वहां आग ने 8 मरीजों की सांसें छीन लीं। इनमें भरतपुर की दो मांएं - रुकमणि कौर (56) और कुषमा देवी (54) - और श्रीनाथ (50) जैसे निर्दोष शामिल थे। एक युवक दिगंबर वर्मा सवाई माधोपुर का था। बाकी मरीजों में सिकर के पिंटू, जयपुर के दिलीप और बहादुर, तथा अन्य स्थानीय लोग थे।आग की शुरुआत स्टोर रूम से हुई, जहां पेपर, आईसीयू का सामान और ब्लड सैंपल ट्यूबें रखी थीं। ट्रॉमा सेंटर के नोडल ऑफिसर और सीनियर डॉक्टर अनुराग धाकड़ ने बताया, "शॉर्ट सर्किट से आग लगी। आईसीयू में 11 मरीज थे, बगल वाले सेमी-आईसीयू में 13। आग ने 11 बेड जला दिए।" धुंआ इतना घना था कि विजिबिलिटी जीरो हो गई। ज्यादातर मरीज कोमा में थे, जिन्हें निकालना नामुमकिन साबित हुआ। कुल 24 मरीजों को बाहर निकाला गया, लेकिन 5 अभी भी क्रिटिकल हैं।

परिजनों की दिल दहला देने वाली आपबीती: 'स्टाफ भागा, धुंआ की बदबू और स्टाफ की बेरुखी।

कुषमा देवी की कहानी: बाइक हादसे से आईं, आग ने छीनी जिंदगी 

भरतपुर के हजीतर गांव की कुषमा देवी (54) 1 अक्टूबर को बाइक से गिर गईं। आरबीएम हॉस्पिटल से उन्हें तुरंत जयपुर के SMS रेफर किया गया। 2 अक्टूबर सुबह 10 बजे उनके पैर का ऑपरेशन हुआ। 3 अक्टूबर को ट्रॉमा सेंटर के आईसीयू में एडमिट किया गया। उनके पति पूरन सिंह रात-दिन साथ थे। कुषमा के देवर रूप सिंह ने आंसू भरी आवाज में बताया, "3 अक्टूबर से भाभी आईसीयू में थीं। रात को कंपाउंडर ने दरवाजा बंद कर निकल लिया। अंदर से कांच टूटने की आवाज आई। पूरन भैया दौड़े, लेकिन अंधेरा था। आईसीयू का शीशा तोड़कर घुसे, पैरों में कांच चुभ गए। धुंआ इतना कि कुछ दिखा ही नहीं। बाहर निकले तो भाभी को बचा न सके।" रूप सिंह ने आरोप लगाया कि स्टाफ ने पहले चेतावनी दी होती तो शायद...। पूरन सिंह ने अपने हाथों से पत्नी की बॉडी बाहर निकाली। परिवार का रोना देखकर कोई भी पसीज जाए।

रुकमणि कौर की जंग: बेटे ने जबरन गेट तोड़ा, मां को बेड समेत घसीटा 

भरतपुर के गोपालगढ़ की रुकमणि कौर (56) भी आग की भेंट चढ़ गईं। उनके देवर बलवीर सिंह ने बताया, "भतीजा शेरू (रुकमणि का बेटा) ने पहले ही स्टाफ को बदबू और धुंए की शिकायत की। बोला, 'कहीं आग तो नहीं लगी, चेक कर लो।' लेकिन नर्सिंग स्टाफ ने टाल दिया। कुछ देर बाद धुंआ भर गया। स्टाफ भाग निकला। गार्ड ने गेट बंद कर दिया। शेरू चिल्लाया, 'मेरी मां अंदर है, कैसे छोड़ दूं?' जबरन गेट खोलकर शेरू अंदर घुसा। मां के चेहरे से ऑक्सीजन मास्क हटाया और बेड समेत बाहर घसीट लाया। लेकिन जहरीली गैस ने सब कुछ लील लिया। शेरू और छोटा भाई जोगेंद्र दिन-रात मां की सेवा में लगे थे। रुकमणि के पति बच्चू सिंह दिव्यांग हैं, घर रुकमणि ही चला रही थीं। शेरू आज भी कहता है, 'हमने मां को नहीं बचा सके... बस यही दुख है।'"अन्य परिजनों ने भी स्टाफ पर गंभीर आरोप लगाए। एक प्रत्यक्षदर्शी ओम प्रकाश ने कहा, "रूम नंबर-7 में चिंगारी उठी। डॉक्टरों को बताया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं। सिलेंडर के पास आग लगी तो गेट बंद कर भाग गए।" नरेंद्र सिंह ने बताया, "डिनर के लिए नीचे आया था, वापस लौटा तो सब जल रहा था। मां को खोजा, लेकिन धुंए में कुछ न दिखा।"

लापरवाही के सवाल: फायर अलार्म गायब, स्टाफ फरार

परिजनों का गुस्सा साफ था - अस्पताल में फायर सेफ्टी का कोई इंतजाम नहीं। कोई अलार्म नहीं बजा, इमरजेंसी ड्रिल कब हुई, पता नहीं। एक रिश्तेदार ने कहा, "20 मिनट पहले धुंआ दिखा, लेकिन स्टाफ ने कहा 'टेक्नीशियन आ जाएगा।' तब तक सब खत्म।" फोरेंसिक टीम ने साइट देखी, लेकिन परिवार पूछते हैं - जिम्मेदारी कौन लेगा?

सरकार की प्रतिक्रिया: सीएम पहुंचे, 6 सदस्यीय कमेटी गठित

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सोमवार सुबह अस्पताल पहुंचे। घायलों से मिले, परिजनों को ढांढस बांधा। उन्होंने कहा, "ये दर्दनाक हादसा है। पीड़ित परिवारों को हर सहायता मिलेगी। लापरवाही बर्दाश्त नहीं।" राज्य सरकार ने 6 सदस्यीय जांच कमेटी गठित की, जिसका नेतृत्व मेडिकल एजुकेशन विभाग के कमिश्नर इकबाल खान करेंगे। कमेटी आग के कारण, मैनेजमेंट की प्रतिक्रिया, फायर फाइटिंग इंतजाम, मरीजों की सुरक्षा और भविष्य में रोकथाम पर रिपोर्ट देगी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर शोक जताया:

 "जयपुर के अस्पताल में आग से हुई मौतें अत्यंत दुखद। शोकाकुल परिवारों के प्रति संवेदना।" स्वास्थ्य मंत्री जयवर्धन सिंह बेदम ने भी नारेबाजी का सामना किया।क्या कहते हैं आंकड़े: अस्पतालों में आग के खतरे क्यों बढ़ रहे?पिछले सालों में देशभर में 20 से ज्यादा अस्पतालों में आग लग चुकी है। कारण? शॉर्ट सर्किट, ओवरलोडेड वायरिंग और फायर NOC की अनदेखी। SMS जैसे बड़े हॉस्पिटल में भी ये कमी? जांच रिपोर्ट ही बताएगी। लेकिन सवाल वही - जिंदगियां बचाने वाले सिस्टम खुद खतरे में क्यों?