दिल्ली हाईकोर्ट ने गौतम गंभीर के खिलाफ कोविड दवाओं के मामले में क्रिमिनल केस रद्द किया: विस्तृत रिपोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को गौतम गंभीर और उनके फाउंडेशन के खिलाफ 2021 में दर्ज कोविड दवाओं के अवैध स्टॉकिंग और वितरण का क्रिमिनल केस पूरी तरह रद्द कर दिया। कोर्ट ने माना कि महामारी में मुफ्त मदद करने की मंशा थी, कोई व्यावसायिक लाभ नहीं था।
नई दिल्ली, 21 नवंबर 2025: दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को भारतीय क्रिकेट टीम के हेड कोच और पूर्व बीजेपी सांसद गौतम गंभीर, उनकी गौतम गंभीर फाउंडेशन (जीजीएफ) तथा अन्य सदस्यों के खिलाफ कोविड-19 महामारी के दौरान कथित रूप से अवैध रूप से दवाओं का स्टॉक करने और वितरण करने के मामले में दर्ज क्रिमिनल केस को रद्द कर दिया। जस्टिस नीनू बंसल कृष्णा की एकलपीठ ने आदेश सुनाते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा, "क्रिमिनल कंप्लेंट क्वाश्ड" (क्रिमिनल शिकायत रद्द)। यह फैसला लंबे समय से चले आ रहे कानूनी विवाद को समाप्त करता है, जो महामारी के दौरान दवा वितरण की जटिलताओं को उजागर करता है।
मामले की पृष्ठभूमि; यह मामला कोविड-19 की दूसरी लहर (अप्रैल-मई 2021) के दौरान उभरा था, जब देश भर में दवाओं और ऑक्सीजन की भारी कमी थी। लोगों को दवाएं जुटाने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा था। इसी संकट के बीच गौतम गंभीर फाउंडेशन ने एक मेडिकल कैंप का आयोजन किया, जहां फेबिफ्लू (रेमडेसिविर का विकल्प) जैसी कोविड दवाओं का मरीजों को मुफ्त वितरण किया गया। फाउंडेशन ने दावा किया कि ये दवाएं वैध विक्रेताओं से खरीदी गई थीं और इन्हें बेचा नहीं गया, बल्कि जरूरतमंदों को मुफ्त में बांटा गया।हालांकि, दिल्ली सरकार के ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट ने जून 2021 में एक जांच के बाद फाउंडेशन पर कार्रवाई की। विभाग ने आरोप लगाया कि फाउंडेशन ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 की धारा 18(सी) (बिना वैध लाइसेंस के दवाओं का निर्माण, बिक्री या वितरण निषेध) का उल्लंघन किया है। इसके तहत धारा 27(बी)(आईआई) में तीन से पांच वर्ष की कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान है। शिकायत में गौतम गंभीर (तत्कालीन पूर्वी दिल्ली से सांसद), उनकी पत्नी , मां (दोनों फाउंडेशन की ट्रस्टी) और सीईओ को आरोपी बनाया गया। विभाग का तर्क था कि फाउंडेशन के पास वितरण के लिए लाइसेंस नहीं था, भले ही दवाएं बेची न गई हों।जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने ड्रग कंट्रोलर की कार्रवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, लेकिन मामला दिल्ली की मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट में पहुंचा। वहां मजिस्ट्रेट ने आरोपी बनाए गए लोगों को समन जारी कर दिया।
कोर्ट में याचिका और सुनवाई का सफर; सितंबर 2021 में गौतम गंभीर फाउंडेशन, गंभीर और उनके परिवार ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें ट्रायल कोर्ट के समन और क्रिमिनल शिकायत को रद्द करने की मांग की गई। हाईकोर्ट ने 20 सितंबर 2021 को ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर स्टे लगा दिया और दिल्ली ड्रग कंट्रोल अथॉरिटी से जवाब मांगा।विभाग के वकील ने याचिका का विरोध किया, दावा करते हुए कि गंभीर ने पहले सेशन कोर्ट में रिविजनल अपील दायर किए बिना सीधे हाईकोर्ट का रुख किया, जो प्रक्रिया के खिलाफ है। उन्होंने यह भी कहा कि वितरण बिना लाइसेंस के हुआ, जो कानून का स्पष्ट उल्लंघन है। दूसरी ओर, गंभीर के वकील जय अनंत देहाद्राई ने तर्क दिया कि फाउंडेशन का इरादा मानवीय सहायता का था, न कि लाभ कमाने का। दवाओं का कोई व्यावसायिक वितरण नहीं हुआ, और महामारी के संकट में ऐसी कार्रवाई से भविष्य में सहायता करने वाले संगठनों को हतोत्साहित किया जाएगा।कोर्ट ने अगस्त 2024 में फैसला सुरक्षित रख लिया। अप्रैल 2024 में कोर्ट ने स्टे को खाली करने का आदेश दिया था, लेकिन अगस्त 2024 में इसे वापस बहाल कर लिया गया। शुक्रवार को सुनाए गए फैसले में कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए पूरी क्रिमिनल कार्यवाही को रद्द कर दिया। विस्तृत आदेश अभी जारी नहीं हुआ है, लेकिन प्रारंभिक टिप्पणी से साफ है कि कोर्ट ने आरोपी पक्ष के तर्कों को मजबूत माना।
महत्वपूर्ण तथ्य और प्रभाव; आरोपी पक्ष: गौतम गंभीर, पत्नी, मां,सीईओ। कानूनी धाराएं: ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट की धारा 18(सी) और 27(बी)(आईआई)। फाउंडेशन का बचाव: दवाएं वैध स्रोतों से खरीदी गईं, मुफ्त वितरण किया गया, कोई लाभ नहीं कमाया। विभाग का आरोप: बिना लाइसेंस के स्टॉकिंग और वितरण, जो कानूनन अपराध है