सोशल मीडिया बैन होने पर Gen-Z का उग्र प्रदर्शन,आखिर क्यों सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को बैन किया गया.
नेपाल में सोशल मीडिया बैन ने जन-ज़ेड (युवाओं) की बगावत को हवा दी। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब समेत 26 प्लेटफॉर्म्स पर सरकार ने रजिस्ट्रेशन न होने के कारण प्रतिबंध लगाया, जिसके खिलाफ काठमांडू की सड़कों पर हजारों युवा उतरे। प्रदर्शनों में हिंसा भड़की, 19-21 मौतें हुईं, सैकड़ों घायल हुए, और सेना तक तैनात करनी पड़ी। "नेपो किड" ट्रेंड ने नेताओं की आलीशान जिंदगी को उजागर कर युवाओं का गुस्सा भड़काया। बैन हट गया, लेकिन भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ आंदोलन जारी है। यह जन-ज़ेड की डिजिटल और सामाजिक क्रांति है।

नेपाल में हाल ही में सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध और इसके बाद भड़के जन-ज़ेड (Gen-Z) आंदोलन ने देश को गहरे संकट में डाल दिया है। राजधानी काठमांडू सहित कई शहरों में हजारों युवा सड़कों पर उतर आए, जिसके परिणामस्वरूप हिंसक झड़पें हुईं, कम से कम 19-21 लोगों की मौत हो गई, और सैकड़ों घायल हुए। सरकार को हालात नियंत्रित करने के लिए कर्फ्यू और सेना की तैनाती करनी पड़ी। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं और आपके सवालों के जवाब देते हैं।
1. नेपाल में जन-ज़ेड प्रदर्शन क्यों शुरू हुआ?
नेपाल में प्रदर्शन की शुरुआत 4 सितंबर 2025 को सरकार द्वारा 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सएप, और एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर प्रतिबंध लगाने के फैसले से हुई। इस बैन ने 1997 से 2012 के बीच जन्मी जन-ज़ेड पीढ़ी के बीच गुस्सा भड़का दिया, जो डिजिटल युग में पली-बढ़ी है और सोशल मीडिया को अपनी अभिव्यक्ति, सूचना, और आजीविका का प्रमुख माध्यम मानती है। हालांकि, यह गुस्सा केवल सोशल मीडिया बैन तक सीमित नहीं था। युवाओं का कहना है कि यह आंदोलन भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, और सरकार की नाकामी के खिलाफ भी है। सोशल मीडिया पर वायरल "नेपो किड" ट्रेंड, जिसमें नेताओं और उनके बच्चों की आलीशान जीवनशैली की तुलना आम नागरिकों की गरीबी से की गई, ने इस आंदोलन को और हवा दी। युवा इसे सिस्टम की असमानता और नेताओं की जवाबदेही की कमी के खिलाफ बगावत मानते हैं। प्रदर्शनकारी, खासकर छात्र, स्कूल-कॉलेज की वर्दी में सड़कों पर उतरे, बैनर-पोस्टर बनाए, और बिना किसी राजनीतिक दल के समर्थन के स्वतःस्फूर्त विरोध किया, जिसे "जन-ज़ेड क्रांति" कहा जा रहा है।
2. नेपाल सरकार ने सोशल मीडिया पर बैन क्यों लगाया?
