उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: ओवैसी ने सुदर्शन रेड्डी को दिया समर्थन, बीजद-बीआरएस ने बनाई दूरी, जानें वजह
भारत के उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के सीपी राधाकृष्णन और इंडिया ब्लॉक के सुदर्शन रेड्डी के बीच मुकाबला है, लेकिन बीजद और बीआरएस ने चुनाव से दूरी बना ली, जबकि एआईएमआईएम ने रेड्डी को समर्थन दिया।

भारत के उपराष्ट्रपति पद के लिए 9 सितंबर को होने वाले चुनाव से पहले राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। इस चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन और इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार सुदर्शन रेड्डी के बीच कड़ा मुकाबला है। हालांकि, चुनाव से ठीक पहले बड़ी खबर सामने आई है कि बीजू जनता दल (बीजद) और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने इस चुनाव से दूरी बनाने का फैसला किया है। इसके अलावा, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार सुदर्शन रेड्डी को समर्थन देने की घोषणा की है।
बीजद उपराष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा नहीं लेगी
बीजद के सांसद सस्मित पात्रा ने सोमवार को बताया कि पार्टी अध्यक्ष और ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने वरिष्ठ नेताओं, राजनीतिक मामलों की समिति और सांसदों के साथ विचार-विमर्श के बाद फैसला लिया है कि बीजद उपराष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा नहीं लेगी। पात्रा ने कहा, "बीजद एनडीए और इंडिया ब्लॉक दोनों से समान दूरी बनाए रखेगी। हमारा ध्यान ओडिशा और इसके 4.5 करोड़ लोगों के विकास और कल्याण पर केंद्रित है।"
बीजद के इस फैसले के पीछे की वजह नवीन पटनायक की रणनीति मानी जा रही है, जिसमें वह न तो एनडीए के खिलाफ खुलकर सामने आना चाहते हैं और न ही उनके पक्ष में खड़े होना चाहते हैं। गौरतलब है कि बीजद राष्ट्रीय स्तर पर या तो सत्ता पक्ष के साथ रही है या फिर तटस्थ भूमिका निभाती रही है। हालांकि, 2022 के उपराष्ट्रपति चुनाव में बीजद ने एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया था।
बीआरएस ने भी बनाई दूरी
बीजद के साथ-साथ तेलंगाना की क्षेत्रीय पार्टी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने भी उपराष्ट्रपति चुनाव से अलग रहने का फैसला किया है। बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के.टी. रामाराव ने सोमवार को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि चूंकि उपराष्ट्रपति चुनाव में 'नोटा' (कोई भी नहीं) का विकल्प उपलब्ध नहीं है, इसलिए पार्टी ने मतदान से दूरी बनाने का निर्णय लिया।
रामाराव ने यह भी बताया कि बीआरएस ने उस गठबंधन को समर्थन देने की पेशकश की थी, जो तेलंगाना के लिए 2 लाख टन यूरिया की आपूर्ति का आश्वासन देता। लेकिन, न तो एनडीए और न ही इंडिया ब्लॉक ने इस मांग पर कोई ठोस प्रतिक्रिया दी, जिसके बाद बीआरएस ने चुनाव में हिस्सा न लेने का फैसला किया।
AIMIM का सुदर्शन रेड्डी को समर्थन
दूसरी ओर, एआईएमआईएम अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार सुदर्शन रेड्डी को समर्थन देने की घोषणा की है। ओवैसी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर लिखा, "तेलंगाना के मुख्यमंत्री कार्यालय ने मुझसे संपर्क किया और अनुरोध किया कि हम उपराष्ट्रपति पद के लिए न्यायमूर्ति सुदर्शन रेड्डी का समर्थन करें। हमारी पार्टी सुदर्शन रेड्डी, जो हैदराबाद के निवासी और एक सम्मानित न्यायविद हैं, को अपना समर्थन देगी। मैंने उनसे बात की और अपनी शुभकामनाएं दीं।"
उपराष्ट्रपति चुनाव का गणित
उपराष्ट्रपति का चुनाव राज्यसभा और लोकसभा के सांसदों द्वारा किया जाता है। कुल 790 सांसदों (लोकसभा के 543 और राज्यसभा के 245, कुछ रिक्त सीटों को छोड़कर) में से बहुमत के लिए 396 वोट चाहिए। एनडीए के पास वर्तमान में लोकसभा और राज्यसभा में संयुक्त रूप से पर्याप्त समर्थन है, लेकिन बीजद (लोकसभा में 12 और राज्यसभा में 9 सांसद) और बीआरएस (लोकसभा में 9 सांसद) के दूरी बनाने से गणित थोड़ा जटिल हो सकता है। वहीं, इंडिया ब्लॉक को एआईएमआईएम जैसे छोटे दलों का समर्थन मिलने से उसकी स्थिति मजबूत हो सकती है।
उम्मीदवारों का प्रोफाइल
- सीपी राधाकृष्णन (एनडीए): वर्तमान में झारखंड के राज्यपाल और अनुभवी राजनेता, जो तमिलनाडु से ताल्लुक रखते हैं। उनकी उम्मीदवारी को एनडीए ने मजबूत नेतृत्व और प्रशासनिक अनुभव के आधार पर पेश किया है।
- सुदर्शन रेड्डी (इंडिया ब्लॉक): हैदराबाद के निवासी और एक सम्मानित न्यायविद, जिन्हें इंडिया ब्लॉक ने उनकी कानूनी विशेषज्ञता और क्षेत्रीय प्रभाव के आधार पर चुना है।
उपराष्ट्रपति चुनाव का परिणाम और दिलचस्प हो गया है
बीजद और बीआरएस के दूरी बनाने से उपराष्ट्रपति चुनाव का परिणाम और दिलचस्प हो गया है। हालांकि, एनडीए की संसद में मजबूत स्थिति को देखते हुए उनकी जीत की संभावना अभी भी प्रबल मानी जा रही है। दूसरी ओर, इंडिया ब्लॉक सुदर्शन रेड्डी के समर्थन में छोटे दलों को एकजुट करने की कोशिश कर रहा है। मंगलवार को होने वाला यह चुनाव न केवल उपराष्ट्रपति पद के लिए बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में गठबंधनों की ताकत को परखने के लिए भी अहम होगा।