साइकिल पर सवार पर्यावरण योद्धा: सुबोध विजय की अनूठी यात्रा, माउंट एवरेस्ट तक का सपना

26 वर्षीय सुबोध विजय, महाराष्ट्र के रोहा गांव से, पर्यावरण जागरूकता के लिए साइकिल यात्रा पर हैं। 11 महीने पहले लद्दाख के उमलिंग ला पास से शुरू हुई इस यात्रा में वे अब तक 6 राज्यों में 30 हजार से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं। उनका लक्ष्य 28 राज्यों की यात्रा, 1 लाख पौधे लगाना और माउंट एवरेस्ट फतेह करना है। हर राज्य की मिट्टी साथ ले जाते हैं, जिसे वे एवरेस्ट पर बिखेरेंगे। बाड़मेर में पौधारोपण और जागरूकता कार्यक्रम के बाद वे पाली रवाना हुए। यात्रा में वे अकेले हैं, वॉलंटियर और गाइड का काम करके खर्च चलाते हैं।

May 17, 2025 - 11:15
May 17, 2025 - 11:18
साइकिल पर सवार पर्यावरण योद्धा: सुबोध विजय की अनूठी यात्रा, माउंट एवरेस्ट तक का सपना

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग में एक 26 वर्षीय युवा, सुबोध विजय, साइकिल पर सवार होकर देशभर में पर्यावरण जागरूकता का संदेश फैला रहा है। महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के रोहा गांव के रहने वाले सुबोध ने 11 महीने पहले लद्दाख के उमलिंग ला पास से अपनी साइकिल यात्रा शुरू की थी। उनका लक्ष्य है देश के 28 राज्यों की यात्रा करते हुए 1 लाख पौधे लगाना और माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचकर पर्यावरण संतुलन का संदेश देना। अब तक वे 6 राज्यों में 30 हजार से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं और हर राज्य की मिट्टी को साथ लेकर अपनी यात्रा को और भी प्रतीकात्मक बना रहे हैं।

सुबोध के पिता विजय एक किसान हैं, मां कुंदा गृहणी हैं, और बड़ा भाई सुमेद सैमसंग में मार्केटिंग जॉब करता है। प्रकृति के प्रति उनका प्रेम बचपन से ही रहा। पहाड़ों से घिरे अपने गांव में पले-बढ़े सुबोध कहते हैं, "प्रकृति ने मुझे जीना सिखाया। टीचर या किताबें जो नहीं सिखा सकतीं, वह प्रकृति सिखा देती है।" पर्यावरण के प्रति जागरूकता और प्रकृति के प्रति उनका लगाव ही इस अनूठी यात्रा की प्रेरणा बना।

19 जून 2024 को लद्दाख के -25 डिग्री तापमान वाले उमलिंग ला पास से शुरू हुई यह यात्रा अब तक हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान तक पहुंच चुकी है। सुबोध हर दिन औसतन 120 किलोमीटर साइकिल चलाते हैं। उनकी साइकिल पर स्लीपिंग बैग, जरूरी दस्तावेज, साइकिल सुधारने के औजार, कपड़े, ड्राइफ्रूट और हर राज्य के धार्मिक स्थलों की मिट्टी के पैकेट होते हैं। इस मिट्टी को वे माउंट एवरेस्ट पर बिखेरकर पर्यावरण संतुलन का संदेश देना चाहते हैं।

बाड़मेर में सुबोध का स्वागत
शुक्रवार, 16 मई 2025 को दोपहर 3 बजे सुबोध राजस्थान के बाड़मेर पहुंचे। तनोट माता (जैसलमेर) होते हुए झुलसाने वाली गर्मी में बाड़मेर पहुंचे सुबोध ने यहां पौधे लगाए और स्थानीय लोगों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। बाड़मेर में उनकी मुलाकात जिला परिषद सीईओ रवि कुमार से हुई, जिन्होंने उनकी इस पहल की सराहना की और हर संभव मदद का आश्वासन दिया।

सुबोध ने बाड़मेर की मगरा ग्राम पंचायत में विधायक आदूराम मेघवाल, सरपंच और लायंस क्लब के सदस्यों के साथ 10 पौधे लगाए। जैसलमेर में भी उन्होंने लायंस क्लब के साथ पौधारोपण किया। वे बताते हैं, "कई बार पर्यावरण प्रेमी खुद पौधे लाते हैं और मेरे साथ पौधारोपण करते हैं। जहां ऐसे लोग नहीं मिलते, वहां मैं खुद पौधे खरीदकर लगाता हूं।"

सुबोध की यह यात्रा आसान नहीं है। वे अकेले साइकिल पर यात्रा करते हैं और कई बार ऐसी जगहों से गुजरते हैं जहां खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं होती। लद्दाख की निर्जन घाटियों में उन्होंने खुद खाना पकाया। शहरों में भोजन मिल जाता है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में वे अपने साथ ले जाया गया सामान इस्तेमाल करते हैं।

यात्रा के दौरान सुबोध वॉलंटियर और माउंटेन गाइड का काम भी करते हैं। माउंटेनर्स को गाइड करने से मिलने वाली कमाई से वे अपनी यात्रा का खर्च चलाते हैं। अब तक उन्होंने 20 हजार रुपये कमाए हैं, जिसमें से हजारों पौधे खरीदकर लगाए। वे कहते हैं, "मैं स्पॉन्सर की तलाश में हूं। अगर स्पॉन्सर मिला तो माउंट एवरेस्ट का सपना पूरा कर सकूंगा।"

हर राज्य की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने का लक्ष्य

सुबोध का सपना सिर्फ पौधे लगाने तक सीमित नहीं है। वे हर राज्य की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर चढ़ना चाहते हैं। अब तक वे 371 फोर्ट की यात्रा कर चुके हैं और विश्व रिकॉर्ड भी बना चुके हैं। उनकी योजना राजस्थान से मध्य प्रदेश, गुजरात और दक्षिण भारत होते हुए नेपाल के रास्ते माउंट एवरेस्ट तक पहुंचने की है।

पर्यावरण और प्रकृति के प्रति संदेश

सुबोध का मानना है कि परिवर्तन खुद से शुरू होता है। वे कहते हैं, "मैंने पर्यावरण का महत्व समझा और पहले खुद जागरूक हुआ। अब लोगों को जागरूक करने के लिए यह यात्रा कर रहा हूं। प्रकृति हमें जीवन का लक्ष्य बताती है।" उनकी सादगी और समर्पण की मिसाल है कि वे ग्लैमरस जीवन में रुचि नहीं रखते। उनके लिए प्रकृति ही सब कुछ है।

यात्रा शुरू करने से पहले परिवार और रिश्तेदारों ने उनका विरोध किया, लेकिन सुबोध ने हार नहीं मानी। वे कहते हैं, "कुछ रिश्ते खोए, लेकिन यात्रा में नए रिश्ते बने। खून के रिश्तों से ज्यादा महत्व उन रिश्तों का है जो प्रकृति से जुड़कर बनते हैं।"

 उनकी यह यात्रा न केवल पर्यावरण जागरूकता की मिसाल है, बल्कि एक युवा के दृढ़ संकल्प और प्रकृति के प्रति प्रेम की कहानी भी है। सुबोध विजय की यह साइकिल यात्रा हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ करना चाहता है। उनकी यह कहानी बताती है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो एक साइकिल भी दुनिया बदलने का जरिया बन सकती है।

Ashok Shera "द खटक" एडिटर-इन-चीफ