नेपाल सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन का कारण इन कंपनियों द्वारा सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय में रजिस्ट्रेशन न कराना बताया। सरकार ने 2023 में "सोशल मीडिया उपयोग नियमन निर्देशिका 2080" लागू की थी, जिसमें सभी प्लेटफॉर्म्स को नेपाल में रजिस्टर करना, स्थानीय कार्यालय खोलना, शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करना, और कंटेंट मॉडरेशन में जवाबदेही सुनिश्चित करना अनिवार्य था। सरकार का तर्क था कि सोशल मीडिया पर फर्जी खबरें, अफवाहें, और साइबर अपराध बढ़ रहे हैं, जो सामाजिक सौहार्द और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं। 28 अगस्त 2025 को सरकार ने इन कंपनियों को रजिस्ट्रेशन के लिए 7 दिन की समयसीमा दी, जो 4 सितंबर को समाप्त हुई। मेटा (फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप), अल्फाबेट (यूट्यूब), एक्स, रेडिट, और लिंक्डइन जैसी कंपनियों ने रजिस्ट्रेशन नहीं कराया, जिसके बाद नेपाल टेलीकम्यूनिकेशन अथॉरिटी (NTA) ने इन प्लेटफॉर्म्स को ब्लॉक करने का आदेश दिया।
3. सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्या था?
17 अगस्त 2025 को नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को नेपाल में रजिस्टर करना होगा। कोर्ट का तर्क था कि यह कदम फर्जी खबरों, साइबर अपराध, और सामाजिक अशांति को रोकने के लिए जरूरी है। इसके तहत कंपनियों को स्थानीय कार्यालय स्थापित करने, शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करने, और नेपाल के कानूनों के तहत जवाबदेही सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया। सरकार ने इस आदेश को आधार बनाकर बैन लागू किया, लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है।
4. कौन से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स बैन हुए?
नेपाल सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाया, जिनमें शामिल हैं:फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, फेसबुक मैसेंजर
यूट्यूब
एक्स (ट्विटर)
लिंक्डइन, रेडिट, स्नैपचैट, पिंटरेस्ट, सिग्नल, थ्रेड्स
डिस्कॉर्ड, क्लबहाउस, मैस्टोडॉन, रंबल, मीवी, वीके (वीकॉन्टैक्टे)
वीचैट, क्वोरा, टम्बलर, लाइन, आईएमओ, ज़ालो, सोल
हैमरो पैट्रो (स्थानीय नेपाली ऐप)
इन प्लेटफॉर्म्स पर लॉगिन करने पर यूजर्स को "This site can't be reached" का मैसेज मिल रहा है।
5. कौन से प्लेटफॉर्म्स चालू हैं?
कुछ सोशल मीडिया ऐप्स, जैसे टिकटॉक, वाइबर, विटक, निंबज, और पोपो लाइव, जो नेपाल सरकार के साथ रजिस्टर हो चुके हैं, पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया। टेलीग्राम और ग्लोबल डायरी जैसे ऐप्स की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया की जांच चल रही है।
6. "नेपो किड" ट्रेंड और युवाओं का गुस्सा
"नेपो किड" (Nepo Kid) ट्रेंड नेपाल में सोशल मीडिया पर पिछले कुछ महीनों से वायरल था, जिसमें नेताओं और उनके परिवारों की आलीशान जीवनशैली को उजागर किया गया। टिकटॉक और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर वायरल वीडियो में नेताओं के बच्चों की लग्जरी गाड़ियां, विदेशी छुट्टियां, और महंगे कपड़े दिखाए गए, जबकि आम नेपाली नागरिक गरीबी और बेरोजगारी से जूझ रहे हैं। इन वीडियो ने जन-ज़ेड के बीच गुस्सा भड़काया, क्योंकि वे इसे सत्ताधारी नेताओं की भ्रष्टाचार और विशेषाधिकार की संस्कृति का प्रतीक मानते हैं। 2008 में नेपाल के लोकतांत्रिक गणराज्य बनने के बाद से, 70 साल से अधिक उम्र के नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। युवा पीढ़ी इन नेताओं से तंग आ चुकी है और सोशल मीडिया को अपनी आवाज उठाने का प्रमुख मंच मानती है। बैन ने इस मंच को छीन लिया, जिसे युवा अपनी अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला मानते हैं।
7. प्रदर्शन का स्वरूप और हिंसा
8 सितंबर 2025 को काठमांडू के न्यू बानेश्वर, माइतीघर मंडला, और अन्य इलाकों में हजारों युवा सड़कों पर उतरे। प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन के परिसर में घुसने की कोशिश की, पुलिस बैरिकेड तोड़े, और कुछ ने गार्ड हाउस पर चढ़कर नारेबाजी की। पुलिस ने आंसू गैस, पानी की बौछार, और हवाई फायरिंग का इस्तेमाल किया। दमक में पुलिस की गोलीबारी में एक प्रदर्शनकारी की मौत हुई, और न्यू बानेश्वर में 80 से अधिक लोग घायल हुए। काठमांडू के अलावा पोखरा, बीरतनगर, बुटवल, और इटहरी में भी विरोध प्रदर्शन हुए। हालात बेकाबू होने पर सरकार ने काठमांडू, पोखरा, और अन्य शहरों में कर्फ्यू लागू किया और सेना तैनात की। भारत-नेपाल सीमा पर भी सशस्त्र सीमा बल (SSB) ने सुरक्षा बढ़ा दी।
8. सरकार का रुख और बैन वापसी
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने बैन को राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा के लिए जरूरी बताया, लेकिन हिंसक प्रदर्शनों और 19-21 लोगों की मौत के बाद सरकार दबाव में आ गई। 8 सितंबर की देर रात कैबिनेट बैठक के बाद संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग ने घोषणा की कि सोशल मीडिया पर बैन हटा लिया गया है। यह फैसला खासकर जन-ज़ेड की मांगों को ध्यान में रखकर लिया गया। हालांकि, मंगलवार (9 सितंबर) को भी प्रदर्शन जारी रहे, क्योंकि युवा इसे केवल बैन के खिलाफ नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार और सरकारी नाकामी के खिलाफ आंदोलन मानते हैं।
9. पहले भी हो चुका है सोशल मीडिया बैन
यह पहली बार नहीं है जब नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा। नवंबर 2023 में टिकटॉक पर बैन लगाया गया था, क्योंकि सरकार का मानना था कि यह "सामाजिक सौहार्द बिगाड़ रहा है और अश्लील कंटेंट फैला रहा है।" नौ महीने बाद टिकटॉक ने नियमों का पालन किया और बैन हट गया।
10. कंपनियों ने रजिस्ट्रेशन क्यों नहीं कराया?
रजिस्ट्रेशन के नियमों के तहत कंपनियों को नेपाल में स्थानीय कार्यालय खोलना, शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करना, और यूजर डेटा सरकार के साथ साझा करना अनिवार्य था। मेटा, गूगल, और अन्य कंपनियों को ये शर्तें सख्त और खर्चीली लगीं। नेपाल का यूजर बेस (लगभग 1.35 करोड़ फेसबुक यूजर्स और 36 लाख इंस्टाग्राम यूजर्स) भारत या यूरोप जैसे बड़े बाजारों की तुलना में छोटा है, इसलिए कंपनियों को लगा कि नेपाल में ऑफिस खोलना आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं है। इसके अलावा, डेटा प्राइवेसी और अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े नियमों का पालन करने का दबाव भी एक कारण रहा।
आगे क्या?
सोशल मीडिया बैन हटने के बावजूद नेपाल में तनाव बना हुआ है। युवा इसे केवल बैन हटाने तक सीमित नहीं मानते, बल्कि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, और नेताओं की जवाबदेही की मांग कर रहे हैं। काठमांडू के मेयर बालेन शाह जैसे कुछ नेताओं ने इस आंदोलन का समर्थन किया है, जबकि विपक्षी दलों और मानवाधिकार संगठनों ने बैन को प्रेस स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताया। इस आंदोलन ने नेपाल की राजनीति और समाज में गहरे बदलाव की मांग को उजागर किया है। जन-ज़ेड की यह बगावत न केवल डिजिटल स्वतंत्रता की लड़ाई है, बल्कि एक नई पीढ़ी का पुरानी व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह भी है।